Saturday, July 2, 2016

35 साल बाद भी ‘रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981’ को अंतिम रूप नहीं दे पाया है डीडीए

सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद भी दिल्ली विकास प्राधिकरण 35 सालों में ‘रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981’ को अंतिम रूप नहीं दे पाया है। एक लाख 17 हजार प्लॉट देने के लिए निकाली गई इस स्कीम के कई आबंटियों की मौत हो चुकी है तो कई जवानी से अधेर की उम्र में आ गए। 2497 हेक्टेयर भूमि में 90 व 60 वर्गमीटर के एमआइजी, 48 और 32 वर्गमीटर के एलआइजी और 26 वर्गमीटर के ईडब्लूएस श्रेणी के लिए उपलब्ध प्लाट का दावा करने वाला डीडीए अब खुद के जाल में फंस चुका है। इन 35 सालों में डीडीए ने जिन 55 हजार लोगों को प्लॉट मुहैया कराया उनमें से कुछ पूरी तरह से विकसित नहीं हैं। इस समय पूरा मामला डीडीए के गले की फांस बन चुका है। अपने दावे और आबंटियों की शिकायत पर अब 31 जुलाई को डीडीए को सुप्रीम कोर्ट में जवाब देना है।

दिल्ली को साफ-सुथरा बसाने का दावा करने वाले डीडीए की लोगों में कैसी छवि बन रही है उसका डीडीए रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981 एक उदाहरण मात्र है। आरोप है कि ईडब्लूएस को एलआइजी बताया गया। इसकी बात हम अगली कड़ी में करेंगे। इस कड़ी में 1981 के प्लॉट देने के दावे का चिट्ठा खोला जा रहा है।

दिखाया अपने घर का सपना
डीडीए ने स्कीम निकालने के समय दावा किया था कि अगले पांच सालों में 26 से 90 वर्गमीटर के प्लॉट को हरा-भरा और इस तरह विकसित कर देंगे कि आबंटी यहां तुरंत रहने आ जाएगा। उस समय प्लॉट की कीमत सौ से दो सौ रुपए प्रति वर्गमीटर थी। नौ फरवरी 1981 को स्कीम निकाली गई और 25 अप्रैल 1981 को इसे बंद कर दिया गया। स्कीम में शामिल लोगों की तब खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब उन्हें पता चला कि एक लाख 17 हजार प्लॉट में सिर्फ 82 हजार 384 लोगों ने ही आवेदन किया है। डीडीए ने यह भी कहा कि उनके पास प्रस्तावित 2497 हेक्टेयर भूमि में 2473 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध है। बाद में डीडीए ने 22 सौ हेक्टेयर भूमि अलग से खरीदने का दावा भी किया। मतलब प्रस्तावित भूमि से दोगुना यानी 4680 हेक्टेयर भूमि डीडीए के पास उपलब्ध हो गया।

दावे से पलटा, राष्ट्रपति तक लगाई थी गुहार
लेकिन जिंदगी भर कमाने के बाद दिल्ली में एक अदद प्लॉट संजोने वाले लोगों को तब तगड़ा झटका लगा जब औपचारिकताएं, पेचीदगियों और आबंटियों की मांग और डीडीए के ना नुकुर के बाद 1999 के एक नवंबर को डीडीए ने कहा कि वह प्रस्तावित प्लॉट देने के दावे में कुछ संशोधन कर रहा है। जिन्हें 90 वर्गमीटर देना था उन्हें 60, जिन्हें 48 देना था उन्हें 32 वर्गमीटर जैसे कुछ फेरबदल करने पड़ रहे हैं। फिर 2007 में जब डीडीए के उपाध्यक्ष का कुछ इसी तरह का बयान सामने आया तो लोगों का गुस्सा उबल पड़ा। स्कीम में रजिस्ट्रेशन करा चुके लोगों ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक से गुहार लगाई। तब 2009 में स्कीम से जुड़े लोगों ने लोक शिकायत निदेशालय को पत्र भेजकर शहरी विकास मंत्रालय से इसकी जांच का अनुरोध किया और उसी साल मई में मामले को दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका के तहत दायर किया।

हाई कोर्ट भी हुआ सख्त
जानकारों का कहना है कि डीडीए के एक्ट में साफ लिखा है कि वह बिना बुनियादी विकास के किसी भी स्कीम के लोगों को प्लॉट या फ्लैट उपलब्ध नहीं करा सकता है न ही कब्जा दिला सकता है। इस स्कीम में 2009 तक डीडीए ने 55 हजार लोगों में कुछ को बिना विकसित ही प्लाट दे रखें हैं और 25 हजार 366 लोगों को प्लॉट नहीं मिले थे। लिहाजा हाई कोर्ट ने 16 दिसंबर 2009 को जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान डीडीए को आदेश दिया कि वह बाकी लोगों को भी किसी भी सूरत में तीन सालों के अंदर विकसित प्लॉट मुहैया कराए। नौ हजार लोगों को 20 महीने में और बाकी 16 हजार को भी तीन सालों के अंदर प्लॉट देने का आदेश हुआ। तब भी डीडीए के कान पर जूं नहीं रेंगी तो दोबारा 2011 में हाई कोर्ट में गुजारिश की गई। 24 मार्च 2012 को हाई कोर्ट ने तब आदेश दिया कि डीडीए तीन महीने में सबको पत्र भेजे और डेढ़ साल के अंदर सबको प्लॉट उपलब्ध कराए। लेकिन डीडीए इधर-उधर की बातें कहता रहा तो याचिकाकर्ता सीधे सुप्रीम कोर्ट गए।

और हुई सुप्रीम सुनवाई…
सुप्रीम कोर्ट में दस मार्च 2015 को तब के डीडीए उपाध्यक्ष बलविंदर सिंह और रोहिणी जोन के चीफ इंजीनियर संदीप मेहता ने कहा कि 30 सितंबर 2015 तक 11 हजार लोगों को विकसित प्लॉट पर कब्जा दिलाया जाएगा। बाकी करीब 14 हजार पांच सौ को 31 जुलाई 2016 तक कब्जा देने की प्रक्रिया शुरू होगी। लेकिन डीडीए की कार्यशैली और 35 सालों से प्लॉट की बाट जोह रहे लोगों का कहना है कि यह वादा पूरा नहीं होने वाला। अभी वहां 1981 स्कीम के सभी प्लॉट विकसित नहीं हुए। कहीं दीवार टूटी है तो कहीं बिजली के खंभे गिर रहे हैं। कहीं पानी के सीवर नहीं डाले गए तो कहीं साइन बोर्ड गिरने के कगार पर पहुंच चुके हैं। इस बीच सुनवाई के दौरान 2015 में डीडीए ने कोर्ट से आग्रह किया कि उसे कुछ दिनों की मोहलत और दी जाए कारण उसे प्लॉट कब्जा करने, विकसित करने में पुलिस और दिल्ली सरकार से उचित मदद नहीं मिल रही तो कोर्ट ने 20 जुलाई 2015 को इस अनुरोध को सिरे से खारिज कर दिया।


Read more: 35 साल बाद भी ‘रोहिणी रेजिडेंशियल स्कीम 1981’ को अंतिम रूप नहीं दे पाया है डीडीए