नई दिल्ली
तीन बार टलने के बाद आखिरकार दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की अगली बैठक 7 नवंबर को तय की गई है। हालांकि अभी यह साफ नहीं हो सका है कि बोर्ड बैठक में दिल्ली मेट्रो के किराए को लेकर बनी कमिटी की सिफारिशों को रखा जाएगा या नहीं। शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो के बोर्ड की बैठक तय कर ली गई है, लेकिन अभी उसके अजेंडे का खुलासा नहीं हो सका है।
यही वजह है कि मेट्रो के किराए को लेकर इस बैठक में चर्चा होगी या नहीं, इस पर सस्पेंस बरकरार है। इससे पहले किराया तय करने वाली कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद 27 सितंबर को बोर्ड की बैठक तय की गई थी, लेकिन बाद में उसे ऐन मौके पर टाल दिया गया था। बाद में दो बार फिर मेट्रो के बोर्ड की बैठक बुलाने का प्रयास किया गया, लेकिन दोनों बार ही बैठक को टाल दिया गया।
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि दरअसल, अभी दिल्ली मेट्रो के लिए सबसे अहम मामला किराए में बढ़ोतरी से ही जुड़ा हुआ है। बीते सात साल से किराया न बढ़ने की वजह से दिल्ली मेट्रो लगातार वित्तीय दबाव में है। हालत यह हो गई है कि उसका घाटा 250 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। मंत्रालय और दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों के साथ जो किराया कमिटी गठित की गई थी, उसने भी किराया बढ़ाने की सिफारिश की है।
रिपार्ट लागू करना अनिवार्य : दिल्ली मेट्रो के कामकाज से जुड़े जानकारों का कहना है कि दिल्ली मेट्रो ऑपरेशन एंड मेंनटेनेंस ऐक्ट 2002 के तहत यह प्रावधान है कि किराया कमिटी की सिफारिशों संबंधी रिपोर्ट के बाद नया किराया लागू करना जरूरी होता है। हालांकि बोर्ड को यह अधिकार है कि वह किराया कमिटी की सिफारिशों से कम तो किराया तय कर सकता है, लेकिन उससे अधिक नहीं। यह भी नियम है कि किराया कमिटी की सिफारिश होने के बाद उन्हें खारिज नहीं किया जा सकता।
दिल्ली मेट्रो के मामले में बीते चार साल से यही संकेत मिलता आ रहा है कि चुनावों की वजह से हर बार इस मामले को टाला जाता रहा है। हालांकि इस साल सरकार ने किराया कमिटी के गठन का फैसला कर लिया, लेकिन अब रिपोर्ट आने के बावजूद किराया बढ़ाने के फैसले पर हिचकिचाहट की वजह आने वाले कुछ महीनों में दिल्ली नगर निगम के चुनाव हैं। केंद्र सरकार को चिंता है कि किराया बढ़ाने के फैसले की गाज उस पर न गिरे और विपक्षी आम आदमी पार्टी व कांग्रेस इसे ही उसके खिलाफ मुद्दा न बना ले। लगभग इसी तरह की धारणा दिल्ली सरकार की भी है। लेकिन महत्वपूर्ण है कि जिस कमिटी ने किराया बढ़ाने का फैसला किया है, उसमें दोनों ही सरकारों के प्रतिनिधि थे।
तीन बार टलने के बाद आखिरकार दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की अगली बैठक 7 नवंबर को तय की गई है। हालांकि अभी यह साफ नहीं हो सका है कि बोर्ड बैठक में दिल्ली मेट्रो के किराए को लेकर बनी कमिटी की सिफारिशों को रखा जाएगा या नहीं। शहरी विकास मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक दिल्ली मेट्रो के बोर्ड की बैठक तय कर ली गई है, लेकिन अभी उसके अजेंडे का खुलासा नहीं हो सका है।
यही वजह है कि मेट्रो के किराए को लेकर इस बैठक में चर्चा होगी या नहीं, इस पर सस्पेंस बरकरार है। इससे पहले किराया तय करने वाली कमिटी की रिपोर्ट आने के बाद 27 सितंबर को बोर्ड की बैठक तय की गई थी, लेकिन बाद में उसे ऐन मौके पर टाल दिया गया था। बाद में दो बार फिर मेट्रो के बोर्ड की बैठक बुलाने का प्रयास किया गया, लेकिन दोनों बार ही बैठक को टाल दिया गया।
मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि दरअसल, अभी दिल्ली मेट्रो के लिए सबसे अहम मामला किराए में बढ़ोतरी से ही जुड़ा हुआ है। बीते सात साल से किराया न बढ़ने की वजह से दिल्ली मेट्रो लगातार वित्तीय दबाव में है। हालत यह हो गई है कि उसका घाटा 250 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। मंत्रालय और दिल्ली सरकार के प्रतिनिधियों के साथ जो किराया कमिटी गठित की गई थी, उसने भी किराया बढ़ाने की सिफारिश की है।
रिपार्ट लागू करना अनिवार्य : दिल्ली मेट्रो के कामकाज से जुड़े जानकारों का कहना है कि दिल्ली मेट्रो ऑपरेशन एंड मेंनटेनेंस ऐक्ट 2002 के तहत यह प्रावधान है कि किराया कमिटी की सिफारिशों संबंधी रिपोर्ट के बाद नया किराया लागू करना जरूरी होता है। हालांकि बोर्ड को यह अधिकार है कि वह किराया कमिटी की सिफारिशों से कम तो किराया तय कर सकता है, लेकिन उससे अधिक नहीं। यह भी नियम है कि किराया कमिटी की सिफारिश होने के बाद उन्हें खारिज नहीं किया जा सकता।
दिल्ली मेट्रो के मामले में बीते चार साल से यही संकेत मिलता आ रहा है कि चुनावों की वजह से हर बार इस मामले को टाला जाता रहा है। हालांकि इस साल सरकार ने किराया कमिटी के गठन का फैसला कर लिया, लेकिन अब रिपोर्ट आने के बावजूद किराया बढ़ाने के फैसले पर हिचकिचाहट की वजह आने वाले कुछ महीनों में दिल्ली नगर निगम के चुनाव हैं। केंद्र सरकार को चिंता है कि किराया बढ़ाने के फैसले की गाज उस पर न गिरे और विपक्षी आम आदमी पार्टी व कांग्रेस इसे ही उसके खिलाफ मुद्दा न बना ले। लगभग इसी तरह की धारणा दिल्ली सरकार की भी है। लेकिन महत्वपूर्ण है कि जिस कमिटी ने किराया बढ़ाने का फैसला किया है, उसमें दोनों ही सरकारों के प्रतिनिधि थे।
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