Sunday, July 3, 2016

राज खन्ना की रिपोर्ट : प्रियंका गांधी को लेकर कांग्रेसी उत्साहित, विपक्षी दल बेफिक्र

उत्तर प्रदेश के 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अपने तुरुप के पत्ते प्रियंका गांधी को आगे करने की तैयारी में है। वर्ष 1999 से प्रियंका अपने पारिवारिक क्षेत्रों अमेठी और रायबरेली की चुनाव में कमान संभालती रही हैं। मिले संकेत बताते हैं कि आखिकार प्रियंका ने अमेठी और रायबरेली से बाहर प्रचार करने के लिए रजामंदी दे दी है।
प्रदेश में अपनी पारिवारिक जड़ों और लगातार तीसरी बार अमेठी से सांसद होने के बावजूद राहुल गांधी प्रदेश में कांग्रेस को खड़ा नहीं कर पाए। सोनिया गांधी के रायबरेली से सांसद होने का भी पार्टी को कोई लाभ नहीं मिला। मां और भाई की नाकामी को क्या प्रियंका कामयाबी में बदल पाएंगी? जाहिर तौर पर प्रियंका सक्रिय राजनीति में नहीं हैं। हालांकि पार्टी के फैसलों को प्रभावित करने की उनकी ताकत पर किसी को संदेह नहीं है। पार्टी के लोगों को भरोसा है कि वह करिश्मा दिखाने की कूबत रखती हैं।

कांग्रेसियों में यह भरोसा अमेठी, रायबरेली में उनके अब तक के प्रदर्शन के जरिये आया है। समर्थकों में उन्हें इंदिरा जी का अक्स दिखाई देता है। वह भीड़ खींचती हैं। मां-भाई की तुलना में बेहतर बोलती हैं। विपक्षियों को निशाने पर लेती हैं। उनके प्रहार पर सटीक पलटवार करती हैं। लेकिन पार्टी को उबारने के लिए क्या इतना ही काफी होगा? पार्टी उनसे पूरे प्रदेश में करिश्मे की उम्मीद लगाए है। दिलचस्प है कि उनकी चमक अपने पारिवारिक क्षेत्र अमेठी, रायबरेली में फीकी हुई है।

लोकसभा चुनाव में अमेठी, रायबरेली में जीत लेकिन विधानसभा चुनाव में इन्हीं क्षेत्रों में पार्टी की हार गांधी परिवार को काफी परेशान करती रही है। प्रियंका पहले सिर्फ अपनी मां और भाई के चुनाव में अमेठी ,रायबरेली में सक्रिय रहती थीं। वर्ष 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने पार्टी प्रत्याशियों के लिए भी मेहनत की। वर्ष 2007 में रायबरेली ने लाज रखी। वहां की पांच में चार सीटें कांग्रेस जीतीं। अमेठी में पांच में सिर्फ दो हिस्से में आर्इं। वर्ष 2012 में लुटिया डूब गई। प्रियंका ने अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर की 15 विधानसभा सीटों पर पखवारे भर जमकर प्रचार किया। रायबरेली की पांचों सीटों पर पार्टी बुरी तरह हरी। हरचंदपुर की इकलौती सीट पर पार्टी दूसरे नंबर पर थी। सुल्तानपुर की पांचों सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों की जमानतें जब्त हुर्इं। अमेठी की भी पांच में तीन सीटों पर पार्टी को शिकस्त मिली। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने अमेठी ,रायबरेली की जीत के बाद भी प्रियंका के करिश्मे पर सवाल खड़े कर दिए।

इस चुनाव में राहुल, प्रियंका सुल्तानपुर से रोड शो करते हुए अमेठी पहुंचे थे। प्रियंका ने सुल्तानपुर से भाजपा प्रत्याशी अपने चचेरे भाई वरुण गांधी को गलत रास्ते पर बताते हुए हराने की अपील की थी। प्रियंका का प्रचार और अपील बेअसर रही। वरुण लंबे फासले से जीते। कांग्रेस प्रत्याशी अमीता सिंह चौथे नंबर पर थीं। उनकी जमानत नहीं बची। इस चुनाव में पहली बार दिखा कि अमेठी का कांग्रेसी किला अब गांधी परिवार के लिए पहले जैसा सुरक्षित नहीं रहा।

प्रियंका, राहुल के जबरदस्त प्रचार अभियान के बीच समृति ईरानी ने तीन लाख से ज्यादा वोट बटोर लिए। मतदान के दिन राहुल पूरे दिन एक से दूसरे बूथ के बीच दौड़ते रहे। फिलहाल अमेठी में जीते राहुल के मुकाबले पराजित समृति ईरानी ज्यादा सक्रिय हैं।

प्रियंका एक ओर अमेठी, रायबरेली से बाहर निकलने की तैयारी में हैं, तो दूसरी ओर खतरे में पड़े उनके पारिवारिक किले को हिफाजत की और ज्यादा जरूरत है। अमेठी,रायबरेली में प्रियंका की आभा फीकी क्यों पड़ रही है? इसका सीधा जवाब अमेठी-रायबरेली में घूमते मिल जाएगा। सबकी एक ही शिकायत कि वह सिर्फ चुनाव में सुध लेती है। अब तो चुनाव के मौके पर उनके कार्यकर्ता ही उन्हें सामने ताना देते हैं। हर बार प्रियंका अपने कार्यकर्ताओं को मना लेती है। पर मतदाता कहां मानते हैं! चुनाव दर चुनाव नतीजें इसकी गवाही देते हैं। हर चुनाव में उनके राजनीति में शामिल होने का सवाल होता है। वह बार बार इनकार करती हैं। वहां चुनाव प्रचार करते हुए भी राजनीति से दूर दिखने के लिए परिवार की मदद की आड़ होती है।


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