नई दिल्ली
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के डॉक्टरों ने 27 साल के एक युवक के सीने में गहराई में धंसी कील को सफलतापूर्वक निकाल दिया। खास बात यह है कि इस ऑपरेशन में कम से कम चीरा लगाने वाली विडियो थोरैसिक सर्जरी (VATS) तकनीक का इस्तेमाल किया गया। बताया जा रहा है कि युवक के पीठ में एक बाजार में इस कील को भोंक दिया गया था।
5 इंच की कील उसके पीठ की तरफ से रीढ़ की हड्डी को पार कर गई और उसके बाएं फेफड़ें में जाकर फंस गई। इससे युवक की हालत गंभीर होती गई। डॉक्टरों ने VATS (विडियो असिस्टेड थोरैसिक सर्जरी) से कील को बाहर निकाला। एम्स ट्रॉमा सेन्टर में सर्जरी के प्रफेसर बिप्लब मिश्रा ने बताया कि मरीज को पहले नजदीक के एक अस्पताल ले जाया गया जहां पर शरीर के उस क्षेत्र का सीटी स्कैन किया गया। हालांकि, किसी ने उसका ऑपरेशन नहीं किया और आखिरकार उसे एम्स ट्रॉमा सेन्टर लाया गया।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि ऐसे मामलों में क्लासिकल थोरैकोटमी की जाती है, जिसमें हम सीना खोल सकें ताकि कील को सीधे देखकर बाहर निकाला जा सके। मिश्रा ने बताया कि इस मामले में हमने इसी तरह का न्यूनतम इनवेसिव तकनीक का इस्तेमाल किया जिसे VATS के नाम से जाना जाता है और इसके जरिए हमने कील को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। इस पूरी प्रक्रिया को एक घंटे से कम समय में पूरा कर लिया गया।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के डॉक्टरों ने 27 साल के एक युवक के सीने में गहराई में धंसी कील को सफलतापूर्वक निकाल दिया। खास बात यह है कि इस ऑपरेशन में कम से कम चीरा लगाने वाली विडियो थोरैसिक सर्जरी (VATS) तकनीक का इस्तेमाल किया गया। बताया जा रहा है कि युवक के पीठ में एक बाजार में इस कील को भोंक दिया गया था।
5 इंच की कील उसके पीठ की तरफ से रीढ़ की हड्डी को पार कर गई और उसके बाएं फेफड़ें में जाकर फंस गई। इससे युवक की हालत गंभीर होती गई। डॉक्टरों ने VATS (विडियो असिस्टेड थोरैसिक सर्जरी) से कील को बाहर निकाला। एम्स ट्रॉमा सेन्टर में सर्जरी के प्रफेसर बिप्लब मिश्रा ने बताया कि मरीज को पहले नजदीक के एक अस्पताल ले जाया गया जहां पर शरीर के उस क्षेत्र का सीटी स्कैन किया गया। हालांकि, किसी ने उसका ऑपरेशन नहीं किया और आखिरकार उसे एम्स ट्रॉमा सेन्टर लाया गया।
डॉ. मिश्रा ने बताया कि ऐसे मामलों में क्लासिकल थोरैकोटमी की जाती है, जिसमें हम सीना खोल सकें ताकि कील को सीधे देखकर बाहर निकाला जा सके। मिश्रा ने बताया कि इस मामले में हमने इसी तरह का न्यूनतम इनवेसिव तकनीक का इस्तेमाल किया जिसे VATS के नाम से जाना जाता है और इसके जरिए हमने कील को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। इस पूरी प्रक्रिया को एक घंटे से कम समय में पूरा कर लिया गया।
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