दशक भर पहले के एक मामले में अदालत ने दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के पूर्व अध्यक्ष को बरी कर दिया है। उन पर दिल्ली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को नुकसान पहुंचाने और एक प्रोफेसर को धमकाने का आरोप था। अभियोजन पक्ष के गवाह ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया जिसके बाद अदालत ने उन्हें आरोप से मुक्त कर दिया।
मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट शिल्पी जैन ने डूसू के पूर्व अध्यक्ष नकुल भारद्वाज को उनपर भारतीय दंड संहिता की धारा 427 के तहत लगे अपराध से बरी कर दिया। उन्हें पहले ही आइपीसी की धारा 506 के तहत आपराधिक धमकी के आरोप से मुक्त कर दिया गया था। मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में कहा कि तथ्य और परिस्थितियों के मुताबिक, अभियोजन पक्ष के इस मामले में मुख्य गवाह का समर्थन नहीं होने और आरोपी के खिलाफ कोई पक्का सबूत न होने के कारण उन पर लगाया गया एक आरोप एक सीमा से आगे साबित नहीं होता।
आरोपी को संदेह का लाभ दिया जाता है। अदालत का यह आदेश डीयू के पूर्व प्रोफेसर केएम श्रीमाली की ओर से किए गए मुकदमे पर आया है, जो उस समय लाइब्रेरियन थे। उनका आरोप था कि 26 जून, 2004 को डूसू के पूर्व अध्यक्ष उसके कार्यालय में आए थे। लेकिन उनके व्यस्त होने के कारण उन्हें इंतजार करने के लिए बोला गया। आरोप है कि वहां रुकने के बजाए भारद्वाज उनके दफ्तर में घुस गए और उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया। पुस्तकालय के अंदर तोड़-फोड़ की। हालांकि अदालत में गवाही के दौरान शिकायतकर्ता और अभियोजन पक्ष के दो अन्य गवाह ने इस घटना के घटित होने से इनकार कर दिया और आरोपी को पहचानने से भी इनकार कर दिया।
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