दिल्ली की एक अदालत ने 10 किलोग्राम हेरोइन के एक मामले में एक अफ्रीकी नागरिक को फंसाने को लेकर राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआइ) की खिंचाई करते हुए कहा है कि जांच एजंसियां मादक पदार्थ संबंधी अपराधों की गंभीरता से वाकिफ होने के बावजूद जांच प्रोटोकॉल का पालन नहीं करती हैं। विशेष न्यायाधीश अजय कुमार कुहार ने अफ्रीकी नागरिक सैमसन ओंगेरा ओमोरो को 10 किलोग्राम हेरोइन रखने के आरोप से बरी करते हुए कहा कि डीआरआइ के खुफिया अधिकारी आर राय ने जानबूझकर अदालत को गुमराह करने की कोशिश की।
जज ने कहा कि यह अदालत इस तथ्य से वाकिफ है कि नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटांसेज एक्ट के तहत अपराध बड़े गंभीर समझे जाते हैं क्योंकि ऐसे मामलों में गुनाह साबित होने पर कड़ी सजा मिलती है। लेकिन यह अदालत हमेशा ही तब असहज महसूस करता है जब अभियोजन मामले को साबित करने के लिए जरूरी सबूत बिल्कुल सटीक नहीं होता।
अदालत ने कहा कि एनडीपीएस कानून के तहत आने वाले अपराधों की गंभीरता को पूरी तरह जानते हुए भी जांच एजंसियां जांच के प्रोटोकॉल का पालन नहीं करती हैं। पारदर्शी जांच समय की मांग है जो कर्मठतापूर्वक और वैज्ञानिक तरीके से होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी जांच के अभाव में संदेह का लाभ हमेशा आरोपी को मिलता है जैसा कि इस मामले में हुआ। अभियोजन के अनुसार डीआरआइ के खुफिया अधिकारी ने शिकायत दर्ज कराई कि उन्हें 29 जुलाई, 2010 को सूचना मिली कि अफ्रीकी मूल का 40 साल के व्यक्ति बुराड़ी के समीप बस स्टैंड पर ड्रग्स लेकर खड़ा होगा।
डीआरआइ की टीम के छापे में आरोपी 10 किलोग्राम हेरोइन के साथ पकड़ा गया। जहकि आरोपी ने कहा था कि उसे इस मामले में झूठा फंसाया गया है।
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