Friday, July 1, 2016

कांग्रेस पर शिकंजा और जांच में आंच

यह लाख टके का सवाल है कि आखिर क्यों जस्टिस एसएन ढींगड़ा ने आखिरी लम्हे में रॉबर्ट वाड्रा के कथित जमीन सौदों की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपने के बजाए और समय मांग लिया। ऐसा तब हुआ जबकि गुरुवार सवेरे ही ढींगड़ा सरकार से रिपोर्ट दाखिल करने का समय मांग चुके थे। रिपोर्ट आने की खबर से ही कांग्रेस ने सरकार के साथ-साथ जस्टिस ढींगड़ा पर धावा बोल दिया था। पूर्व मंत्री कैप्टन अजय सिंह यादव ने तो ढींगड़ा पर आरोपों की झड़ी लगा दी। यादव ने ‘जनसत्ता’ से कहा कि सरकार ने ढींगड़ा की प्रार्थना पर उनके गांव में एक सड़क पक्की करवा दी जिस पर लाखों रुपए खर्च किए।

कैप्टन ने कहा, ‘ऐसे में कैसी रिपोर्ट? जस्टिस ढींगड़ा सरकार से लाभ लेने के बाद जो भी रिपोर्ट देेंगे वह सरकार के आदेशानुसार ही होगी’। पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा और कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला भी गांधी परिवार के पक्ष में मैदान में आ गए और न्यायिक आयोग को संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया।
जस्टिस ढींगड़ा ने कहा कि गुरुवार सुबह उन्हें एक व्यक्ति ने कुछ ऐसे अहम दस्तावेज मुहैया करवाए, जिनकी जांच इस रिपोर्ट के लिए जरूरी है। लिहाजा उन्होंने सरकार से और वक्त मांग लिया ताकि जांच पूरी हो। अब आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया है।
सूत्रों की मानें तो यह सब एक सोची-समझी चाल के तहत किया गया। सरकार ने पहले छह हफ्ते का समय दिया था जो 15 अगस्त को समाप्त होना है। और उससे दो दिन पहले ही संसद का मानसून सत्र समाप्त होगा। ढींगड़ा आयोग का कार्यकाल कांग्रेस पर दबाव बनाने की नीयत से बढ़ाया गया है। संसद में जीएसटी बिल को लेकर सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर है। मौजूदा हालात में इसके पास होने की कोई संभावना नहीं दिख रही। ऐसे में सरकार ने कांग्रेस पर दबाव बनाए रखने के लिए यह चाल चली है। नए दस्तावेजों का हवाला इसलिए कि शायद कांग्रेस को लगे कि इस आयोग की जांच में अभी कुछ संभावना है।

यादव ने कहा, ‘हमारे ऊपर किसी दबाव की कोई संभावना नहीं। इस पूरे प्रकरण में स्थिति पहले ही साफ है। राज्य सरकार ने इस फैसले के समय कोई नियम कायदा भंग नहीं किया। इसलिए डरने की कोई बात ही नहीं है’। उधर कांग्रेस ने पूरी तरह कमर कस ली है। खुद वाड्रा ने भी गुरुवार सुबह ही खुद को पीड़ित घोषित कर दिया था।
यह माना जा रहा है कि इस दौरान आयोग और गवाहों की पड़ताल करते हुए वाड्रा को भी बुला सकता है। अभी तक आयोग के समक्ष न तो हुड्डा पेश हुए थे और न ही वाड्रा। आयोग की रिपोर्ट नगर व नियोजन विभाग के अधिकारियों के बयानों पर आधारित थी। आयोग के विवादों में घिर जाने के बाद अब उसकी रिपोर्ट की निष्पक्षता भी संदेह के घेरे में चली गई है। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की योजना पर भी पानी फिर गया है। कांग्रेस को ढींगड़ा पर हमला ठीक रिपोर्ट के दिन करना था ताकि उसका दंश कम हो सके। लेकिन सरकार ने पासा पलट दिया।

अब रिपोर्ट आने तक ढींगड़ा का अपना पक्ष भी खुल कर सामने आ जाए। यह तो तय ही लग रहा है कि रिपोर्ट में वाड्रा के साथ कोई नरमी नहीं बरती जाएगी और खुद पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा भी इसके दायरे में आ सकते हैं। इसलिए कांग्रेस के रणनीतिकार अब इस पर आगे की कार्रवाई में जुट गए हैं। पिछले लोकसभा चुनाव और उसके बाद हुए हरियाणा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने वाड्रा के मुद्दे को बढ़चढ़ कर उठाया था। मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने करीब डेढ़ साल पहले जस्टिस एसएन ढींगड़ा की अध्यक्षता में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया था जिसे वाड्रा समेत कुछ और कंपनियों को गुड़गांव में दिए गए लाइसेंसों की जांच का जिम्मा दिया गया था। तब कहा गया था कि रिपोर्ट छह महीने में आएगी। आयोग का काम इसलिए बढ़ गया कि इसके दायरे में गुड़गांव के एक बड़े व विकसित हिस्से में लाइसेंस जारी करने, कंपनियों को फायदा पहुंचाने, लाभार्थियों की योग्यता व दूसरे सभी मुद्दे भी जोड़ दिए गए थे। लेकिन आयोग को मूलत: वाड्रा के लाइसेंस की जांच के लिए ही बनाया गया था। आयोग को इस मामले में न्यायोचित कार्रवाई करने के लिए अपनी सिफारिशें देने को भी कहा गया है।


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