पूर्वी दिल्ली
राजीव गांधी सुपर स्पेशिऐलिटी अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके दो मरीजों में दोबारा कोरोना होने की पुष्टि हुई है। दोनों ही मरीजों ने राजीव गांधी अस्पताल को फोन करके इसकी जानकारी दी। उनमें से एक मरीज एसिम्टोमैटिक हैं।
अस्पताल के कोविड केयर के नोडल अफसर डॉ. अजीत जैन ने बताया कि दोनों मरीज दोबारा संक्रमण का शिकार कैसे हुए, अभी तक इसका कारण पता नहीं चला है। इसको लेकर अस्पताल की एक टीम काम कर रही है। हो सकता है कि सैंपलिंग एरर की वजह वजह मरीज दोबारा पॉजिटिव पाए गए हों। उन्होंने बताया कि कई बार सैंपलिंग एरर की वजह से मरीजों के रिपोर्ट गलत आ जाती है।
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डॉ. अजीत जैन ने बताया कि चीन में एक मरीज ऐसा मिला था, जो एंटीबॉडी टेस्ट के 30 दिन बाद दोबारा पॉजिटिव आया था। उन्होंने बताया कि किसी भी मेथड से टेस्ट किया जाए, लेकिन थोड़ा कम या ज्यादा सैंपलिंग एरर की संभावना रहती है। उन्होंने बताया कि इन दोनों मरीजों को तकरीबन डेढ़ माह पहले डिस्चार्ज कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि दूसरी संभावना यह है कि नाक या गले के स्वैब के बजाय थूक या बलगम में 39 दिनों तक वायरस जीवित रह सकता है।
कुछ डॉक्टर्स का दावा है कि अभी तक इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है कि ठीक हो चुके व्यक्ति को दोबारा कोरोना हो सकता है या नहीं। हलांकि, जिस तरह से दोबारा मरीजों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने की पुष्टि हुई है, यह चिंता का विषय जरूर है।
राजीव गांधी सुपर स्पेशिऐलिटी अस्पताल से डिस्चार्ज हो चुके दो मरीजों में दोबारा कोरोना होने की पुष्टि हुई है। दोनों ही मरीजों ने राजीव गांधी अस्पताल को फोन करके इसकी जानकारी दी। उनमें से एक मरीज एसिम्टोमैटिक हैं।
अस्पताल के कोविड केयर के नोडल अफसर डॉ. अजीत जैन ने बताया कि दोनों मरीज दोबारा संक्रमण का शिकार कैसे हुए, अभी तक इसका कारण पता नहीं चला है। इसको लेकर अस्पताल की एक टीम काम कर रही है। हो सकता है कि सैंपलिंग एरर की वजह वजह मरीज दोबारा पॉजिटिव पाए गए हों। उन्होंने बताया कि कई बार सैंपलिंग एरर की वजह से मरीजों के रिपोर्ट गलत आ जाती है।
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डॉ. अजीत जैन ने बताया कि चीन में एक मरीज ऐसा मिला था, जो एंटीबॉडी टेस्ट के 30 दिन बाद दोबारा पॉजिटिव आया था। उन्होंने बताया कि किसी भी मेथड से टेस्ट किया जाए, लेकिन थोड़ा कम या ज्यादा सैंपलिंग एरर की संभावना रहती है। उन्होंने बताया कि इन दोनों मरीजों को तकरीबन डेढ़ माह पहले डिस्चार्ज कर दिया गया था। उन्होंने कहा कि दूसरी संभावना यह है कि नाक या गले के स्वैब के बजाय थूक या बलगम में 39 दिनों तक वायरस जीवित रह सकता है।
कुछ डॉक्टर्स का दावा है कि अभी तक इस बात का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला है कि ठीक हो चुके व्यक्ति को दोबारा कोरोना हो सकता है या नहीं। हलांकि, जिस तरह से दोबारा मरीजों के कोविड पॉजिटिव पाए जाने की पुष्टि हुई है, यह चिंता का विषय जरूर है।
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