नई दिल्ली
दिल्ली का असली बॉस कौन होगा इसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज आने वाला है। पिछले साल 2 नवंबर से इस मामले की सुनवाई शुरू हुई थी और एक महीने की लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट सुबह साढ़े 10 बजे से सुनवाई शुरू करेगा और 11 बजे तक फैसला आ जाने की उम्मीद है। दिल्ली सरकार व केंद्र के बीच अधिकारों के लेकर पिछले कई सालों से जबरदस्त रस्साकशी चल रही है। आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है। ऐसे में संवैधानिक बेंच अपने फैसले में कई संवैधानिक सवालों का जवाब देगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामला महत्वपूर्ण संवैधानिक व कानूनी पहलू से जुड़ा हुआ है, जिसे संवैधानिक बेंच एग्जामिन करेगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलजी को ऐडमिनिस्ट्रेटिव हेड बताया है। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 6 अपील की हुई है। आइए आपको बताते हैं इस विवाद से जुड़ी दलीलें और बड़ी बातें...
बड़ी बातें
-चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.के. सिकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की संवैधानिक बेंच इस मामले में फैसला सुनाएगी।
-सुनवाई सुबह साढ़े 10 बजे शुरू होगी। 11 बजे तक फैसला आ जाने की उम्मीद।
-2 नवंबर 2017 को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई थी।
-AAP सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज देने की मांग कर रही है।
-दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलजी को ऐडमिनिस्ट्रेटिव हेड बताया था।
-दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
-दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है और केंद्र के पास ज्यादा शक्तियां हैं।
-दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना जरूरी है।
फैसला से क्या होगा तय
-अगर फैसला केंद्र सरकार के पक्ष में आता है तो यथास्थिति बनी रहेगी।
-अगर फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में आता है तो काफी बदलाव देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि तब दिल्ली एक पूर्ण राज्य होगा और उसके पास वो तमाम अधिकार आ जाएंगे जो पूर्ण राज्यों को मिलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में अबतक क्या हुआ
दिल्ली सरकार की 10 बड़ी दलीलें
-चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना जरूरी है।
-संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत पब्लिक ट्रस्ट का प्रावधान है। यानी दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी और वह जनता के प्रति जवाबदेह होगी।
- लैंड, पब्लिक ऑर्डर और पुलिस को छोड़कर राज्य और समवर्ती सूची में मौजूद मामले में दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।
-अगर संविधान में विधायिका का प्रावधान किया गया है तब उसे कानून बनाने का अधिकार होगा।
-हम संसदीय वरीयता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं लेकिन चुनी हुई लोकतांत्रित सरकार बिना अधिकार के नहीं हो सकती।
-अनुच्छेद-239 एए को इस तरह से परिभाषित नहीं किया जा सकता कि उसका मुख्य मकसद ही बेकार हो जाए। अनुच्छेद-239 एए के तहत ही दिल्ली को स्पेशल संवैधानिक दर्जा दिया गया था।
-अनुच्छेद-239 एए आखिर एक लोकतांत्रिक प्रयोग था। इसकी व्याख्या से ही तय होगा कि ये सफल रहा या नहीं। 239एए के तहत दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया है। उसकी व्याख्या करनी चाहिए।
-239एए के तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी जो जनता के लिए जवाबदेह होगी।
-मंत्रियों के समूह के फैसले से अगर एलजी सहमत नहीं तो मामला राष्ट्रपति के पास चला जाता है। फिर हर मामले में एलजी ही सर्वेसर्वा हो जाते हैं।
-अगर लोगों के प्रति फैसले में जवाबदेही नहीं होगी फिर क्या होगा।
केंद्र सरकार की 10 बड़ी दलीलें
-केंद्र सरकार की ओर से अडिशनल सलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने दलील पेश करते हुए कहा था कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और उसे कभी भी राज्य के तौर पर नहीं रखा गया है।
-संविधान में दिल्ली को राज्य के तौर पर रखने के बारे में कोई जिक्र नहीं किया है और न ही ऐसी अवधारण दिखती है। जो संविधान में विशिष्ट तौर पर उल्लिखित नहीं है, उसे केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के बारे में खुद से व्याख्या नहीं की जा सकती।
-विधानसभा होने का यह मतलब नहीं है कि दिल्ली राज्य है और उसे दूसरे राज्यों की तरह अधिकार प्राप्त है। ऐसे में इस तरह की परिकल्पना नहीं की जा सकती कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के पास अलग से विशेष तौर पर एग्जिक्युटिव पावर है।
-दिल्ली पूरी तरह से केंद्र द्वारा शासित प्रदेश है और आखिरी अधिकार केंद्र के जरिए राष्ट्रपति के पास है। दिल्ली को विशेष तौर पर एग्जिक्युटिव अधिकार के बारे में संविधान का कोई मकसद नहीं है और न ही ऐसी अवधारणा है क्योंकि इससे अव्यवस्था सी हो जाएगी।
-केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई कि 1987 में केंद्र सरकार ने तमाम राजनीतिक पार्टियों की मांग कर एक कमिटी बनाई थी जिसने इस तथ्य पर विचार किया था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाए। लेकिन कमिटी ने इस मांग को ठुकरा दिया।
-दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, जिसके पास किसी राज्य के बराबर शक्तियां नहीं हैं। दिल्ली न तो राज्य है और न ही राज्य सरकार।
-दिल्ली सरकार खुद को पीड़ित बताकर सहानुभूति लेने की कोशिश में है।
-केंद्र ने कहा कि दिल्ली न तो राज्य है और न ही राज्य सरकार। दिल्ली के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इसके पास सह-अस्तित्व की शक्तियां हैं, इसे केंद्र शासित प्रदेश माना जाएगा। एलजी के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह मानना बाध्यकारी नहीं है।
-केंद्र ने कहा कि राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा, राज्य सरकार और राज्यों के विधानसभा के सदस्यों को वोटिंग का अधिकार है। साथ ही दिल्ली और पुदुचेरी के विधानसभा सदस्यों को वोटिंग का अधिकार दिया गया है।
-यानी सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव के लिए राज्य का दर्जा दिया गया है। जहां तक 239 एए का सवाल है तो उसमें राज्य के तौर पर मान्यता नहीं है। संविधान में जब लिखा नहीं है तो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की राज्य के तौर पर व्याख्या नहीं की जा सकती।
(इनपुट्स-राजेश चौधरी, एनबीटी रिपोर्टर )
दिल्ली का असली बॉस कौन होगा इसपर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आज आने वाला है। पिछले साल 2 नवंबर से इस मामले की सुनवाई शुरू हुई थी और एक महीने की लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 6 दिसंबर 2017 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट सुबह साढ़े 10 बजे से सुनवाई शुरू करेगा और 11 बजे तक फैसला आ जाने की उम्मीद है। दिल्ली सरकार व केंद्र के बीच अधिकारों के लेकर पिछले कई सालों से जबरदस्त रस्साकशी चल रही है। आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग कर रही है। ऐसे में संवैधानिक बेंच अपने फैसले में कई संवैधानिक सवालों का जवाब देगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मामला महत्वपूर्ण संवैधानिक व कानूनी पहलू से जुड़ा हुआ है, जिसे संवैधानिक बेंच एग्जामिन करेगी। दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलजी को ऐडमिनिस्ट्रेटिव हेड बताया है। दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 6 अपील की हुई है। आइए आपको बताते हैं इस विवाद से जुड़ी दलीलें और बड़ी बातें...
बड़ी बातें
-चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.के. सिकरी, जस्टिस ए.एम. खानविलकर, जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण की संवैधानिक बेंच इस मामले में फैसला सुनाएगी।
-सुनवाई सुबह साढ़े 10 बजे शुरू होगी। 11 बजे तक फैसला आ जाने की उम्मीद।
-2 नवंबर 2017 को इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई थी।
-AAP सरकार दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्ज देने की मांग कर रही है।
-दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने आदेश में एलजी को ऐडमिनिस्ट्रेटिव हेड बताया था।
-दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
-दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है और केंद्र के पास ज्यादा शक्तियां हैं।
-दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी है कि चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना जरूरी है।
फैसला से क्या होगा तय
-अगर फैसला केंद्र सरकार के पक्ष में आता है तो यथास्थिति बनी रहेगी।
-अगर फैसला दिल्ली सरकार के पक्ष में आता है तो काफी बदलाव देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि तब दिल्ली एक पूर्ण राज्य होगा और उसके पास वो तमाम अधिकार आ जाएंगे जो पूर्ण राज्यों को मिलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में अबतक क्या हुआ
दिल्ली सरकार की 10 बड़ी दलीलें
-चुनी हुई सरकार के पास अधिकार होना जरूरी है।
-संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत पब्लिक ट्रस्ट का प्रावधान है। यानी दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी और वह जनता के प्रति जवाबदेह होगी।
- लैंड, पब्लिक ऑर्डर और पुलिस को छोड़कर राज्य और समवर्ती सूची में मौजूद मामले में दिल्ली विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार है।
-अगर संविधान में विधायिका का प्रावधान किया गया है तब उसे कानून बनाने का अधिकार होगा।
-हम संसदीय वरीयता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं लेकिन चुनी हुई लोकतांत्रित सरकार बिना अधिकार के नहीं हो सकती।
-अनुच्छेद-239 एए को इस तरह से परिभाषित नहीं किया जा सकता कि उसका मुख्य मकसद ही बेकार हो जाए। अनुच्छेद-239 एए के तहत ही दिल्ली को स्पेशल संवैधानिक दर्जा दिया गया था।
-अनुच्छेद-239 एए आखिर एक लोकतांत्रिक प्रयोग था। इसकी व्याख्या से ही तय होगा कि ये सफल रहा या नहीं। 239एए के तहत दिल्ली को विशेष दर्जा दिया गया है। उसकी व्याख्या करनी चाहिए।
-239एए के तहत दिल्ली में चुनी हुई सरकार होगी जो जनता के लिए जवाबदेह होगी।
-मंत्रियों के समूह के फैसले से अगर एलजी सहमत नहीं तो मामला राष्ट्रपति के पास चला जाता है। फिर हर मामले में एलजी ही सर्वेसर्वा हो जाते हैं।
-अगर लोगों के प्रति फैसले में जवाबदेही नहीं होगी फिर क्या होगा।
केंद्र सरकार की 10 बड़ी दलीलें
-केंद्र सरकार की ओर से अडिशनल सलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने दलील पेश करते हुए कहा था कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है और उसे कभी भी राज्य के तौर पर नहीं रखा गया है।
-संविधान में दिल्ली को राज्य के तौर पर रखने के बारे में कोई जिक्र नहीं किया है और न ही ऐसी अवधारण दिखती है। जो संविधान में विशिष्ट तौर पर उल्लिखित नहीं है, उसे केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के बारे में खुद से व्याख्या नहीं की जा सकती।
-विधानसभा होने का यह मतलब नहीं है कि दिल्ली राज्य है और उसे दूसरे राज्यों की तरह अधिकार प्राप्त है। ऐसे में इस तरह की परिकल्पना नहीं की जा सकती कि केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली के पास अलग से विशेष तौर पर एग्जिक्युटिव पावर है।
-दिल्ली पूरी तरह से केंद्र द्वारा शासित प्रदेश है और आखिरी अधिकार केंद्र के जरिए राष्ट्रपति के पास है। दिल्ली को विशेष तौर पर एग्जिक्युटिव अधिकार के बारे में संविधान का कोई मकसद नहीं है और न ही ऐसी अवधारणा है क्योंकि इससे अव्यवस्था सी हो जाएगी।
-केंद्र सरकार की ओर से दलील दी गई कि 1987 में केंद्र सरकार ने तमाम राजनीतिक पार्टियों की मांग कर एक कमिटी बनाई थी जिसने इस तथ्य पर विचार किया था कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया जाए। लेकिन कमिटी ने इस मांग को ठुकरा दिया।
-दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है, जिसके पास किसी राज्य के बराबर शक्तियां नहीं हैं। दिल्ली न तो राज्य है और न ही राज्य सरकार।
-दिल्ली सरकार खुद को पीड़ित बताकर सहानुभूति लेने की कोशिश में है।
-केंद्र ने कहा कि दिल्ली न तो राज्य है और न ही राज्य सरकार। दिल्ली के लिए विशेष व्यवस्था की गई है। इसके पास सह-अस्तित्व की शक्तियां हैं, इसे केंद्र शासित प्रदेश माना जाएगा। एलजी के लिए मंत्रिपरिषद की सलाह मानना बाध्यकारी नहीं है।
-केंद्र ने कहा कि राष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा, राज्य सरकार और राज्यों के विधानसभा के सदस्यों को वोटिंग का अधिकार है। साथ ही दिल्ली और पुदुचेरी के विधानसभा सदस्यों को वोटिंग का अधिकार दिया गया है।
-यानी सिर्फ राष्ट्रपति चुनाव के लिए राज्य का दर्जा दिया गया है। जहां तक 239 एए का सवाल है तो उसमें राज्य के तौर पर मान्यता नहीं है। संविधान में जब लिखा नहीं है तो केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की राज्य के तौर पर व्याख्या नहीं की जा सकती।
(इनपुट्स-राजेश चौधरी, एनबीटी रिपोर्टर )
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