नई दिल्ली
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि अगर बलात्कार के मामले में लड़की (पीड़िता) का बयान भरोसा करने योग्य और विश्वसनीय हो तो किसी और साक्ष्य की जरूरत नहीं है। कोर्ट सिर्फ पीड़ित लड़की के बयान के आधार पर आरोपी को दोषी करार दे सकता है। बलात्कार मामले में लड़की के बयान को विश्वसनीय करार देते हुए उनके बयान और मेडिकल साक्ष्य के आधार पर अदालत ने आरोपी को 7 साल कैद की सजा सुनाते हुए यह टिप्पणी की।
दिल्ली उच्च न्यायालय की जस्टिस प्रतिभा रानी की खंडपीठ ने कहा, आरोपी ने कहीं यह नहीं कहा कि लड़की की सहमति थी। महिला अपने पति के रिश्तेदार पर बलात्कार का गलत आरोप क्यों लगाएगी, जबकि इससे परिवार में उनकी बदनामी का खतरा होगा। महिला का बयान विश्वसनीय है। साथ ही मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि हुई है। पुलिस जब मौके पर पहुंची तो आरोपी कमरे में बंद था, क्योंकि महिला ने उसे कमरे में बाहर से बंद कर दिया था।
घटना के बाद महिला ने जिस शख्स के सामने बताया कि उनका बलात्कार हुआ है, उसने इस बात को दोहराया कि महिला ने उनके सामने रोते हुए कहा था कि उनके पति के रिश्तेदार ने बलात्कार किया है। आरोपी का दोष साबित होता है, क्योंकि इस मामले में पीड़िता का बयान उसके खिलाफ है। उच्च न्यायालय ने कहा कि निचली अदालत के फैसले में दखल की जरूरत नहीं है और आरोपी की अर्जी खारिज कर दी और उसकी सात साल कैद की सजा को बरकरार रखा है।
क्या था मामला?
मामला महरौली थाने इलाके का है। पुलिस के मुताबिक 28 अक्टूबर 2015 को महिला अपने घर में थी। सुबह उनके पति नौकरी पर गए और ससुर गुरुद्वारे गए। इसी दौरान उनके पति का रिश्तेदार घर आया उसने जबरन कमरे में बंद करके महिला के साथ बलात्कार किया। महिला किसी तरह से कमरे से बाहर निकली और बाहर से कमरे को बंद कर दिया। महिला ने यह वाकया वहां शख्स को बताया। महिला रो रही थी। पुलिस ने आरोपी को कमरे से गिरफ्तार किया। महिला का मेडिकल कराया गया, जिसमें बलात्कार की पुष्टि हो गई। निचली अदालत ने 31 जनवरी 2017 को आरोपी को दोषी करार देते हुए सात साल कैद की सजा सुनाई।
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