नई दिल्ली
मरीज बेहतरीन इलाज की उम्मीद लेकर एम्स पहुंच तो जाते हैं, लेकिन इलाज में उनका पूरा परिवार ही मरीज बन जाता है। मरीज और उनका परिवार रोज स्ट्रगल करते हैं। खाने से रात बिताने की जगह और दवा से लेकर डॉक्टर की अपॉइंटमेंट के लिए इधर-उधर भटकते हैं।
दिसंबर की सर्द रातों में कंबल में दुबके भूखे पेट इनकी हालत इतनी बदतर हो जाती है कि उनकी नजरें मददगार को खोजती हैं। ऐसा मददगार जो कुछ भी खिला दे, जांच करा दे, इलाज के लिए पैसे दे, ठिठुरन से बचने के लिए एक कंबल ही दे। ऐसे सैकड़ों लोगों के लिए हर दिन कई दिल्लीवाले एम्स पहुंचते हैं। वे अपना समय देते हैं, खाना खिलाते हैं, जरूरत पड़ने पर इलाज में भी मददगार साबित होते हैं। मीडिया की सुर्खियों से दूर रहने वाले ऐसे ही कुछ मददगार लोगों से हमने बात की।
पुखराज सिंह : हर हफ्ते एम्स कैंपस, धर्मशाला और नाइट शेल्टर के बाहर मरीजों की सुध लेने पहुंचने वाले पुखराज सिंह को देखते ही जरूरतमंद लोग जमा होने लगे। किसी को दवा चाहिए थी तो किसी को वीलचेयर, कोई ऐसा था जिसके टेस्ट नहीं हो पा रहे थे। उन्होंने सबकी बात सुनी और सबको मदद देने का भरोसा दिया। उनका कहना था कि यहां आकर मजबूरियां देखी और समझी जा सकती हैं। इन्हें खाना तो पेट भरने के लिए चाहिए, लेकिन इसके अलावा इन्हें दवा नहीं मिलती। एमआरआई जांच नहीं करा पाते। इनके लिए मैं लोगों से मांगता हूं। जितना मांगता हूं, उससे कहीं ज्यादा मिल जाता है। उन्होंने बच्चों के लिए 80 थर्मस मांगे थे और 220 थर्मस मिल गए। पुखराज बच्चों को बीमारी से लड़ने के लिए मदद करते हैं। उनके मन में पॉजिटिविटी लाने की कोशिश करते हैं, ताकि सही सोच के साथ हिम्मत बढ़े और मरीज जल्दी ठीक हो।
मनिका : नवरात्र के सीजन में पहली बार बेघर लोगों के लिए खाना लेकर आई मनिका अब रेग्युलर मददगार बन गई हैं। मनिका ने कहा कि वह पिछले एक साल से एम्स आ रही हैं। लोग अब भी उसी तरह परेशान हैं। अगर हम किसी भूखे का पेट भरने के लिए कुछ कर सकते हैं तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब से मैं इस काम से जुड़ी हूं, तब से ऐसे लोगों को ढूंढने लगी हूं जो मदद के लिए आगे आएं। अब तो कई लोग मिल गए हैं। जब भी किसी का फोन आता है, खाना लेकर पहुंच जाती हूं। मनिका ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता है कि मैं किसी की मदद कर रही हूं। यह मेरी सोशल जिम्मेदारी है। इसके बदले में मुझे इनका प्रेम और आर्शीवाद मिल रहा है। जब मैं ऐसे लोगों के पास होती हूं तो लगता है कि भगवान ने मुझे चुना है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।
शिप्रा नरुला : बच्चों की शादी करने के बाद शिप्रा नरुला घर की जिम्मेदारी से फ्री हो गई थीं। उन्होंने कहा कि काफी समय बच जाता था। एक दिन जब वह ओल्ड एज होम गईं तो वहां की हालत देखकर मेरे मन में सवाल उठने लगे और धीरे धीरे मैं स्लम में जाकर बच्चों की पढ़ाई से लेकर उन्हें खिलाने तक जाने लगी। शिप्रा बताती हैं कि एम्स के बाहर खाना बांटने में उन्हें सुकून मिलता है। यहां पर कई ऐसे बच्चे भी होते हैं, जो परिवार के साथ आए होते हैं। लेकिन उनके पास सर्दी में गर्म कपड़े नहीं होते। उन्हें गर्म कपड़े दिलाने से लेकर इलाज में मदद करने तक की कोशिश करती हैं।
सुधीर गुप्ता : दिल्ली लंगर सोसायटी का मकसद ही भूखे को खाना खिलाना है। इसके 100 से ज्यादा सेवादार हैं, जो एम्स और ईएसआई पंजाबी बाग में लंगर लगाते हैं। वे सोमवार, मंगलवार और गुरुवार को एम्स के बाहर लंगर लगाते हैं और बुधवार, शुक्रवार को ईएसआई पंजाबी बाग में। सोसायटी के सुधीर गुप्ता ने बताया कि पिछले 22 महीने से लंगर चलाया जा रहा है। इसमें चार ट्रस्टी हैं। एक दिन में 20 से 22 सेवादार इस लंगर में आते हैं। अगले लंगर में इनकी जगह बाकी लोग आते हैं। इस तरह सेवादार बदलते रहते हैं।
मरीज बेहतरीन इलाज की उम्मीद लेकर एम्स पहुंच तो जाते हैं, लेकिन इलाज में उनका पूरा परिवार ही मरीज बन जाता है। मरीज और उनका परिवार रोज स्ट्रगल करते हैं। खाने से रात बिताने की जगह और दवा से लेकर डॉक्टर की अपॉइंटमेंट के लिए इधर-उधर भटकते हैं।
दिसंबर की सर्द रातों में कंबल में दुबके भूखे पेट इनकी हालत इतनी बदतर हो जाती है कि उनकी नजरें मददगार को खोजती हैं। ऐसा मददगार जो कुछ भी खिला दे, जांच करा दे, इलाज के लिए पैसे दे, ठिठुरन से बचने के लिए एक कंबल ही दे। ऐसे सैकड़ों लोगों के लिए हर दिन कई दिल्लीवाले एम्स पहुंचते हैं। वे अपना समय देते हैं, खाना खिलाते हैं, जरूरत पड़ने पर इलाज में भी मददगार साबित होते हैं। मीडिया की सुर्खियों से दूर रहने वाले ऐसे ही कुछ मददगार लोगों से हमने बात की।
पुखराज सिंह : हर हफ्ते एम्स कैंपस, धर्मशाला और नाइट शेल्टर के बाहर मरीजों की सुध लेने पहुंचने वाले पुखराज सिंह को देखते ही जरूरतमंद लोग जमा होने लगे। किसी को दवा चाहिए थी तो किसी को वीलचेयर, कोई ऐसा था जिसके टेस्ट नहीं हो पा रहे थे। उन्होंने सबकी बात सुनी और सबको मदद देने का भरोसा दिया। उनका कहना था कि यहां आकर मजबूरियां देखी और समझी जा सकती हैं। इन्हें खाना तो पेट भरने के लिए चाहिए, लेकिन इसके अलावा इन्हें दवा नहीं मिलती। एमआरआई जांच नहीं करा पाते। इनके लिए मैं लोगों से मांगता हूं। जितना मांगता हूं, उससे कहीं ज्यादा मिल जाता है। उन्होंने बच्चों के लिए 80 थर्मस मांगे थे और 220 थर्मस मिल गए। पुखराज बच्चों को बीमारी से लड़ने के लिए मदद करते हैं। उनके मन में पॉजिटिविटी लाने की कोशिश करते हैं, ताकि सही सोच के साथ हिम्मत बढ़े और मरीज जल्दी ठीक हो।
मनिका : नवरात्र के सीजन में पहली बार बेघर लोगों के लिए खाना लेकर आई मनिका अब रेग्युलर मददगार बन गई हैं। मनिका ने कहा कि वह पिछले एक साल से एम्स आ रही हैं। लोग अब भी उसी तरह परेशान हैं। अगर हम किसी भूखे का पेट भरने के लिए कुछ कर सकते हैं तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। जब से मैं इस काम से जुड़ी हूं, तब से ऐसे लोगों को ढूंढने लगी हूं जो मदद के लिए आगे आएं। अब तो कई लोग मिल गए हैं। जब भी किसी का फोन आता है, खाना लेकर पहुंच जाती हूं। मनिका ने कहा कि मुझे ऐसा नहीं लगता है कि मैं किसी की मदद कर रही हूं। यह मेरी सोशल जिम्मेदारी है। इसके बदले में मुझे इनका प्रेम और आर्शीवाद मिल रहा है। जब मैं ऐसे लोगों के पास होती हूं तो लगता है कि भगवान ने मुझे चुना है और इससे ज्यादा कुछ नहीं।
शिप्रा नरुला : बच्चों की शादी करने के बाद शिप्रा नरुला घर की जिम्मेदारी से फ्री हो गई थीं। उन्होंने कहा कि काफी समय बच जाता था। एक दिन जब वह ओल्ड एज होम गईं तो वहां की हालत देखकर मेरे मन में सवाल उठने लगे और धीरे धीरे मैं स्लम में जाकर बच्चों की पढ़ाई से लेकर उन्हें खिलाने तक जाने लगी। शिप्रा बताती हैं कि एम्स के बाहर खाना बांटने में उन्हें सुकून मिलता है। यहां पर कई ऐसे बच्चे भी होते हैं, जो परिवार के साथ आए होते हैं। लेकिन उनके पास सर्दी में गर्म कपड़े नहीं होते। उन्हें गर्म कपड़े दिलाने से लेकर इलाज में मदद करने तक की कोशिश करती हैं।
सुधीर गुप्ता : दिल्ली लंगर सोसायटी का मकसद ही भूखे को खाना खिलाना है। इसके 100 से ज्यादा सेवादार हैं, जो एम्स और ईएसआई पंजाबी बाग में लंगर लगाते हैं। वे सोमवार, मंगलवार और गुरुवार को एम्स के बाहर लंगर लगाते हैं और बुधवार, शुक्रवार को ईएसआई पंजाबी बाग में। सोसायटी के सुधीर गुप्ता ने बताया कि पिछले 22 महीने से लंगर चलाया जा रहा है। इसमें चार ट्रस्टी हैं। एक दिन में 20 से 22 सेवादार इस लंगर में आते हैं। अगले लंगर में इनकी जगह बाकी लोग आते हैं। इस तरह सेवादार बदलते रहते हैं।
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