भारत की सड़कों पर तेज रफ्तार और नशे की हालत में ड्राइविंग से हरेक दिन निर्दोष लोग काल के मुंह में समा रहे हैं। इसके पीछे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के ‘स्पीड गर्वनर’ लगाने के आदेशों पर अमल न हो पाना मुख्य कारण है। सड़क दुर्घटनाओं पर हालिया सर्वे से यह भी पता चला है कि राजमार्गों पर होने वाली दुर्घटनाओं में 40 से 50 फीसद मौतें व्यावसायिक वाहनों के तेज रफ्तार से चलने से होती हैं। भारत की 20 करोड़ की आबादी पर एक करोड़ 80 लाख लोगों की मौत व्यावसायिक वाहनों की चपेट में आने से हो रही है। केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की मौत, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ और आमिर खान के ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम ने सड़क परिवहन मंत्रालय को इस तरह की असमय मौतों पर सोचने को विवश तो किया पर जब तक आदेशों पर ठोस कार्रवाई, प्रवर्तन की सख्ती और स्पीड गर्वनर पर राज्य सरकारें पूरी तरह खड़ी नहीं होगीं ऐसे ही असमय लोगों की मौत होती रहेगी। मेट्रो शहरों में चेन्नई के बाद दिल्ली दूसरे नंबर पर सड़क दुर्घटनाओं में है।
भारत में सड़क दुर्घटनाओं के आंकड़े चौंकाने वाले हैं। 2013 में जहां 4 लाख 86 हजार चार सौ 76 दुर्घटनाएं हुर्इं वहीं यह आंकड़ा 2015 में पांच लाख तीन हजार तक पहुंच गया। इन हादसों में मरने वालों की संख्या जहां 2013 में एक लाख 37 हजार पांच सौ 72 थी वहीं 2015 में यह एक लाख 46 हजार छह सौ 12 लोगों की मौत हो गई। इन हादसों में 2013 में जहां चार लाख 94 हजार आठ सौ 93 लोग घायल हुए वहीं 2015 में घायलों की संख्या पांच लाख 13 हजार नौ सौ 60 तक पहुंच गई। 2013 से 2015 के आंकड़ों के मुताबिक राष्ट्रीय स्तर पर हर सौ दुर्घटनाओं में करीब 29.6 फीसद लोगों की मौत हो जा रही है। इनमें पंजाब पहले, नगालैंड दूसरे और हरियाणा तीसरे नंबर पर है। जबकि यही फीसद मेट्रो शहरों में चेन्नई प्रथम और दिल्ली दूसरे पर है। राज्यों में तमिलनाडु प्रथम, महाराष्ट्र दूसरे और उत्तर प्रदेश तीसरे नंबर पर है।
यूरोप में सड़कें पतली हो गई हैं। दक्षिण कोरिया में सारे फ्लाईओवर गिरा दिए गए हैं और पश्चिमी देशों में हरेक गाड़ियों में स्पीड गर्वनर लगाना अनिवार्य हो गया है। भारत में केंद्र सरकार, केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय और राज्य सरकारों की इच्छा इस दिशा में उतनी बलवती नहीं दिखती जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के आदेश की भी धज्जियां उड़ रही है।
सड़क, परिवहन और हाईवे मंत्रालय के नेशनल रोड सेफ्टी काउंसिल के सदस्य और देश विदेश के कई संस्थानों से जुड़े सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ डॉक्टर कमल सोइ ने बताया कि सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं सुबह छह से नौ बजे और शाम छह से रात नौ बजे के बीच दिखी है। इस समय लोग जल्दबाजी में जाने और लौटने में होते हैं। दुर्घटनाओं की संख्या अलग-अलग समय में अलग-अलग सड़कें, राजमार्ग और हैं। सोइ का मानना है कि स्पीड गवर्नर के बिना व्यावसायिक वाहन पर लगाम लगाना मुश्किल है। वे गाड़ी ड्राइवर मालिक से वेतन के अलावा पारितोषिक के नाम पर भी तेज गति से गाड़ी चलाते हैं ताकि गाड़ियों पर लदा सामान समय से पहले पहुंच जाए और खराब होने से बच जाए। चालक ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते पर सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे लोगों को मारते हैं।
भारत सरकार के परिवहन मंत्रालय से संयुक्त सचिव एसके दास ने 2009 में एक निर्देश जारी कर सुप्रीम कोर्ट का हवाला देते हुए सभी राज्यों के परिवहन विभागों को गाड़ी की स्पीड कम करने के लिए स्पीड कंट्रोल डिवाइस लगाने कहा। यह डिवाइस व्यावसायिक वाहनों में स्कूल बसों, सामान लाने ले जाने वाली गाड़ियों, टैक्सी और कैब शामिल हैं। लेकिन मेरा मानना है कि स्पीड गर्वनर लगाने से पहले परिवहन मंत्रालय उस कंपनी की वित्तीय क्षमता, सर्विस गारंटी की जांच करे। अगर उस कंपनी के स्पीड गवर्नर 15 साल काम करे तो सरकार उसे वैध करे अन्यथा उस कंपनी को ठेका जारी नहीं करे।
जिन राज्यों में स्पीड गर्वनर लगना अनिवार्य किया है उनमें ओड़ीशा, झारखंड और तेलंगाना में 20 से 25 फीसद कम हो गया है। जबकि दिल्ली में औसतन स्पीड 45 से 50 फीसद प्रतिघंटे की है। यहां दुपहिया, तिपहिया और कार से ज्यादा मौतें होती हैं वनिस्पत व्यावसायिक वाहनों के। सोइ का मानना है कि सिंगापुर की तरह सभी गाड़ियों में जीपीएस लगाने और जैसे ही शहरों में 60 से ज्यादा स्पीड होने पर आटोमेटिक यंत्र के मार्फत भारी भरकम राशि चालान के रूप में जाने की प्रथा शुरू हो जाए तो भारत में भी सड़क दुर्घटनाएं खुद ब खुद कम हो जाएगी।
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