Sunday, July 3, 2016

पंजाब: केजरीवाल ने पेश किया यूथ मेनिफेस्‍टो, बीजेपी पर साधा निशाना

दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी (आप) के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल रविवार से तीन दिन की पंजाब यात्रा पर हैं। इस दौरान वो वहां कई चुनावी कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। गौर करने वाली बात यह है कि दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के 16 महीने में आप के आठ विधायक विभिन्न मामलों में हवालात की हवा खा चुके हैं। अभी ताजा विवाद दिल्ली के महरौली से आप के विधायक नरेश यादव को लेकर है। उनका नाम पंजाब के संगरूर जिले के मलेरकोटला में एक धार्मिक ग्रंथ के अपमान के मामले में सामने आया है।

आप प्रचंड बहुमत से भ्रष्टाचार और पारदर्शी सरकार देने के नाम पर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई थी। लेकिन आलम ये है कि खुद केजरीवाल को भ्रष्टाचार के मामले में अपने ही मंत्री को हटाना पड़ा। जबकि दूसरे मंत्री को भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप में जबरन हटाया गया। उन्होंने खुद अपनी पार्टी के लोकपाल तक को हटा दिया, जिसे नया बनाया वह भी छोड़ कर जा चुका है। केजरीवाल ने कानूनों में बदलाव की स्वीकृति लिए बिना ही 21 विधायकों को संसदीय सचिव बना दिया। अब संसदीय सचिव बनाए गए 21 विधायकों की सदस्यता पर चुनाव आयोग की तलवार लटक रही है।

इसके अलावा और भी कई मामले हैं, जिससे पता चलता है कि केजरीवाल और उनकी टीम के पास शासन और सत्ता की न तो समझ है और न उनमें उसे सीखने-समझने में कोई दिलचस्पी। दिल्ली की सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 70 घोषणापत्र बनाने और 70 सूत्री संकल्प घोषित करने वाले केजरीवाल के पास अब उन सवालों के जबाब नहीं हैं जो विपक्ष उठा रहा है। उन 70 वायदों पर हर साल करीब 17 सौ करोड़ रुपए खर्च हो रहे हैं। लेकिन 400 यूनिट तक बिजली बिल आधा करने और 20 हजार लीटर तक के पानी के बिल माफ करने के अलावा ज्यादातर पर कोई काम होता नहीं दिखा। अलबत्ता पहले दिन से उनकी उपराज्यपाल और केंद्र सरकार से स्तरहीन टकराव जारी है।

पिछली बार 13 फरवरी 2014 को जनलोकपाल बिल के दूसरे रूप को बिना केंद्र की अनुमति विधानसभा में पेश करने से रोकने को उपराज्यपाल ने विधानसभा को संदेश भेजा। इससे नाराज अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा देते हुए केजरीवाल ने एलान किया था कि दोबारा सत्ता में आने के 24 घंटे के भीतर वे रामलीला मैदान में विधानसभा का सत्र बुलाकर इसे पास करेंगे। दूसरी बार उसी रामलीला मैदान में 14 फरवरी 2015 को शपथ लेते हुए केजरीवाल ने दो बड़ी घोषणाएं की। पांच साल दिल्ली के लोगों की सेवा करेंगे, कहीं और नहीं जाएंगे साथ ही देश भर में लोकसभा चुनाव लड़ने पर उन्होंने लोगों से माफी भी मांगी थी। बल्कि उसी दिन इस बात की बुनियाद पड़ गई कि पार्टी को अखिल भारतीय स्वरूप देने वाले पार्टी नेताओं योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे नेता अब आप में नहीं रह पाएंगे। उस दिन के भाषण में उन्होंने दूसरे दिन जनलोकपाल पेश करने की चर्चा नहीं की। धीरे-धीरे उन सभी को बाहर किया गया जो केजरीवाल के फैसलों पर सवाल उठाते थे।

विधानसभा के शीतकालीन सत्र में केंद्र की इजाजत के बगैर 14 विधेयकों को पास किया। उसमें बहुचर्चित जनलोकपाल भी है, जिसे मूल रूप से ही बदल दिया गया। प्रक्रियाओं का पालन न किए जाने के कारण केंद्र सरकार ने विधायकों की अयोग्यता निवारण बिल को दिल्ली सरकार के पास वापस भेज दिया है क्योंकि राष्टÑपति ने उसे रद्द कर दिया है। 13 बिल अभी भी लटके हुए हैं। चूंकी दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है इसलिए उसे ज्यादातर फैसले राष्ट्रपति के प्रतिनिधि उपराज्यपाल को विश्वास में लेकर ही करने पड़ेंगे। यह बात साफ है कि दिल्ली विधानसभा में वे विधेयक जिनमें सरकारी फंड से पैसे खर्च होते हैं, उन्हें केंद्र की अनुमति के बिना पास करना तो दूर पेश भी नहीं किया जा सकता है। केजरीवाल के हर स्तर पर होते विवाद ने उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठा दिए हैं। केंद्र की भाजपा सरकार, उपराज्यपाल, दिल्ली पुलिस,आइएएस अधिकारी, दानिक्स अधिकारी से लेकर हर वर्ग के लोगों से आए दिन उनकी सरकार का विवाद हो रहा है।

उपराज्यपाल को विधानसभा की कमेटी में पेश करने का समन जारी करने से लेकर उन पर प्राथमिकी दर्ज करने तक की मांग कर डाली गई। प्रधानमंत्री के सरकारी निवास पर परंपराओं को दरकिनार कर खुद उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अगुवाई में विधायकों ने गिरफ्तारी दी। पूर्ण राज्य की मांग को लेकर केजरीवाल बार-बार दिल्ली में जनमत संग्रह की मांग करते हैं। उनकी सरकार ने अपने स्तर से इसकी इसकी शुरुआत भी कर दी है। लेकिन संविधान में इस तरह की रायशुमारी का कोई प्रावधान नहीं है। अब लोग भी उनकी रायशुमारी करवाने पर सवाल उठा रहे हैं।

इधर, विपक्षी भी उनके खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। आरोप है कि केजरीवाल ने ठेके पर काम करने वाले लाखों कर्मचारियों जिनमें विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारी, अध्यापक, डॉक्टर, नर्सें, डीटीसी कर्मचारी, डीटीसी ड्राइवर और कंडक्टर आदि को नियमित करने का वायदा किया था। लेकिन इनके साथ जबरदस्त धोखा हुआ। राजधानी की 1900 अनाधिकृत कॉलोनियों को नियमित कर उनकी पक्की रजिस्ट्री का वादा भी अधूरा है। दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन बार-बार पंजाब जाकर केजरीवाल की वायदा खिलाफी बता रहे हैं। विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेंद्र गुप्ता ने तो 33 सूत्री आरोपपत्र पंजाबी (गुरमुखी) में तैयार किया है। इसे पूरे पंजाब में बंटवाया जाएगा। गुप्ता ने पंजाब की जनता को सावधान करते हुए पत्र में लिखा है कि आप ने दिल्लीवालों से छल किया है। अब वे पंजाब की जनता को ठगने के लिए अनेक लुभावने वायदे कर रहे हैं। उन्होंने दिल्ली की जनता से 70 वायदे किए थे, इनमें से एक भी वायदा पूरा नहीं हुआ है।

इन आरोपों से खुद को बेखबर दिखाते हुए केजरीवाल ने 14 फरवरी 2015 की सार्वजनिक घोषणा को दरकिनार कर पहले पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा की। अब वो गोवा, गुजरात और उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव भी लड़ने की बात कर रहे हैं। इतना ही नहीं वे पंजाब में वही भाषा बोल रहे हैं जो दिल्ली के चुनावों में बोलते थे।


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