वह दिन दूर नहीं जब ग्रिड फेल होने पर भी आपके घर में बल्ब जलते रहेंगे और पंखे भी चलते रहेंगे। केंद्र सरकार एक ऐसी प्रणाली पर काम काम कर रही है जिससे बिजली संकट के समय भी भी लोगों को दिक्कत नहीं होगी। दरअसल, बिजली मंत्रालय एक ‘ब्राउन-आउट’ प्रणाली का परीक्षण कर रहा है। इसके सफल होने पर ग्रिड ठप होने पर भी घरों और इमारतों में ‘बिजली-पंखे’ के लिए थोड़ी बहुत बिजली की सप्लाई की जा सकेगी।
केंद्रीय बिजली, कोयला और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने गुरुवार को यह जानकारी दी। उन्होंने मई 2018 तक देश के सभी गांवों में बिजली पहुंचाने के सरकारी लक्ष्य को समय से पहले पूरा करने का विश्वास जताया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कैबिनेट विस्तार व फेरबदल में गोयल को खनन विभाग की भी जिम्मेदारी दी है।
गोयल ने अपने विभागों के कामकाज के बारे में यहां पत्रकारों के साथ एक चर्चा में कहा, ‘ब्राउन-आउट प्रणाली का सुझाव मुझे आईआईटी चेन्नई के निदेशक और मित्र अशोक झुनझुनवाला ने दिया था। इसके तहत घरों में एसी (आल्टरनेट विद्युत धारा) वाली लाइन के साथ कम शक्ति की डीसी लाइन की भी व्यवस्था रखने का विकल्प है ताकि ब्लैक आउट (ग्रिड फेल) होने पर बल्ब-पंखे के लिए डीसी लाइन से थोड़ी बहुत बिजली की वैकल्पिक आपूर्ति की जा सके।’
उन्होंने बताया कि अधिकारियों और विशेषज्ञों के साथ बैठक के बाद ब्राउन आउट प्रणाली का परीक्षण करने का विचार किया गया। झुनझुनवाला ने चेन्नई में 100 घरों में इसका परीक्षण किया पर ऐसी प्रणाली को व्यापक स्तर पर परीक्षण करने के बाद ही अपनाया जा सकता है।
गोयल ने बताया, ‘पायलट परीक्षण राजस्थान के फलौदी जिले और बिहार में सासाराम में किया जा रहा है। यह प्रणाली थोड़ी खर्चीली जरूर लगती है पर ग्रिड में एक लाख मेगावाट की कमी के समय भी घरों में रोशनी और पंखे के लिए वैकल्पिक बिजली की आपूर्ति की जा सकती है।’ पर उन्होंने इसके लागू करने के कार्यक्रम में बारे में कुछ नहीं कहा।
देश में सभी गांवों तक बिजली पहुंचाने के अपनी सरकार के लक्ष्य की प्रगति के बारे में कहा कि आजादी के इतने साल बाद भी देश के 18 हजार से कुछ अधिक गांवों तक बिजली नहीं पहुंचाई जा सकी थी। उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री ने मई 2018 तक सभी गांवों में बिजली पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। आधे से अधिक काम हो चुका है। मैंने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के गांवों को छोड़ कर बाकी बचे गांवों में बिजली पहुंचाने का काम अगले साल मई तक पूरा कर लिया जाएगा। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी यह काम मई 2018 तक पूरा हो जाएगा।’
उन्होंने कहा कि यह काम राज्य सरकारों के जरिए ही पूरा किया जा रहा है लेकिन केंद्रीय बिजली मंत्रालय 500 से अधिक युवा ‘ग्राम विद्युत अभिकर्ताओं’ के माध्यम से काम की नियमित रपट प्राप्त कर रही है। उन्होंने कहा, ‘मीडिया या अभिकर्ताओं के माध्यम से कोई कमी सामने आने पर हम संबंधित राज्य के साथ बात कर उनका निदान करते हैं।’
गोयल ने कहा कि उनकी सरकार ‘हर घर को बिजली देने के लिए प्रतिबद्ध है। इस क्षेत्र में दो साल में स्थिति में मौलिक बदलाव आए हैं। देश में बिजली इफरात में है। हमें नए हालात में नियमों को बदलना पड़ रहा है क्योंकि पुराने नियम बिजली की कमी को ध्यान में रख कर बनाए गए थे।
गोयल ने कहा, ‘हम ग्राहकों को मोबाइल फोन की तरह बिजली आपूर्तिकर्ता कंपनी को चुनने की भी स्वतंत्रता देना चाहते हैं पर इसके लिए राज्यों के सहयोग की जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि बिजली अधिनियम में इस आशय के संशोधन का प्रस्ताव राज्यों के विरोध के कारण अटका पड़ा है। उन्होंने बताया कि मंत्रालय ने राज्यों को एक नया प्रस्ताव भेजा है जिसमें ‘एक क्षेत्र में एक से अधिक बिजली आपूर्तिकर्ता को काम करने की छूट को वैकल्पिक रखे जाने का प्रस्ताव है।’ उन्होंने उम्मीद जताई कि ‘मानसून सत्र नहीं तो इससे अगले सत्र में संशोधन विधेयक पर कुछ प्रगति हो सकती है।’
बातचीत में गोयल ने बिजली की दर गिर कर ढाई रुपए यूनिट या उससे कम होने का उल्लेख करते हुए कहा, ‘राज्य बिजली की चोरी रोकने और वितरण प्रणाली की दक्षता पर ध्यान दें तो ग्राहकों पर बिल का बोझ निश्चित रूप से कम होगा। अभी तो एक की बिजली चोरी का बोझ 99 को उठाना पड़ता है।’ उन्होंने कहा कि बिजली की चोरी छोटे उपभोक्ता नहीं ‘बड़ी खपत करने वाले करते हैं जो लाइनमैन को 25-50 हजार की रिश्वत दे कर भी लाभ में रहते हैं।’
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