Monday, April 3, 2017

नैशनल पॉलिटिक्स के लिए अहम दिल्ली MCD चुनाव

नई दिल्ली
दिल्ली के निकाय चुनाव में भले ही स्थानीय पार्षदों का किस्मत का फैसला होने जा रहा है। लेकिन इन चुनावों के नतीजे बीजेपी, कांग्रेस और आप समेत सभी पार्टियों की राष्ट्रीय राजनीति पर असर डालेंगे। जानें, किस दल के लिए क्या हो सकती हैं चुनौतियां...

बीजेपी की चुनौती आप के प्रभाव को खत्म करना

चुनाव की कमान सीधे अमित शाह संभाले हुए हैं। हालिया विधानसभा चुनावों में जीत के सिलसिले को पार्टी दिल्ली एमसीडी के चुनाव में भी कायम रखना चाहती है, इसकी तीन वजहें हैं। पहली, 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार का जो दाग लगा है वो इस चुनाव में जीत दर्ज कर छुड़ाना चाहती है। दूसरी, आम आदमी पार्टी उसके लिए नई चुनौती बनती जा रही है। केजरीवाल का अगला हल्लाबोल गुजरात में ही होना है, जहां इसी साल के अंत में चुनाव होने हैं।

बीजेपी को लगता है कि अगर केजरीवाल को इस चुनाव में पराजित कर दिया गया तो पंजाब और गोवा वो पहले ही हार चुके हैं, फिर गुजरात में बहुत प्रभावी नहीं रह जाएंगे। तीसरी वजह है, दिल्ली एमसीडी का चुनाव बीजेपी अगर कांग्रेस या आम आदमी पार्टी में से किसी से भी हार जाती है, तो यूपी सहित चार राज्यों में मिली कामयाबी पर यह एक हार भारी पड़ जायेगी, जिसे वो किसी भी कीमत पर नहीं चाहती। इसी वजह से पार्टी ने अपने 8 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चुनाव प्रचार में उतारने का फैसला किया है।

कांग्रेस की चुनौती
वापसी के मौके का भरपूर इस्तेमाल: पार्टी के लिए यह चुनाव एक तरह से वापसी का मौका है। 2014 में केंद्रीय सत्ता से बाहर होने के बाद वो जिस तरह से एक-एक कर राज्य विधानसभा के चुनाव भी हारती जा रही है, उससे बीजेपी का कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा है, वह हकीकत में तब्दील होता दिख रहा है। अगर वह एमसीडी का चुनाव भी हार गयी तो उसका असर पूरे देश में कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर तो पड़ेगा ही, एक तरह से वो गैर बीजेपी दलों के बीच नेतृत्व करने की अपनी प्रासंगिकता को भी खत्म कर देगी। राज्यों में सरकार चला रहे या प्रभावी भूमिका में मौजूद गैर बीजीपी दल उस कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार करने को आसानी से तैयार नहीं होंगे जो अब एमसीडी का चुनाव जीतने की भी हैसियत में नहीं रह गयी है। पार्टी किसी भी तरह दिल्ली एमसीडी का चुनाव जीतकर इस स्थिति से बचना चाहेगी, साथ ही गुजरात चुनाव के लिए भी नई ऊर्जा मिलेगी वरना वह एक पराजित योद्धा की तरह चुनाव के मैदान में होगी। दिल्ली की पॉलिटिक्स में वो मुख्य धारा में आना चाहेगी, जो अभी आप और बीजेपी में सिमट गयी है। इसी के मद्देनजर पार्टी अपनी ताकत झोके हुए है। पंजाब के मुख्यमन्त्री को भी प्रचार में उतारा जा रहा है।

'आप' की चुनौती
मिशन गुजरात पर पड़ेगा सीधा असर: आम आदमी पार्टी का आगे का राजनीतिक सफर बहुत कुछ इन चुनावों के नतीजो पर ही टिका है। पार्टी पंजाब और गोवा के जरिये दिल्ली से बाहर की पॉलिटिक्स में अपने पैर जमाना चाहती थी, उसके बाद उसका निशाना गुजरात था लेकिन पंजाब और गोवा में जिस तरीके से पार्टी को हार मिली है, उससे उसके गुजरात मिशन पर असर पड़ा है। इस बीच पार्टी के भीतर आंतरिक संकट की भी खबरें आने लगी हैं। एमसीडी की जीत ही पार्टी के आंतरिक संकट को खत्म कर सकती है, साथ ही गुजरात मिशन को ताकत दे सकती है। नेशनल लेवल पर बीजेपी के खिलाफ बनने वाले मोर्चे में भी उसकी भागीदारी हो सकती है लेकिन अगर नतीजे हक में नहीं गए तो सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को एक रखने की ही होगी और दिल्ली से बाहर दूसरे राज्यों में भी अपनी राजनीतिक जमीन तैयार करने का मंसूबा धरा का धरा रह जाएगा।

समाजवादी पार्टी की चुनौती
यूपी की हार के बाद दिल्ली से उम्मीद: समाजवादी पार्टी के लिए यह चुनाव यूपी में बुरी तरह हुई हार से टूटे मनोबल को एक ताकत दे सकते हैं। अखिलेश यादव दिल्ली एमसीडी के चुनाव में अपने प्रत्याशी उतार रहे हैं। दिल्ली में मूल रूप से यूपी निवासी वोटरों की कुछ सीटों पर अच्छी तादाद है। यादव और मुस्लिम वोटर भी अच्छा खासा है। समाजवादी पार्टी के नेताओं का कहना है कि मोदी हवा में यूपी में भले ही वोटर्स ने बीजेपी को वोट कर दिया हो लेकिन दूसरे राज्यों में रहने वाले यूपी के लोग आज भी मानते हैं कि अखिलेश यादव ने अपनी सरकार में बहुत अच्छा काम किया। पार्टी अगर दिल्ली में कुछ सीट जीत गयी तो वो इसे राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती है।

लोजपा की चुनौती
बिहारी वोटर्स पर दिखानी है पकड़:
2014 में रामविलास पासवान को एनडीए में शामिल कर केंद्र सरकार में बहुत ज्यादा महत्व देने पीछे जो असल वजह थी वह बिहार चुनाव थे लेकिन बिहार चुनाव में पासवान बीजेपी के लिए उतने मददगार साबित नहीं हुए जितनी उम्मीद थी। इसके बाद यह कहा जाने लगा कि एनडीए में उनकी पहले सी पूछ नहीं रही। दिल्ली में बिहारी वोटरों का खासा महत्व है, पासवान के लिए एक मौका है बीजेपी को अपनी अहमियत दिखाने का। बीजेपी भी दिल्ली में उन्हें नीतीश कुमार और लालू यादव के खिलाफ इस्तेमाल कर रही है। अगर पासवान बिहारी वोट बीजेपी को दिलाने में कामयाब हो गए तो उनका महत्व बढ़ना स्वाभाविक है।

जदयू/राजद की चुनौती
दिल्ली में बनाना है वोटर बेस:
नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव बिहारी वोटरों के जरिये दिल्ली में अपनी राजनीतिक ताकत खड़ी करना चाहते हैं। हालांकि यह दोनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ रही हैं लेकिन दोनों का मकसद एक है। दोनों पार्टिया बिहार से बाहर अपना अन्य राज्यों में अपना बेस वोट तैयार करना चाहती हैं। दिल्ली का एमसीडी चुनाव उनके लिए एक मौका है।

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