Tuesday, August 29, 2017

ऐसे चुटकियों में कार उड़ा ले जाते हैं चोर

नई दिल्ली
समय के साथ अब कार चोर भी स्मार्ट हो गए हैं और तकनीक का इस्तेमाल करने में माहिर हो गए हैं। चोर अब अपने आपको अपडेट रखने की कोशिश करते हैं। कुछ चोर तो चोरी का क्रैश कोर्स करने निकल गए हैं और कुछ यूट्यूब और अन्य वेबसाइट्स का सहारा ले रहे हैं। दिल्ली पुलिस ने साउथ दिल्ली में एक बड़े कार चोरी के गिरोह का भंडाफोड़ किया है। इसमें दो साल में 500 कार चोरी करने वाले 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस गिरोह का सरगना एक सिविल इंजिनियर है।

पुलिस ने 5लाख से ज्यादा की एक डायग्नॉस्टिक किट के साथ चाभी बनाने की मशीन और 177 स्मार्ट चाभियां बरामद की हैं। इनमें से 94 चाभियों को अलग-अलग कारों के लिए बनाया गया था। गिरफ्तार किए गए आरोपी की पहचान मध्य प्रदेश के नीरज, यूपी के जितेंद्र और सुभाष तिवारी, गुंड़गांव के नरेंद्र, नासिर, शौकत, मोहसिन, वसीम और बुलंदशहर के रहने वाले आशिम के रूप में की गई है।

डीसीपी (साउथ) ईश्वर सिंह ने बताया, 'एसीपी पलविंदर चहल और इंस्पेक्टर रिछपाल सिंह के नेतृत्व में पुलिस की टीम ने 10 दिनों में कई ऑपरेशन किए।' पहले तिवारी और जितेंद्र को 20 अगस्त को गिरफ्तार किया गया। उनके पास से 6 सेंसर वाली कारें और चाभियां बरामद की गईं। इसी के साथ एक चुराई हुई होंडा सिटी भी जब्त की गई। गिरोह के सरगना सुभाष तिवारी को 25 अगस्त को देवरिया से गिरफ्तार किया गया।

डीसीपी ने बताया, 'दो कारें और ऑटोमैटिक की मेकर मशीन, कुछ स्मार्ट चाभियां बरामद की गईं।' उन्होंने बताया कि यह गैंग स्मार्ट तरीके से चोरी करता था और सेंसर बेस्ड, प्रोग्राम्ड स्मार्ट की का इस्तेमाल करता था। इससे वह बिना तोड़फोड़ के कार के अंदर दाखिल हो जाते थे और इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर मॉड्यूल में भी फेरबदल कर देते थे।

सुभाष तिवारी ने 1989 में गोरखपुर में सिविल इंजिनियरिंग की है। इसके बात उसने कई कंपनियों में काम किया। वह दिल्ली NCR में हुई बहुत सारी कार चोरियों में शामिल रहा है। वह चुराई गई कारों को बड़ी कीमत लेकर बेचता था। जितेंद्र एक कैब अग्रीगेटर में काम करता था और वह यात्रियों को भी निशाना बनाता था। वह नीरज तिवारी को जानकारियां देता था। नीरज गाड़ियों के मॉडल की जानकारी लेने के बाद टेक्निकल एक्सपर्ट नरेश को सूचना देता था। इसके बाद तिवारी सेंसर वाली स्मार्ट चाभी देता था। कार चुराने के बाद वे देवरिया ले जाते थे और वहां से इन्हें उत्तरपूर्व के राज्यों में भेज दिया जाता था।

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