नई दिल्ली
विधानसभा सदस्यता बचाने के लिए कानूनी जंग लड़ रहे 'आप' के विधायकों के लिए मंगलवार को उस वक्त मुश्किलें बढ़ गईं जब दिल्ली हाई कोर्ट ने पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के तौर पर उन्हें अलग से मिले ऑफिस पर सवाल खड़ा किया।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंद्रशेखर की बेंच ने विधायकों से पूछा कि जब पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के तौर पर उन्हें न तो कोई आर्थिक लाभ मिल रहा था, न भत्ता और न ही उनके लिए कोई खास काम था। ऐसे में उनके लिए अलग से ऑफिस क्यों बनवाए गए और उन ऑफिसों के निर्माण पर क्यों खर्च किया गया। जस्टिस खन्ना ने कहा, 'आमतौर पर ऑफिस देने का मतलब तो यही होता है कि आप आएं और वहां काम करें।'
जवाब में विधायकों की ओर से सीनियर एडवोकेट के. वी. विश्वनाथन ने दलील दी गई कि ऑफिसों के आवंटन पर रोक लगाई गई थी, निर्माण पर नहीं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं को विधानसभा परिसर में सिर्फ अपने संबधित मंत्रियों के साथ बैठने के लिए अलग से जगह दी गई, जिससे वे देख सकें कि मंत्री कैसे काम करते हैं। लेकिन कुर्सी-मेज रख देने से वह ऑफिस सरकार के अंतर्गत 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' नहीं माना जा सकता। इसके लिए उन्हें किसी तरह का कोई आर्थिक लाभ या भत्ता नहीं मिल रहा था।
उन्होंने दलील दी कि ट्रांसपोर्ट भी सिर्फ ऑफिस से जुड़े कामकाज के लिए थे। ऐसे में उनके खिलाफ किसलिए मुकदमा दायर किया गया। इस पर बेंच ने पूछा कि क्या विधायक अपने मंत्रियों से मंत्री बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे। क्या कोर्ट को इसे रिकॉर्ड पर लेना चाहिए। जवाब में विधायकों के वकील ने दलील कि उनके कहने का मतलब कामकाज की देखरेख से है।
सीनियर एडवोकेट ने यह साबित करने की कोशिश कि 20 'आप' विधायकों को दिल्ली सरकार के कानून के तहत जो पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का पद दिया गया, वह सरकार के तहत निर्धारित 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' के दायरे में नहीं आता जिसमें ज्यादा जोर आर्थिक लाभ पर होता है। 'आप' विधायकों की दलीलें 15 फरवरी को भी जारी रहेंगी।
विधानसभा सदस्यता बचाने के लिए कानूनी जंग लड़ रहे 'आप' के विधायकों के लिए मंगलवार को उस वक्त मुश्किलें बढ़ गईं जब दिल्ली हाई कोर्ट ने पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के तौर पर उन्हें अलग से मिले ऑफिस पर सवाल खड़ा किया।
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस चंद्रशेखर की बेंच ने विधायकों से पूछा कि जब पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी के तौर पर उन्हें न तो कोई आर्थिक लाभ मिल रहा था, न भत्ता और न ही उनके लिए कोई खास काम था। ऐसे में उनके लिए अलग से ऑफिस क्यों बनवाए गए और उन ऑफिसों के निर्माण पर क्यों खर्च किया गया। जस्टिस खन्ना ने कहा, 'आमतौर पर ऑफिस देने का मतलब तो यही होता है कि आप आएं और वहां काम करें।'
जवाब में विधायकों की ओर से सीनियर एडवोकेट के. वी. विश्वनाथन ने दलील दी गई कि ऑफिसों के आवंटन पर रोक लगाई गई थी, निर्माण पर नहीं। उन्होंने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ताओं को विधानसभा परिसर में सिर्फ अपने संबधित मंत्रियों के साथ बैठने के लिए अलग से जगह दी गई, जिससे वे देख सकें कि मंत्री कैसे काम करते हैं। लेकिन कुर्सी-मेज रख देने से वह ऑफिस सरकार के अंतर्गत 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' नहीं माना जा सकता। इसके लिए उन्हें किसी तरह का कोई आर्थिक लाभ या भत्ता नहीं मिल रहा था।
उन्होंने दलील दी कि ट्रांसपोर्ट भी सिर्फ ऑफिस से जुड़े कामकाज के लिए थे। ऐसे में उनके खिलाफ किसलिए मुकदमा दायर किया गया। इस पर बेंच ने पूछा कि क्या विधायक अपने मंत्रियों से मंत्री बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे। क्या कोर्ट को इसे रिकॉर्ड पर लेना चाहिए। जवाब में विधायकों के वकील ने दलील कि उनके कहने का मतलब कामकाज की देखरेख से है।
सीनियर एडवोकेट ने यह साबित करने की कोशिश कि 20 'आप' विधायकों को दिल्ली सरकार के कानून के तहत जो पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी का पद दिया गया, वह सरकार के तहत निर्धारित 'ऑफिस ऑफ प्रॉफिट' के दायरे में नहीं आता जिसमें ज्यादा जोर आर्थिक लाभ पर होता है। 'आप' विधायकों की दलीलें 15 फरवरी को भी जारी रहेंगी।
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