Thursday, June 30, 2016

नियमित पदोन्नति का दावा नहीं कर सकते फास्ट ट्रैक कोर्ट के जज : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि फास्ट ट्रैक अदालतों के पीठासीन अधिकारी के तौर पर नियुक्त न्यायिक अधिकारी सीधी भर्ती वाले जजों की तरह नियमित पदोन्नति के अधिकार का दावा नहीं कर सकते, क्योंकि उनकी नियुक्ति अस्थायी प्रकृति की होती है। शीर्ष अदालत ने यह बात कुछ न्यायिक अधिकारियों की ओर से दायर अपील को खारिज करने के दौरान कही।
इन न्यायिक अधिकारियों ने इस बारे में आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। इन अधिकारियों को पदोन्नति या तबादले के जरिए ग्रेड-2 दीवानी न्यायाधीश से जिला एवं सत्र न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। हाई कोर्ट ने जजों की वरिष्ठता सूची के खिलाफ उनकी याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी थी कि फास्ट ट्रैक अदालत के जजों को उनकी सतत लंबी सेवा के आधार पर वरिष्ठता का लाभ नहीं दिया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के दो फैसलों का हवाला देते हुए न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह की पीठ ने कहा- यह बिल्कुल स्पष्ट है कि फास्ट ट्रैक अदालतों में नियुक्ति अस्थायी प्रकृति की होती है और निचली न्यायपालिका से अस्थायी आधार पर पदोन्नत, पदस्थापित लोगों को इस तरह की नियुक्ति के आधार पर नियमित पदोन्नति का अधिकार नहीं मिलता। यह साफ तौर पर कहा गया है कि फास्ट ट्रैक अदालतों के जज अलग नियमों के तहत नियुक्त किए गए। उनकी नियुक्ति राज्य उच्चतर न्यायिक सेवा में नियमित नियुक्तियों पर लागू होने वाले नियमों के तहत नहीं की गई।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को एफटीसी योजना लागू होने की वजह से पदोन्नति दी गई थी। अदालत ने कहा कि वे एक योजना से लाभान्वित हुए। योजना के तहत पद पर बने रहने के दौरान कैडर में नियमित पद खाली हो गया और उन्हें नियमित किया गया। लेकिन उससे पहले प्रतिवादियों को उनके कोटा में ठीक-ठाक पदों के मद्देनजर भर्ती कर लिया गया। अपीलकर्ताओं को हमारी राय में इस भेद को स्वीकार करने की स्थिति में होना चाहिए। लेकिन पदोन्नत लोगों और सीधी भर्ती किए गए लोगों के बीच विवाद लगता है कि निरंतर चलने वाला मामला है।


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