नई दिल्ली
संसद हमले के दोषी मोहम्मद अफजल को फांसी की सजा सुनाने वाले हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस एसएन ढींगरा अब 1984 सिख दंगों से संबंधित 186 मामलों की जांच करेंगे। जस्टिस ढींगरा अप्रैल 2011 में हाई कोर्ट से रिटायर हुए थे। न्यायिक क्षेत्र में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। 84 दंगे के मामले में भी बतौर अडिशनल जज उन्होंने सुनवाई की थी और किशोरी लाल को फांसी की सजा सुनाई थी।
जस्टिस ढींगरा ने 6 जनवरी 1988 में निचली अदालत से जज के तौर पर काम शुरू किया। इस दौरान वह पोटा व टाडा के स्पेशल जज रहे। उन्होंने दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर भी काम किया। 28 फरवरी 2005 को उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट का जस्टिस बनाया गया था। पोटा के स्पेशल जज के तौर पर उन्होंने संसद हमले के मामले में फैसला दिया था। ढींगरा ने 18 दिसंबर 2002 को एक साल बाद मोहम्मद अफजल समेत 3 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी।
1997 में केंद्रीय मंत्री को भी दिया था दोषी करार
1996 में बतौर अडिशनल सेशन जज जब जस्टिस ढींगरा कड़कड़डूमा कोर्ट में कार्यरत थे तब उन्होंने 1984 दंगा मामले की सुनवाई की थी। उन्होंने सबसे पहले किशोरी लाल को फांसी की सजा सुनाई थी। उन्होंने फैसले में कहा था कि किशोरी ने बुचर का काम किया है। मार्च, 1997 में पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय को टाडा का जज रहते हुए जस्टिस ढींगरा ने दोषी करार दिया था। आरोप था कि राय ने दाऊद इब्राहिम के लोगों को पनाह दी थी। हालांकि शीर्ष अदालत ने राय को बरी कर दिया था।
दहेज प्रताड़ना मामले में दिया था ऐतिहासिक फैसला
हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर जस्टिस एसएन ढींगरा ने व्यवस्था दी थी कि दहेज प्रताड़ना के मामले में डीसीपी स्तर के अधिकारी के निर्देश पर ही गिरफ्तारी की जाए। इस फैसले का राजधानी दिल्ली में दूरगामी असर हुआ।
गरीब को न्याय के लिए तत्पर
निचली अदालत में जज रहते हुए जस्टिस ढींगरा ने संगम विहार के एक शख्स प्रेम पाल को झूठे मामले में फंसाने को बेहद गंभीरता से लिया था। पुलिस ने 13 मामलों में प्रेम पाल को फंसाया था। तब ढींगरा ने पुलिस पर कार्रवाई का निर्देश देते हुए प्रेम पाल को बरी किया था। उन्होंने कहा था कि यह केस उदाहरण है कि जब गरीब न्याय के लिए आवाज उठाता है तो पुलिस उसकी आवाज दबाने की कोशिश करती है।
संसद हमले के दोषी मोहम्मद अफजल को फांसी की सजा सुनाने वाले हाई कोर्ट के रिटायर जस्टिस एसएन ढींगरा अब 1984 सिख दंगों से संबंधित 186 मामलों की जांच करेंगे। जस्टिस ढींगरा अप्रैल 2011 में हाई कोर्ट से रिटायर हुए थे। न्यायिक क्षेत्र में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। 84 दंगे के मामले में भी बतौर अडिशनल जज उन्होंने सुनवाई की थी और किशोरी लाल को फांसी की सजा सुनाई थी।
जस्टिस ढींगरा ने 6 जनवरी 1988 में निचली अदालत से जज के तौर पर काम शुरू किया। इस दौरान वह पोटा व टाडा के स्पेशल जज रहे। उन्होंने दिल्ली के डिस्ट्रिक्ट जज के तौर पर भी काम किया। 28 फरवरी 2005 को उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट का जस्टिस बनाया गया था। पोटा के स्पेशल जज के तौर पर उन्होंने संसद हमले के मामले में फैसला दिया था। ढींगरा ने 18 दिसंबर 2002 को एक साल बाद मोहम्मद अफजल समेत 3 लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी।
1997 में केंद्रीय मंत्री को भी दिया था दोषी करार
1996 में बतौर अडिशनल सेशन जज जब जस्टिस ढींगरा कड़कड़डूमा कोर्ट में कार्यरत थे तब उन्होंने 1984 दंगा मामले की सुनवाई की थी। उन्होंने सबसे पहले किशोरी लाल को फांसी की सजा सुनाई थी। उन्होंने फैसले में कहा था कि किशोरी ने बुचर का काम किया है। मार्च, 1997 में पूर्व केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय को टाडा का जज रहते हुए जस्टिस ढींगरा ने दोषी करार दिया था। आरोप था कि राय ने दाऊद इब्राहिम के लोगों को पनाह दी थी। हालांकि शीर्ष अदालत ने राय को बरी कर दिया था।
दहेज प्रताड़ना मामले में दिया था ऐतिहासिक फैसला
हाई कोर्ट के जस्टिस के तौर पर जस्टिस एसएन ढींगरा ने व्यवस्था दी थी कि दहेज प्रताड़ना के मामले में डीसीपी स्तर के अधिकारी के निर्देश पर ही गिरफ्तारी की जाए। इस फैसले का राजधानी दिल्ली में दूरगामी असर हुआ।
गरीब को न्याय के लिए तत्पर
निचली अदालत में जज रहते हुए जस्टिस ढींगरा ने संगम विहार के एक शख्स प्रेम पाल को झूठे मामले में फंसाने को बेहद गंभीरता से लिया था। पुलिस ने 13 मामलों में प्रेम पाल को फंसाया था। तब ढींगरा ने पुलिस पर कार्रवाई का निर्देश देते हुए प्रेम पाल को बरी किया था। उन्होंने कहा था कि यह केस उदाहरण है कि जब गरीब न्याय के लिए आवाज उठाता है तो पुलिस उसकी आवाज दबाने की कोशिश करती है।
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