नई दिल्ली
दिल्ली हाई कोर्ट ने नगर निगम और सरकारी स्कूलों में कक्षा आठ तक के बच्चों को फेल नहीं करने की नीति से पैदा हुई चिंताजनक स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका पर नगर निगमों को जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया है। अदालत ने अभी तक जवाब दाखिल न करने के कारण इन नगर निगमों पर ढाई-ढाई हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि नगर निगम और सरकारी विद्यालयों में कक्षा 8 तक किसी भी बच्चे को नहीं रोकने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) से ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें 70 फीसदी से भी अधिक बच्चे हिंदी और अंग्रेजी पढ़ ही नहीं पाते हैं। इस याचिका में दलील दी गई है कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत इस नीति की राष्ट्रीय राजधानी के इन विद्यालयों द्वारा गलत व्याख्या करने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है।
इस मुद्दे की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने निगमों पर जुर्माना लगाते हुए कहा कि फरवरी 2016 से बार-बार मौका दिए जाने के बावजूद वे अपना जवाब दाखिल करने में विफल रहे। पीठ ने उन्हें तीन हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को 23 अप्रैल के लिये सूचीबद्ध कर दिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल स्कूलों में इस नीति को निरस्त करने की पहले ही मंजूरी दे चुका है।
सरकारी विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के बहुत ही खराब शिक्षण स्तर का जिक्र करते हुए सेंटर फॉर सिविल सोसायटी की जनहित याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2014 में गैरसरकारी संगठन प्रथम और दिल्ली सरकार के सर्वेक्षण में पता चला था कि सरकारी विद्यालयों में छठी से आठवीं कक्षा तक के 62 फीसदी से अधिक बच्चे अंग्रेजी में एक वाक्य तक नहीं पढ़ सकते और 72 फीसदी से अधिक बच्चे भाग नहीं कर सकते।
दिल्ली हाई कोर्ट ने नगर निगम और सरकारी स्कूलों में कक्षा आठ तक के बच्चों को फेल नहीं करने की नीति से पैदा हुई चिंताजनक स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका पर नगर निगमों को जवाब दाखिल करने का अंतिम अवसर दिया है। अदालत ने अभी तक जवाब दाखिल न करने के कारण इन नगर निगमों पर ढाई-ढाई हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि नगर निगम और सरकारी विद्यालयों में कक्षा 8 तक किसी भी बच्चे को नहीं रोकने की नीति (नो डिटेंशन पॉलिसी) से ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें 70 फीसदी से भी अधिक बच्चे हिंदी और अंग्रेजी पढ़ ही नहीं पाते हैं। इस याचिका में दलील दी गई है कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत इस नीति की राष्ट्रीय राजधानी के इन विद्यालयों द्वारा गलत व्याख्या करने की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है।
इस मुद्दे की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायमूर्ति सी. हरिशंकर की पीठ ने निगमों पर जुर्माना लगाते हुए कहा कि फरवरी 2016 से बार-बार मौका दिए जाने के बावजूद वे अपना जवाब दाखिल करने में विफल रहे। पीठ ने उन्हें तीन हफ्ते में हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले को 23 अप्रैल के लिये सूचीबद्ध कर दिया। केंद्रीय मंत्रिमंडल स्कूलों में इस नीति को निरस्त करने की पहले ही मंजूरी दे चुका है।
सरकारी विद्यालयों में कक्षा 6 से 8 तक के बच्चों के बहुत ही खराब शिक्षण स्तर का जिक्र करते हुए सेंटर फॉर सिविल सोसायटी की जनहित याचिका में कहा गया है कि वर्ष 2014 में गैरसरकारी संगठन प्रथम और दिल्ली सरकार के सर्वेक्षण में पता चला था कि सरकारी विद्यालयों में छठी से आठवीं कक्षा तक के 62 फीसदी से अधिक बच्चे अंग्रेजी में एक वाक्य तक नहीं पढ़ सकते और 72 फीसदी से अधिक बच्चे भाग नहीं कर सकते।
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