Saturday, September 3, 2016

गाड़ी में हल्की चोट, और पूरे परिवार का रिसता जख्म

दिल्ली के तुर्कमान गेट का वो चौराहा जहां 17 महीने पहले 5 अप्रैल 2015 को रोड रेज की घटना में शहनवाज की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। हत्या की वजह गाड़ी में लगा एक डेंट था। वो चौराहा आज पहले से ज्यादा व्यस्त है। रिक्शे, आॅटो, ठेले, दुपहिया, चौपहिया वाहन बेतरतीबी से खड़े हैं। इनसे सड़कें संकरी हो गई हैं। यहां जाम है, हॉर्न है, धूप है और वाहनों का शोर है। यहां और कुछ नहीं बदला। लेकिन एक चीज जरूर बदल गई है। उसके परिवार की तस्वीर जिसमें वो अब कभी नहीं दिखेगा।

कहते हैं कि वक्त हर घाव भर देता है। एक सच यह भी है कि हर दिन रिसता घाव जल्दी नहीं भरता। लेकिन ऐसे जख्म के बारे में क्या कहा जाए जिसे वक्त ही कुरेदने बैठ गया हो। कुछ ऐसा घाव मां नूरजहां का है जिन्होंने अपना 39 साल का बेटा और फरजाना ने अपना शौहर खोया है। लगभग 50 साल की नूरजहां के लिए इस पर बात करना आज भी उतना ही मुश्किल था। जैसे सब कुछ आज ही घटा हो। बेटे शहनवाज के बारे में पूछे जाने पर उनकी आंखें छलक उठीं। थोड़ा सा दर्द बहने के बाद कहती हैं, ‘अब मन हल्का हो गया। पूछिए क्या पूछना है’। नूरजहां ने बताया कि इस मौत पर खूब राजनीति हो चुकी है। प्रदेश के मुखिया ने 10 लाख देने का वादा किया। गाड़ी भेज कर बुलवाया, लगा वो मरहम लगाने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी राजनीति खूब चमकी होगी। लेकिन मदद का वादा आज भी अधूरा है। बच्चों की पूरी पढ़ाई का खर्च उठाने की बात करने वाले स्थानीय नेता आसिफ अहमद खान सामने आए। लेकिन दोनों बच्चों 14 साल के फहाद और 13 साल के कैफ की स्कूल दाखिले की फीस देकर निकल गए। बच्चों की किताबों और ड्रेस दिलाने का वादा किया था। लेकिन कई बार कहने पर भी आज तक पूरा नहीं हो सका। आठ साल  की बेटी तलबिया की फीस स्कूल ने ही माफ कर दी।

शहनवाज की बेवा फरजाना कहती हैं, ‘क्या बिगाड़ा था किसी का उन्होंने। गाड़ी में सिर्फ डेंट ही तो लगा था। क्या एक डेंट की कीमत किसी परिवार की जिंदगी उजाड़ कर वसूली जाती है। ये कैसा न्याय है’। फरजाना ने बताया, ‘बाप का साया उठने के बाद बच्चे बेकाबू हो गए हैं। वे किसी की नहीं सुनते, पढ़ाई लिखाई नहीं करते और सारा दिन घर से बाहर रहते हैं। अब इनके भविष्य की चिंता है, अल्लाह इन्हें संभाले यही दुआ है’। उन्होंने कहा कि हमारा परिवार अच्छा है, सभी लोग साथ देते हैं, लेकिन फिर भी कमी खलती है। ये वही समझ सकता है जिसने अपना शौहर खोया हो।

फहाद और कैफ उस वक्त शहनवाज के साथ थे जब उन्हीं की गली के पहले मकान में रहने वाले हत्यारे तुर्कमान गेट के चौराहे पर उसके पिता पर टूट पड़े थे। कैफ ने बताया कि जब लोगों ने उसके पिता को मारा तो आस-पास से कोई उन्हें बचाने नहीं आया। लोग जाम लगाकर यह सब देखते रहे। मारने वालों ने कहा, ‘जान मार दो पता चले मोहल्ले का दादा कौन है’। नन्हा सा कैफ कहता है, ‘उस चौराहे से गुजरने पर अब डर लगता है’। छोटी सी तलबिया को आज भी लगता है कि अब्बू बाजार गए हैं और आ जाएंगे। फहाद से बात करने की कोशिश की गई लेकिन वह सामने नहीं आया। भाई सोहेल कहते हैं, ‘हर दिन हत्यारों को देखना मजबूरी है। रोज उनसे नजरें मिलती हैं जिन्होंने भाई की हत्या की। अब सरकार और अल्लाह ही यह फैसला करे कि गाड़ी में लगे डेंट की सजा अगर मौत है तो किसी के शौहर, किसी के बेटे और किसी का वालिद को छीन लेने वाले की सजा क्या मुकर्रर हो’।

 

पति के हत्यारों के परिजनों ने कहा कि जितने चाहो पैसे लो, पर केस खत्म करो। हम सब कुछ बेच कर उन्हें दो करोड़ देंगे। वे शहनवाज लौटा दें।
– फरजाना, पत्नी

आज भी अब्बू के बाजार से लौटने का इंतजार कर रही तलबिया

जब अब्बू को मार रहे थे तो कोई बचाने नहीं आया। वे कह रहे थे कि जान मार दो, पता चले यहां का दादा कौन है।
– कैफ, बेटा

प्रदेश के मुखिया ने 10 लाख देने का वादा किया। उनकी राजनीति चमकी होगी, पर मदद का वादा अधूरा है।
– नूरजहां, मां

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