Friday, December 29, 2017

इन मामलों को लेकर सुर्खियों में रहा दिल्ली HC

नई दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय में साल 2017 में एक ओर जहां अरुण जेटली, अरविंद केजरीवाल, शशि थरूर और सुब्रमण्यन स्वामी जैसे हाई प्रोफाइल नेताओं ने सुर्खियां बटोरी तो दूसरी ओर अदालत ने एक फर्जी आध्यात्मिक गुरू पर शिकंजा कसा, जिसकी कारगुजारियां जेल में बंद गुरमीत राम रहीम से मिलती-जुलती हैं। यह मामला हरियाणा के डेरा सच्चा सौदा की तरह है जहां लड़कियों और महिलाओं का यौन शोषण किया जाता था और उन्हें आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम पर उत्तर-पश्चिम दिल्ली में वीरेंद्र देव दीक्षित द्वारा संचालित एक आश्रम में रखा जाता था।

उच्च न्यायालय ने इस मामले में सख्ती बरतते हुए CBI को इसकी जांच के आदेश दिए। इस साल जेटली-केजरीवाल के मानहानि मामलों ने भी खूब सुर्खियां बटोरी जिसमें दोनों नेता एक-दूसरे पर आरोप लगाते दिखे। इस मामले को लेकर तब हंगामा बरपा जब आम आदमी पार्टी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने भाजपा नेता के खिलाफ अशिष्ट शब्दों का इस्तेमाल किया। इसके बाद जेटली ने दिल्ली के मुख्यमंत्री के खिलाफ एक अन्य मुकदमा दायर किया।

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कांग्रेस नेता शशि थरूर का हाल ही में शुरू हुए एक टीवी चैनल और उसके वरिष्ठ पत्रकार से इस बात को लेकर टकराव हुआ कि उनकी पत्नी सुनंदा पुष्कर की वर्ष 2014 में हुई रहस्यमय मौत के मामले को कैसे प्रसारित किया गया। उच्च न्यायालय ने चैनल और उसके पत्रकारों को पुष्कर की मौत से संबंधित खबरें या बहस प्रसारित करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया लेकिन कहा कि रिपोर्टिंग संतुलित होनी चाहिए और थरूर के चुप रहने के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए।

इन घटनाक्रमों के बीच, उच्च न्यायालय मीडिया कवरेज का नियमन करने के दिशा-निर्देश बनाने पर भी विचार कर रहा है। निचली अदालतों में कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उच्च न्यायालय प्रशासनिक स्तर पर भी सक्रिय रहा। निचली अदालतों में कई न्यायाधीशों को हटाया या निलंबित किया गया। इन सभी संवेदनशील मामलों के अलावा, जनता दल (यूनाइटेड) के शरद यादव के नेतृत्व वाले गुट और अन्नाद्रमुक के टीटीवी दिनकरन के शशिकला गुट ने अपनी पार्टी का मूल चिह्न हासिल करने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। हालांकि उन्हें सफलता नहीं मिली।

भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेताओं को भी अदालत से कोई राहत नहीं मिली। अदालत ने हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह और उनकी पत्नी के खिलाफ सीबीआई के आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति के मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि यह दावा करने का कोई आधार नहीं है कि प्राथमिकी किसी राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा थी।

हाई-प्रोफाइल लोगों का ही नहीं बल्कि JNU छात्र नजीब अहमद के रहस्यमय परिस्थितियों में लापता होने का मामला भी उच्च न्यायालय में खूब छाया रहा। उच्च न्यायालय एक साल से भी अधिक समय से लापता छात्र के मामले की जांच पर सक्रिय रूप से नजर बनाए हुए है। उच्च न्यायालय ने यह मामला इस साल मई में सीबीआई को सौंपा। राजनीतिक और आपराधिक मामलों के अलावा अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में अवैध निर्माण और साफ-सफाई के मुद्दे पर भी सरकार और नगर निगमों को आडे़ हाथों लिया।

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