इंडिया हैबिटाट सेंटर में संवाद और प्रदर्शन के कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इसमें गायिका नीता माथुर ने गायन पेश किया। उन्होंने अपनी गायकी का आरंभ कल्याण थाट के राग केदार से किया। विलंबित बंदिश ‘बन ठन कहां जू चले’ को सुर में पिरोया। यह एक ताल में निबद्ध थी। बंदिश में वादी स्वर षड़ज और संवादी स्वर मध्यम का सुंदर प्रयोग किया। नीता ने जगजीवन प्रभु की रचना ‘सुघर चतुर बहिंया तुम’ को सुरों में पिरोया। राग केदार में श्रीभट्ट की रचना को नीता ने गाया। इसके बोल थे- ‘राधिका आज आनंद डोले’। उनकी अगली पेशकश कृष्णदास की रचना थी। उन्होंने हवेली पद ‘अपनी गरज पकड़ लीन्हीं बइयां’ को राग बागेश्वरी का आधार लेकर गाया।
इसी क्रम को कायम रखते हुए, उन्होंने कुंभनदास की रचना को सुरों में पिरोया- ‘आली रे, अलबेली सुंदर नार’। उन्होंने रसिक प्रीतम की रचना को गाया। सावन के महीने को ध्यान में रख कर गायिका ने इसे झूला के अंदाज में गाया। इसके बोल थे-‘झूलत सांवरे संग गोरी’। समारोह में गायिका नीता माथुर ने हवेली संगीत के बारे में चर्चा की। उन्होंने हवेली संगीत के बारे में बताया कि वैष्णव संप्रदाय में मंदिरों को हवेली कहा जाता है। भगवना कृष्ण की आराधना में अष्टजाम सेवा की जाती है। यह सेवा राग, भोग और शृंगार के जरिए की जाती है। दरअसल, इंडिया हैबिटाट सेंटर ने लेक्चर-डेमोंस्टंÑेशन की नई शृंखला शुरू की है। इस कार्यक्रम में कलाकार अपनी कला के बारे में बताएंगे और उनका प्रदर्शन करेंगे ताकि समारोह में मौजूद श्रोता समझ सकें कि कलाकार क्या गा और बजा रहे हैं या नाच रहे हैं या प्रस्तुत कर रहे हैं। समारोह में गायिका नीता माथुर के साथ तबले पर अभिजीत आइच, हारमोनियम पर जाकिर धौलपुरी और तानपुरे पर मेघा ने संगत किया। उनकी शिष्याएं गीतिका मिश्रा और अदिति नेगी ने गायन में साथ दिया।
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