नई दिल्ली
पति या पत्नी के नाम पर दिल्ली में पहले से कोई फ्लैट या प्लॉट हो, तो डीडीए उसे कोई प्लॉट या फ्लैट आवंटित नहीं करेगा। डीडीए के साल 2008 की हाउसिंग स्कीम से जुड़े इस नियम को हाई कोर्ट ने जनहित में ठहराया है। इसे चुनौती देने वाली याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि डीडीए के इस नियम को जनहित के नजरिए से देखा जाए।
जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच ने सुनीता यादव और दीपक कुमार की याचिकाओं को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। दोनों ने डीडीए की हाउसिंग स्कीम 2008 के तहत फ्लैट के लिए आवेदन की शर्तों के कुछ खास नियमों को चुनौती दी थी। उन्होंने खास तौर पर उस शर्त को लेकर आपत्ति जताई जिसके तहत नियम तय किया गया कि एक परिवार में से सिर्फ एक व्यक्ति ही आवेदन कर सकता है। एक व्यक्ति को सिर्फ एक बार ही आवेदन की भी शर्त रखी गई। इन शर्तों के आधार पर याचिकाकर्ताओं के वसंत कुंज में आवंटित फ्लैट के आवेदन को रद्द कर दिया गया था। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने इस नियम को अवैध और असंवैधानिक मानने से इनकार कर दिया।
अदालत ने कहा कि संबंधित प्रावधान के मुताबिक, एक व्यक्ति जिसकी पत्नी या डिपेंडेंट के पास पहले से दिल्ली में फ्लैट हो, उसे दूसरा फ्लैट या प्लॉट आवंटित नहीं किया जा सकता। साफ है कि यह प्रावधान डीडीए के पास आवंटन के लिए मौजूद घरों की सीमित संख्या को देखते हुए लाया गया। साथ ही इससे बंटवारा समानता के साथ हो। कोर्ट ने इसे 1968 के रेगुलेशन्स के खिलाफ मानने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता की इस दलील को भी ठुकरा दिया गया कि यह प्रावधान एक पति-पत्नी को फ्लैट के लिए आवेदन करने से रोकता है। कोर्ट ने कहा कि संबंधित प्रावधान ऐसे किसी व्यक्ति को उसके हक से वंचित नहीं कर रहा, जो 1968 के रेगुलेशन्स के तहत आवेदन करने के लिए योग्य है। 1968 के रेगुलेशंस में ऐसा कुछ नहीं है जो एक दंपती को साथ-साथ फ्लैट के लिए आवेदन करने की इजाजत देता हो। कोर्ट ने कहा कि एक परिवार में दंपती समेत सबको आवेदन की छूट देने से, उनमें से किसी एक के नाम पर भी फ्लैट के आवंटन का चांस निश्चित रूप से कम हो जाएगा।
पति या पत्नी के नाम पर दिल्ली में पहले से कोई फ्लैट या प्लॉट हो, तो डीडीए उसे कोई प्लॉट या फ्लैट आवंटित नहीं करेगा। डीडीए के साल 2008 की हाउसिंग स्कीम से जुड़े इस नियम को हाई कोर्ट ने जनहित में ठहराया है। इसे चुनौती देने वाली याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया और कहा कि डीडीए के इस नियम को जनहित के नजरिए से देखा जाए।
जस्टिस सी. हरिशंकर की बेंच ने सुनीता यादव और दीपक कुमार की याचिकाओं को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। दोनों ने डीडीए की हाउसिंग स्कीम 2008 के तहत फ्लैट के लिए आवेदन की शर्तों के कुछ खास नियमों को चुनौती दी थी। उन्होंने खास तौर पर उस शर्त को लेकर आपत्ति जताई जिसके तहत नियम तय किया गया कि एक परिवार में से सिर्फ एक व्यक्ति ही आवेदन कर सकता है। एक व्यक्ति को सिर्फ एक बार ही आवेदन की भी शर्त रखी गई। इन शर्तों के आधार पर याचिकाकर्ताओं के वसंत कुंज में आवंटित फ्लैट के आवेदन को रद्द कर दिया गया था। हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने इस नियम को अवैध और असंवैधानिक मानने से इनकार कर दिया।
अदालत ने कहा कि संबंधित प्रावधान के मुताबिक, एक व्यक्ति जिसकी पत्नी या डिपेंडेंट के पास पहले से दिल्ली में फ्लैट हो, उसे दूसरा फ्लैट या प्लॉट आवंटित नहीं किया जा सकता। साफ है कि यह प्रावधान डीडीए के पास आवंटन के लिए मौजूद घरों की सीमित संख्या को देखते हुए लाया गया। साथ ही इससे बंटवारा समानता के साथ हो। कोर्ट ने इसे 1968 के रेगुलेशन्स के खिलाफ मानने से इनकार कर दिया। याचिकाकर्ता की इस दलील को भी ठुकरा दिया गया कि यह प्रावधान एक पति-पत्नी को फ्लैट के लिए आवेदन करने से रोकता है। कोर्ट ने कहा कि संबंधित प्रावधान ऐसे किसी व्यक्ति को उसके हक से वंचित नहीं कर रहा, जो 1968 के रेगुलेशन्स के तहत आवेदन करने के लिए योग्य है। 1968 के रेगुलेशंस में ऐसा कुछ नहीं है जो एक दंपती को साथ-साथ फ्लैट के लिए आवेदन करने की इजाजत देता हो। कोर्ट ने कहा कि एक परिवार में दंपती समेत सबको आवेदन की छूट देने से, उनमें से किसी एक के नाम पर भी फ्लैट के आवंटन का चांस निश्चित रूप से कम हो जाएगा।
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