सिमरनजीत सिंह, नई दिल्ली
राजधानी के बड़े अस्पतालों में शामिल सर गंगाराम अस्पताल पर एक बच्चे के पिता ने गंभीर आरोप लगाया है। पिता का आरोप है कि अस्पताल पिछले 4 महीने से उनके बच्चे को बिल न चुकाने की वजह से वहां से जाने नहीं दे रहा, जिसके चलते बिल लगातार बढ़ते हुए 9 लाख रुपये तक पहुंच चुका है।
नोएडा के बरौला निवासी प्रमोद का कहना है कि उन्होंने अपने 6 साल के बेटे प्रियांश की किडनी डैमेज होने के चलते उसे 30 जून को अस्पताल में भर्ती करवाया था। भर्ती होने के 17 दिन बाद अस्पताल बच्चे को डिस्चार्ज कर रहा था। तब तक इलाज का बिल डेढ़ लाख रुपये बना था। हालांकि अस्पताल का कहना है कि बच्चे का पिता बातों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है। अस्पताल शुरू से ही उनकी मदद करता रहा है।
अस्पताल का कहना है कि चूंकि वह पेंटर हैं, इसलिए इतनी बड़ी राशि चुकाने में असमर्थ थे, जिसके चलते पीएमओ को चिट्ठी लिखी गई और वहां से कुछ पैसा अस्पताल को आ गया। प्रमोद का कहना है कि बाकी बचा हुआ पैसा आना बाकी था, लेकिन किसी वजह से वह पैसा नहीं आया, जिसके चलते अस्पताल प्रशासन ने बच्चे को डिस्चार्ज करने से इनकार कर दिया।
इस बात को चार महीने बीत चुके हैं। अस्पताल अब भी बच्चे को डिस्चार्ज करने को राजी नहीं है। उनका कहना है कि इस बाबत उन्होंने कुछ दिन पहले राजेंद्र नगर पुलिस में शिकायत की और पुलिस अस्पताल पहुंची। जब पुलिस ने अस्पताल आकर डॉक्टरों को परिवार की मदद करने और बच्चे को डिस्चार्ज करने के लिए कहा, तो अस्पताल प्रशासन पुलिसकर्मियों को बुरा-भला कहने लगा जिसके बाद लिखित शिकायत पुलिस को दी गई। प्रमोद का आरोप है कि उसके बाद अस्पताल प्रशासन आकर उन्हें धमकाने लगा कि वह जहां चाहे, वहां कम्प्लेंट दे दें, लेकिन बिना बिल चुकाए बच्चे को अस्पताल से जाने नहीं दिया जाएगा।
इसके बाद उनके बच्चे को जनरल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया। बच्चे को डायलिसिस की जरूरत है, लेकिन अस्पताल में बच्चे का डायलसिस भी नहीं हो रहा है।
अस्पताल ने तो मदद की है...
परिवार से इलाज का बिल चुकाने के लिए एक बार भी नहीं कहा गया। प्रमोद ने जब अपने बच्चे को ऐडमिट करवाया, तो उन्होंने कहा कि आप बच्चे को ऐडमिट कीजिए, मैं यूपी सरकार से पैसों की मदद ले लूंगा। एक महीना बीत जाने के बाद जब वहां से इलाज के लिए कोई राशि नहीं आई, तो इसने कहा कि मुझे पैसे नहीं मिल रहे, आप ही कुछ कर दीजिए। इसके बाद अस्पताल ने खुद एक फॉर्म तैयार करके प्रमोद को पीएमओ भेजा। ऐसे करते-करते अब 9 लाख का बिल बन चुका है, लेकिन हमने उनसे बिल नहीं मांगा, लेकिन वह बातों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है। यहां तक कि वह बच्चे को भी खुद ही जनरल वॉर्ड से निकालकर बाहर सोफे पर ले आया था। -डॉ़ वी एम कटोच, अडिशनल डायरेक्टर, मेडिकल, सर गंगा राम अस्पताल
सरकार से मिलने वाली राशि को लेकर हुई दुविधा
प्रमोद का कहना है कि इससे पहले नवंबर 2016 में भी बच्चे को इसी अस्पताल में दाखिल किया गया था। उस वक्त उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 5 लाख रुपये की राशि इलाज के लिए दी गई थी, जिसमें कुछ पैसा खर्च हुआ, कुछ बच गया था। अब जब इस साल दोबारा बच्चे को ऐडमिट किया गया, तो मैंने पहले अस्पताल वालों से कहा था कि सरकार से मिलने वाली उस राशि को चेक कर लिया जाए लेकिन अस्पताल वालों ने चेक नहीं किया। बच्चे को ऐडमिट कर लिया, जिसके बाद हमारे हाथ में बिल थमा दिया और भुगतान के लिए कहा।
क्या कहना है अस्पताल का
इस बारे में अस्पताल के पीआरओ डॉ़ अजय सहगल का कहना है कि बच्चे के लिए इलाज के लिए किसी तरह की कोई राशि नहीं ली जा रही। उसका इलाज फ्री किया जा रहा है। केवल सरकारी डेटा मेनटेन करने के लिए बिल बनाया जाता है। उनका कहना है कि परिवार को सरकार और अस्पताल मदद कर रहे हैं। जब सरकार पैसा दे रही है, तो हम क्यों इन्हें बिल भुगतान के लिए कहेंगे। बच्चे के पिता डिप्रेशन में हैं। पहले वह कम्प्लेंट करते हैं और बाद में आकर माफी मांगने लगते हैं।
यह कहती है पुलिस
राजेंद्र नगर थाने के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह मामला हमारे संज्ञान में है। इसमें बच्चे के पिता ने बिना जानकारी के ही बच्चे को अस्पताल में दाखिल करवा दिया। बाद में बिल देखकर हैरान रह गए, जबकि उन्हें वह बिल देने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार की तरफ से उनका बिल चुकाया जा रहा है।
यह मामला अभी मेरे संज्ञान में नहीं है। कुछ देर बाद इस पर कुछ कह सकते हैं, लेकिन अगर हमारे पास कम्प्लेंट आई है, तो उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी। -एम एस रंधावा, डीसीपी, सेंट्रल
राजधानी के बड़े अस्पतालों में शामिल सर गंगाराम अस्पताल पर एक बच्चे के पिता ने गंभीर आरोप लगाया है। पिता का आरोप है कि अस्पताल पिछले 4 महीने से उनके बच्चे को बिल न चुकाने की वजह से वहां से जाने नहीं दे रहा, जिसके चलते बिल लगातार बढ़ते हुए 9 लाख रुपये तक पहुंच चुका है।
नोएडा के बरौला निवासी प्रमोद का कहना है कि उन्होंने अपने 6 साल के बेटे प्रियांश की किडनी डैमेज होने के चलते उसे 30 जून को अस्पताल में भर्ती करवाया था। भर्ती होने के 17 दिन बाद अस्पताल बच्चे को डिस्चार्ज कर रहा था। तब तक इलाज का बिल डेढ़ लाख रुपये बना था। हालांकि अस्पताल का कहना है कि बच्चे का पिता बातों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है। अस्पताल शुरू से ही उनकी मदद करता रहा है।
अस्पताल का कहना है कि चूंकि वह पेंटर हैं, इसलिए इतनी बड़ी राशि चुकाने में असमर्थ थे, जिसके चलते पीएमओ को चिट्ठी लिखी गई और वहां से कुछ पैसा अस्पताल को आ गया। प्रमोद का कहना है कि बाकी बचा हुआ पैसा आना बाकी था, लेकिन किसी वजह से वह पैसा नहीं आया, जिसके चलते अस्पताल प्रशासन ने बच्चे को डिस्चार्ज करने से इनकार कर दिया।
इस बात को चार महीने बीत चुके हैं। अस्पताल अब भी बच्चे को डिस्चार्ज करने को राजी नहीं है। उनका कहना है कि इस बाबत उन्होंने कुछ दिन पहले राजेंद्र नगर पुलिस में शिकायत की और पुलिस अस्पताल पहुंची। जब पुलिस ने अस्पताल आकर डॉक्टरों को परिवार की मदद करने और बच्चे को डिस्चार्ज करने के लिए कहा, तो अस्पताल प्रशासन पुलिसकर्मियों को बुरा-भला कहने लगा जिसके बाद लिखित शिकायत पुलिस को दी गई। प्रमोद का आरोप है कि उसके बाद अस्पताल प्रशासन आकर उन्हें धमकाने लगा कि वह जहां चाहे, वहां कम्प्लेंट दे दें, लेकिन बिना बिल चुकाए बच्चे को अस्पताल से जाने नहीं दिया जाएगा।
इसके बाद उनके बच्चे को जनरल वॉर्ड में शिफ्ट कर दिया गया। बच्चे को डायलिसिस की जरूरत है, लेकिन अस्पताल में बच्चे का डायलसिस भी नहीं हो रहा है।
अस्पताल ने तो मदद की है...
परिवार से इलाज का बिल चुकाने के लिए एक बार भी नहीं कहा गया। प्रमोद ने जब अपने बच्चे को ऐडमिट करवाया, तो उन्होंने कहा कि आप बच्चे को ऐडमिट कीजिए, मैं यूपी सरकार से पैसों की मदद ले लूंगा। एक महीना बीत जाने के बाद जब वहां से इलाज के लिए कोई राशि नहीं आई, तो इसने कहा कि मुझे पैसे नहीं मिल रहे, आप ही कुछ कर दीजिए। इसके बाद अस्पताल ने खुद एक फॉर्म तैयार करके प्रमोद को पीएमओ भेजा। ऐसे करते-करते अब 9 लाख का बिल बन चुका है, लेकिन हमने उनसे बिल नहीं मांगा, लेकिन वह बातों को तोड़-मरोड़कर पेश कर रहा है। यहां तक कि वह बच्चे को भी खुद ही जनरल वॉर्ड से निकालकर बाहर सोफे पर ले आया था। -डॉ़ वी एम कटोच, अडिशनल डायरेक्टर, मेडिकल, सर गंगा राम अस्पताल
सरकार से मिलने वाली राशि को लेकर हुई दुविधा
प्रमोद का कहना है कि इससे पहले नवंबर 2016 में भी बच्चे को इसी अस्पताल में दाखिल किया गया था। उस वक्त उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से 5 लाख रुपये की राशि इलाज के लिए दी गई थी, जिसमें कुछ पैसा खर्च हुआ, कुछ बच गया था। अब जब इस साल दोबारा बच्चे को ऐडमिट किया गया, तो मैंने पहले अस्पताल वालों से कहा था कि सरकार से मिलने वाली उस राशि को चेक कर लिया जाए लेकिन अस्पताल वालों ने चेक नहीं किया। बच्चे को ऐडमिट कर लिया, जिसके बाद हमारे हाथ में बिल थमा दिया और भुगतान के लिए कहा।
क्या कहना है अस्पताल का
इस बारे में अस्पताल के पीआरओ डॉ़ अजय सहगल का कहना है कि बच्चे के लिए इलाज के लिए किसी तरह की कोई राशि नहीं ली जा रही। उसका इलाज फ्री किया जा रहा है। केवल सरकारी डेटा मेनटेन करने के लिए बिल बनाया जाता है। उनका कहना है कि परिवार को सरकार और अस्पताल मदद कर रहे हैं। जब सरकार पैसा दे रही है, तो हम क्यों इन्हें बिल भुगतान के लिए कहेंगे। बच्चे के पिता डिप्रेशन में हैं। पहले वह कम्प्लेंट करते हैं और बाद में आकर माफी मांगने लगते हैं।
यह कहती है पुलिस
राजेंद्र नगर थाने के एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि यह मामला हमारे संज्ञान में है। इसमें बच्चे के पिता ने बिना जानकारी के ही बच्चे को अस्पताल में दाखिल करवा दिया। बाद में बिल देखकर हैरान रह गए, जबकि उन्हें वह बिल देने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार की तरफ से उनका बिल चुकाया जा रहा है।
यह मामला अभी मेरे संज्ञान में नहीं है। कुछ देर बाद इस पर कुछ कह सकते हैं, लेकिन अगर हमारे पास कम्प्लेंट आई है, तो उस पर उचित कार्रवाई की जाएगी। -एम एस रंधावा, डीसीपी, सेंट्रल
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