नई दिल्ली
साउथ दिल्ली में कॉलोनियों के पुनर्विकास से जुड़े प्रॉजेक्ट के लिए 16,500 से ज्यादा पेड़ों की कटाई के पर केंद्र और दिल्ली सरकार समेत सभी संबंधित अथॉरिटी को हाई कोर्ट ने बुधवार को आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने केंद्र से रीडिवेलपमेंट प्रॉजेक्शन से मतलब पूछे जाने के साथ इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई की इजाजत दिए जाने पर सवाल उठाया।
प्रॉजेक्ट से जुड़ी तमाम समस्याएं गिनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के सेंटर भीड़ कम करने की बजाए बढ़ाने पर क्यों जोर दिया जा रहा है, जबकि दिल्ली के बॉर्डर वाले इलाके में डीडीए की काफी जमीन खाली पड़ी है। हाई कोर्ट ने अथॉरिटीज से साफ कहा कि जब तक वे पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दे देते, तब तक इस प्रॉजेक्ट के लिए एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा।
मामले में सुनवाई शुरू होते ही एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच केंद्र समेत इस प्रॉजेक्ट से जुड़ी सभी अथॉरिटीज पर बरस पड़ी। हाई कोर्ट ने उनसे पूछा कि कैसे पौधे एक हरे भरे पेड़ की बराबरी कर सकते हैं? बेंच ने कहा कि 6 कॉलोनियों के लिए 16,500 के करीब पेड़ों को काटने का मतलब दिल्ली को मरने के लिए छोड़ देने के बराबर है। हाई कोर्ट ने अपने अगले आदेश तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगाते हुए संबंधित अथॉरिटीज से पूछा कि क्या उन्होंने इस काम को शुरू करवाते हुए इसके लिए कोई एनवायरनमेंट असेसमेंट करवाया था।
जस्टिस मित्तल ने कहा कि यदि दिल्ली के लिए जरूरी है कि इन इमारतों को ढहा दिया जाए, तो क्या ऐसा कर दिया जाएगा? सरकार या अथॉरिटीज शहर को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ सकती। बेंच ने यह भी कहा कि क्यों सबको लुटियंस दिल्ली में ही जगह चाहिए, जबकि दिल्ली के बॉर्डर वाले इलाके में इतनी जमीनें खाली पड़ी हैं। मकसद भीड़ कम करने का होना चाहिए, बढ़ाने का नहीं। कोर्ट ने कहा कि अथॉरिटीज को नरेला जैसे इलाकों में कॉलोनियां विकसित करनी चाहिए। देश की राजधानी में ग्राउंड वॉटर के स्तर में लगातार गिरावट पर गौर करते हुए बेंच ने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा कि कैसे वे उन पौधों तक पानी पहुंचाएंगे जो इन हरे भरे पेड़ों की जगह लगाया जाएगा।
साउथ दिल्ली में कॉलोनियों के पुनर्विकास से जुड़े प्रॉजेक्ट के लिए 16,500 से ज्यादा पेड़ों की कटाई के पर केंद्र और दिल्ली सरकार समेत सभी संबंधित अथॉरिटी को हाई कोर्ट ने बुधवार को आड़े हाथों लिया। कोर्ट ने केंद्र से रीडिवेलपमेंट प्रॉजेक्शन से मतलब पूछे जाने के साथ इतनी बड़ी संख्या में पेड़ों की कटाई की इजाजत दिए जाने पर सवाल उठाया।
प्रॉजेक्ट से जुड़ी तमाम समस्याएं गिनाते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि दिल्ली के सेंटर भीड़ कम करने की बजाए बढ़ाने पर क्यों जोर दिया जा रहा है, जबकि दिल्ली के बॉर्डर वाले इलाके में डीडीए की काफी जमीन खाली पड़ी है। हाई कोर्ट ने अथॉरिटीज से साफ कहा कि जब तक वे पूछे गए सवालों का जवाब नहीं दे देते, तब तक इस प्रॉजेक्ट के लिए एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा।
मामले में सुनवाई शुरू होते ही एक्टिंग चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस सी हरिशंकर की बेंच केंद्र समेत इस प्रॉजेक्ट से जुड़ी सभी अथॉरिटीज पर बरस पड़ी। हाई कोर्ट ने उनसे पूछा कि कैसे पौधे एक हरे भरे पेड़ की बराबरी कर सकते हैं? बेंच ने कहा कि 6 कॉलोनियों के लिए 16,500 के करीब पेड़ों को काटने का मतलब दिल्ली को मरने के लिए छोड़ देने के बराबर है। हाई कोर्ट ने अपने अगले आदेश तक पेड़ों की कटाई पर रोक लगाते हुए संबंधित अथॉरिटीज से पूछा कि क्या उन्होंने इस काम को शुरू करवाते हुए इसके लिए कोई एनवायरनमेंट असेसमेंट करवाया था।
जस्टिस मित्तल ने कहा कि यदि दिल्ली के लिए जरूरी है कि इन इमारतों को ढहा दिया जाए, तो क्या ऐसा कर दिया जाएगा? सरकार या अथॉरिटीज शहर को इस तरह मरने के लिए नहीं छोड़ सकती। बेंच ने यह भी कहा कि क्यों सबको लुटियंस दिल्ली में ही जगह चाहिए, जबकि दिल्ली के बॉर्डर वाले इलाके में इतनी जमीनें खाली पड़ी हैं। मकसद भीड़ कम करने का होना चाहिए, बढ़ाने का नहीं। कोर्ट ने कहा कि अथॉरिटीज को नरेला जैसे इलाकों में कॉलोनियां विकसित करनी चाहिए। देश की राजधानी में ग्राउंड वॉटर के स्तर में लगातार गिरावट पर गौर करते हुए बेंच ने केंद्र और दिल्ली सरकार से पूछा कि कैसे वे उन पौधों तक पानी पहुंचाएंगे जो इन हरे भरे पेड़ों की जगह लगाया जाएगा।
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