Tuesday, February 25, 2020

दिल्ली में उपद्रव के बीच इंसानियत की 3 कहानियां

नई दिल्ली
सीएए को लेकर दिल्ली हिंसा की आग में जल रही है। लेकिन खौफ, लूट, आगजनी के बीच कुछ कहानियां ऐसी हैं, जो इंसानियत पर भरोसा बनाए रखने का काम करती हैं। इस तरह के दंगे देश को नुकसान तो पहुंचा सकते हैं, लेकिन तोड़ नहीं सकते। सदियों से साथ रहते आए लोग एक दूसरे के दुश्मन यूं ही नहीं बन सकते। वे एक दूसरे का हाथ थामे रहेंगे, एक दूसरे की मदद करते रहेंगे, एक दूसरे की हिफाजत भी करते रहेंगे और ‘दिलवालों की दिल्ली’ वाले किरदार को बचाते रहेंगे। कुछ ऐसे ही किरदारों से रूबरू होने जा रहे हैं, जिन्होंने इस हिंसा के दौरान जाति-धर्म से ऊपर उठकर इंसानियत को जिंदा रखा है।

1. सोशल मीडिया पर की अपील तो फरिश्ता बन पहुंचे मददगार
ईस्ट दिल्ली में हिंसा चरम पर थी। घरों में, दुकानों में, गाड़ियों में आग लगाई जा रही थी। मुस्तफाबाद इलाके में हिंदू महिला अकेली फंस गईं। उनके घर के पास हमला हुआ था। वह घर में अकेली थीं। पड़ोसी का घर जलने लगा था। मगर फेसबुक पर की गई अपील उनकी मदद बनकर पहुंच गई। यह अपील की थी इलाहाबाद के रहने वाले मोहम्मद अनस ने। 10-15 मुस्लिम लड़के उनके घर पहुंचे और महिला को हिफाजत के साथ मोमिन सैफी अपने घर ले आए।


ये महिला थीं मंजू सारस्वत। मंजू कहती हैं, सुबह करीब 10 बजे की बात है। मैं घर में अकेली थी। दंगाइयों ने पड़ोसी के घर में आग लगा दी थी। मेरे दरवाजे को तोड़ रहे थे। मैं बहुत डर गई थी। मेरी फैमिली में मेरे पति, बेटा बेटी हैं। घर पर कोई नहीं था। इधर-उधर मदद के लिए फोन किया। तब मेरे बेटे के दोस्त ने किसी को मदद के लिए भेजा। ये लोग मेरे घर आए। मुझे इतना डर लग रहा था कि इन लोगों पर यकीन नहीं हुआ। तब इन लोगों ने मेरी बेटी से कॉन्फ्रेंस कॉल करके मेरी बात कराई, तब मुझे मोमिन सैफी अपने घर ले आए।


मंजू की मदद में दिल्ली से कई सौ किलोमीटर दूर बैठे मोहम्मद अनस की फेसबुक पोस्ट फरिश्ते बनकर हाजिर हुई थी। अनस ने अपील करते हुए लिखा, ‘मेरे एक बहुत ही करीबी दोस्त का परिवार अकेला हिंदू परिवार है, मुस्लिम मोहल्ले में। उनके घर पर मां अकेली हैं। अभी थोड़ी देर पहले उनके घर पर अटैक हुआ है। मुस्तफाबाद के लोग अगर मेरा पोस्ट पढ़ रहे हैं तो उनकी सुरक्षा करें। हाथ जोड़ कर विनती है मेरी। दिल्ली में रह रहे दोस्त इस पोस्ट को वायरल करें। जैसे भी हो उनकी हिफाजत कीजिए।’

इसी पोस्ट की मदद से मोमिन सैफी अपने साथियों को लेकर मंजू सारस्वत के घर पहुंचे थे। मोमिन सैफी कहते हैं, 'अमन बनाए रखें। इंसानियत बाकी रहे। कोई अगर मदद मांग रहा है तो मदद करें। चाहे वह मुस्लिम हो या हिन्दू। जैसा दिल्ली का माहौल रहा है भाईचारे वाला उसे बचाए रखें, लेकिन अभी हालात सही नहीं। जब तक हम सेफ हैं, तब तक आंटी भी सेफ हैं। हम अब एक परिवार हैं। मेरी अपील है सब मोहब्बत से रहें।'

2. ऑफिस से लौटते वक्त फंसी, बचाकर घर पहुंचाया

इसी तरह की एक और कहानी है पिंकी गुप्ता की, जिन्होंने दंगे के बीच फंसी एक मुस्लिम लड़की को सुरक्षित निकालकर अपने घर पहुंचाया। घोंडा इलाके की रहने वाली पिंकी गुप्ता भी इलाके में सोशल वर्क करती हैं। उन्होंने बताया कि करिश्मा नाम की लड़की थी, जो चांद बाग में रहती है और शास्त्री नगर में काम करती है। वह बच्ची अपनी जॉब से वापस लौट रही थी और उसको अंदाजा नहीं था कि हालात इतने खराब होंगे, मेट्रो स्टेशन बंद थे तो वह सीलमपुर मेट्रो स्टेशन पर उतर गई और गली-गली होती हुए हमारे मोहल्ले में पहुंच गई।


उसे यहां कुछ लड़कों ने घेर लिया तो वह बहुत बुरी तरह से डर गई। लेकिन फौरन ही हमलोग उसकी मदद के लिए पहुंच गए। मैं उसे अपने घर ले आई, उसे पानी पिलाया और यकीन दिलाया कि वह यहां पूरी तरह से सुरक्षित है। उसने हमसे कहा कि उसे चांद बाग में उसके घर छोड़ आए, लेकिन वहां के हालात बेहद खराब थे। ऐसे में हमने नूर ए इलाही में रहने वाले उसके मामा से संपर्क किया और उस बच्ची को वहां सुरक्षित छोड़ आए। पिंकी ने बताया कि बच्ची को फंसा देखा तो बिना सोचे और वक्त गंवाए मदद के लिए पहुंच गए, बेटी किसी की भी हो हमारे लिए तो सब बच्चियां हमारे घर की ही हैं।

3. सऊदी से आया दोस्त का फोन तो बचा लाए उनके परिवार को...

हाजी नूर मोहम्मद सऊदी अरब में रहकर जॉब करते हैं, उनका परिवार यमुना विहार इलाके में रहता है। उनका परिवार दंगों के बीच फंस गया था। चारों तरफ से मोहल्ले को दंगाइयों ने घेर रखा था। हाजी नूर मोहम्मद परेशान थे, उनका परिवार मदद के लिए उन्हें लगातार कॉल कर रहा था, लेकिन हालात इतने खराब थे कि उनका कोई भी रिश्तेदार इस इलाके में जाकर उनके परिवार को निकालने की स्थिति में नहीं था। ऐसे में उन्हें याद आई अपने दोस्त पूरन चुघ की, जिनसे उन्होंने मकान भी खरीदा था। नूर मोहम्मद ने चुघ साहब को फोन किया और उन्हें अपने परिवार की स्थिति बताई।

पूरन चुघ ने भी बिना वक्त गंवाए अपनी एसयूवी निकाली और नूर मोहम्मद के घर पहुंच गए। हालांकि, वहां की स्थिति काफी खराब थी रास्ते में भी जगह-जगह दंगे हो रहे थे, लेकिन चुघ अपने दोस्त के परिवार को बचाने के लिए उनके घर तक पहुंच ही गए। उन्होंने न सिर्फ नूर मोहम्मद के परिवार को वहां से निकाला, बल्कि उनके घर में किराये पर रह रहे एक परिवार को भी बचाकर वहां से ले आए और उनके रिश्तेदारों को घर सुरक्षित छोड़ा।

यमुना विहार के रहने वाले सोशल एक्टिविस्ट अफसर अली ने बताया कि इस तरह की सैकड़ों कहानियां हैं, जो इस खराब वक्त में एक-दूसरे पर भरोसा करने की वजह बन रही हैं। वह कहते हैं कि दंगाई का ना कोई धर्म होता और न ही चेहरा, सिर्फ एक भीड़ होती है जो हमले करती है, परिवारों को बर्बाद कर देती है और देश के अमन चैन को आग लगा देती है। हमें आपस में भाईचारा बनाए रखना है।

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