नई दिल्ली
साउथ ईस्ट एशिया में पहली बार एम्स ने रोबॉटिक आर्म की मदद से न्यूरोसर्जरी को अंजाम दिया है। एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने अब तक 60 मरीजों की सफल सर्जरी कर चुके हैं। डॉक्टर इस रोबॉटिक आर्म का इस्तेमाल मरीज के दिमाग के अंदर की बीमारी का सही लोकेशन जानने और वहां तक पहुंचने के लिए कर रहे हैं, ताकि सर्जरी क्यूरेट हो, मरीज को सेफ्टी मिले और रिजल्ट बेहतर हो।
एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर पी शरतचंद्रा ने कहा कि पिछले आठ महीने में 60 मरीजों की सर्जरी की जा चुकी है, जिसमें 65 पर्सेंट मरीज मिरगी के थे और 35 पर्सेंट मरीज पीट्यूटरी ट्यूमर के थे। डॉक्टर ने कहा कि कई बार मरीज को मिरगी आती है लेकिन कहां से आती है इसका पता जांच में भी नहीं चलता है। उन्होंने कहा कि एक यंग मरीज को रोज रात में मिरगी के दौरे पड़ते थे, छह से सात बार एमआरआई कराई गई, लेकिन पता ही नहीं चल पाता था कि मिरगी ब्रेन के किस पॉइंट से आ रही है। जब रोबॉटिक आर्म में लगे मैग्नेटिक सेफ्लोग्रफी की गई तो मरीज की मिरगी आने का सही पॉइंट का पता चल गया और उस पॉइंट तक रोबॉट की मदद से पहुंचकर सर्जरी की गई। सर्जरी सफल रही और मरीज को पूरी जिंदगी मिरगी से छुटकारा मिल गया।
डॉक्टर शरतचंद्रा ने बताया कि आमतौर पर जो रोबॉट किडनी, यूरोलॉजी या मोटापे की सर्जरी में यूज होता है, उसमें तीन आर्म होते हैं। यह रोबॉट एक तरह से सर्जरी में मदद करता है। लेकिन, ब्रेन की सर्जरी के लिए जो रोबॉट यूज हो रहा है उसमें सिंगल आर्म होते हैं और यह डॉक्टर को बीमारी वाले स्थान तक पहुंचने में मदद करता है। सर्जरी डॉक्टर को ही करनी होती है। उन्होंने कहा कि यह कंप्यूटर बेस्ड रोबॉट है, जिसमें मेमोरी होती है, उस मेमरी में मरीज की एमआरआई की जांच रिपोर्ट फिट कर दी जाती है और जरूरी कमांड दे दिया जाता है। इसके बाद रोबॉट में लगे टेलिस्कोप की मदद से रोबॉट खुद उस पॉइंट तक पहुंच जाता है, इसमें सर्जरी के दौरान जरा सा भी इधर-उधर होने की संभावना नहीं होती है।
एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉक्टर बीएस शर्मा के अनुसार ब्रेन पूरे बॉडी को कमांड देता है। यह बड़ी कॉम्प्लेक्स स्थिति होती है, जिसमें एक मिस्टेक से दूसरी बीमारी होने का भी खतरा रहता है इसलिए, सर्जन को रोबॉट की मदद से बीमारी वाले स्थान तक पहुंचने में मदद मिलती है और इससे बीमारी वाले पॉइंट के आसपास कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इस बारे में न्यूरोसर्जन और सेंटर के चीफ डॉक्टर एके महापात्रा ने कहा कि आने वाले समय में इससे भी अडवांस रोबॉट होगा और डॉक्टर की बजाए रोबॉट ही सर्जरी करेगा। डॉक्टर महापात्रा ने कहा कि ब्रेन की सर्जरी लंबी होती है, इसमें रोबोट डॉक्टर की मदद करता है और काफी समय बचाता है। उन्होंने कहा कि दुनिया की बेस्ट तकनीक अब एम्स में भी आम लोगों के लिए फ्री में उपलब्ध है।
साउथ ईस्ट एशिया में पहली बार एम्स ने रोबॉटिक आर्म की मदद से न्यूरोसर्जरी को अंजाम दिया है। एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टरों ने अब तक 60 मरीजों की सफल सर्जरी कर चुके हैं। डॉक्टर इस रोबॉटिक आर्म का इस्तेमाल मरीज के दिमाग के अंदर की बीमारी का सही लोकेशन जानने और वहां तक पहुंचने के लिए कर रहे हैं, ताकि सर्जरी क्यूरेट हो, मरीज को सेफ्टी मिले और रिजल्ट बेहतर हो।
एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के डॉक्टर पी शरतचंद्रा ने कहा कि पिछले आठ महीने में 60 मरीजों की सर्जरी की जा चुकी है, जिसमें 65 पर्सेंट मरीज मिरगी के थे और 35 पर्सेंट मरीज पीट्यूटरी ट्यूमर के थे। डॉक्टर ने कहा कि कई बार मरीज को मिरगी आती है लेकिन कहां से आती है इसका पता जांच में भी नहीं चलता है। उन्होंने कहा कि एक यंग मरीज को रोज रात में मिरगी के दौरे पड़ते थे, छह से सात बार एमआरआई कराई गई, लेकिन पता ही नहीं चल पाता था कि मिरगी ब्रेन के किस पॉइंट से आ रही है। जब रोबॉटिक आर्म में लगे मैग्नेटिक सेफ्लोग्रफी की गई तो मरीज की मिरगी आने का सही पॉइंट का पता चल गया और उस पॉइंट तक रोबॉट की मदद से पहुंचकर सर्जरी की गई। सर्जरी सफल रही और मरीज को पूरी जिंदगी मिरगी से छुटकारा मिल गया।
डॉक्टर शरतचंद्रा ने बताया कि आमतौर पर जो रोबॉट किडनी, यूरोलॉजी या मोटापे की सर्जरी में यूज होता है, उसमें तीन आर्म होते हैं। यह रोबॉट एक तरह से सर्जरी में मदद करता है। लेकिन, ब्रेन की सर्जरी के लिए जो रोबॉट यूज हो रहा है उसमें सिंगल आर्म होते हैं और यह डॉक्टर को बीमारी वाले स्थान तक पहुंचने में मदद करता है। सर्जरी डॉक्टर को ही करनी होती है। उन्होंने कहा कि यह कंप्यूटर बेस्ड रोबॉट है, जिसमें मेमोरी होती है, उस मेमरी में मरीज की एमआरआई की जांच रिपोर्ट फिट कर दी जाती है और जरूरी कमांड दे दिया जाता है। इसके बाद रोबॉट में लगे टेलिस्कोप की मदद से रोबॉट खुद उस पॉइंट तक पहुंच जाता है, इसमें सर्जरी के दौरान जरा सा भी इधर-उधर होने की संभावना नहीं होती है।
एम्स के न्यूरोसर्जरी डिपार्टमेंट के एचओडी डॉक्टर बीएस शर्मा के अनुसार ब्रेन पूरे बॉडी को कमांड देता है। यह बड़ी कॉम्प्लेक्स स्थिति होती है, जिसमें एक मिस्टेक से दूसरी बीमारी होने का भी खतरा रहता है इसलिए, सर्जन को रोबॉट की मदद से बीमारी वाले स्थान तक पहुंचने में मदद मिलती है और इससे बीमारी वाले पॉइंट के आसपास कोई नुकसान नहीं पहुंचता है। इस बारे में न्यूरोसर्जन और सेंटर के चीफ डॉक्टर एके महापात्रा ने कहा कि आने वाले समय में इससे भी अडवांस रोबॉट होगा और डॉक्टर की बजाए रोबॉट ही सर्जरी करेगा। डॉक्टर महापात्रा ने कहा कि ब्रेन की सर्जरी लंबी होती है, इसमें रोबोट डॉक्टर की मदद करता है और काफी समय बचाता है। उन्होंने कहा कि दुनिया की बेस्ट तकनीक अब एम्स में भी आम लोगों के लिए फ्री में उपलब्ध है।
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