नई दिल्ली
चिड़ियाघर में पिछले साल 45 पशु-पक्षियों की एकाएक और लगातार मौत की वजह हमेशा के लिए रहस्य बन चुकी है। शंका थी कि उनकी मौत बर्ड फ्लू के संक्रमण से हुई, इसलिए उनका पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया। बॉडी खोलते ही संक्रमण फैल सकता था, इसलिए उन सभी बॉडीज को अच्छी तरह लपेटकर भोपाल स्थित लैब में भिजवा दिया गया। यहां से उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई, यानी उन्हें बर्ड फ्लू नहीं था। इस चक्कर में उनकी मौत की असल वजह हमेशा के लिए दब गई।
इस खुलासे के बाद चिड़ियाघर के 'मॉनिटरिंग और वेटरनिटी सिस्टम' (स्वास्थ्य की निगरानी और इलाज) पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक सवाल के जवाब में लोकसभा में जो रिपोर्ट पेश की गई है, वह डरावनी है। रिपोर्ट के अनुसार, चिड़ियाघर में पिछले एक साल (2016-17) में 325 पशु-पक्षियों की रेकॉर्ड मौतें हुई हैं। इस रिपोर्ट में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा है कि जिन पशु-पक्षियों के बर्ड फ्लू के वायरस H5N8 (एवियन इंफ्लुएंजा) से संक्रमित होने का संदेह था, उनका पोस्टमॉर्टम नहीं हो सका, इसलिए मौत की सही वजह सामने नहीं आ सकी। जिन पशु-पक्षियों के बर्ड फ्लू के वायरस से संक्रमित होने का संदेह जताया गया, उनकी संख्या लगभग 45 है। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर एकाएक उनकी मौत किसी संक्रमण से हुई। ऐसा तो नहीं, बर्ड फ्लू के शोर में मौत की असल वजह को दबाया गया, जो अब कभी सामने नहीं आ सकती।
इसके अलावा, जो बाकी 280 मौतें हुई हैं, उनकी वजह भी कम चौंकाने वाली नहीं। वन्य जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि दिल्ली का चिड़ियाघर पशु-पक्षियों के लिए 'बंदी वधगृह' बन चुका है। जहां वन्य जीव देखरेख में लापरवाही के चलते विभिन्न तरह के संक्रमण या ट्रॉमा (आघात) का शिकार हो रहे हैं। ऐसे पशु-पक्षियों की तादाद बहुत है, जिनकी मौत की वजह ट्रॉमा बताई गई है। जानकारों के मुताबिक, जब पशु-पक्षियों को कहीं शिफ्ट किया जाता है तो अक्सर कई पशु पक्षी माहौल को पचा नहीं पाते और तनावग्रस्त हो जाते हैं। इसके अलावा निमोनिया, तपैदिक(टी.बी.) और आंत्रशोध से भी बहुत मौतें हुई हैं। पशु प्रेमियों का कहना है कि जब राजधानी के चिड़ियाघर का ऐसा हाल है तो बाकी राज्यों के चिड़ियाघरों की दशा का अंदाजा लगाना आसान है।
मौतों पर सेलिब्रेशन!
हाल में चिड़ियाघर प्रशासन ने जानवरों का जन्मदिन मनाने की शुरुआत की। इस क्रम में वाइट टाइगर विजय का जन्मदिन 'धूमधाम' के साथ मनाया गया। चिड़ियाघर प्रशासन का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने से पशुओं के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ेगी, लेकिन दूसरी ओर जिस तरह चिड़ियाघर में पशु-पक्षियों की मौत का आंकड़ा सामने आया है, उससे चिड़ियाघर प्रशासन सवालों के घेरे में है। कहा जा रहा है कि इस तरह के कार्यक्रम सिर्फ 'आई-वॉश' हैं, ताकि चिड़ियाघर की बदहाली से ध्यान हटाया जा सके। आरोप हैं कि बेजुबान पशु-पक्षियों की मौतों को जन्मदिन जैसे कार्यक्रम करके नजरंदाज किया जा रहा है। यही वजह है कि बीते एक साल में चिड़ियाघर में सबसे अधिक मृत्यु दर रिकॉर्ड हुई।
'चिड़ियाघर की लोकेशन सही नहीं'
पशु वैज्ञानिकों के अनुसार, मौजूदा चिड़ियाघर की लोकेशन पशु-पक्षियों के अनुकूल नहीं है। वह एक तरह के शहरी परिवेश में हैं, जहां मथुरा रोड के ट्रैफिक के शोर के साथ डस्ट-पलूशन भी है। जानवरों के बाड़े में पानी सड़ने की वजह से जलजनित बीमारियां फैलती हैं। इन वजहों से जानवरों में इन्फेक्शन फैलता है। वह तनावग्रस्त रहने की वजह से ट्रॉमा के शिकार होते हैं।
मौत की वजहों की जांच का निर्देश
हमने चिड़ियाघर की डायरेक्टर रेनू सिंह का पक्ष सुना। उन्होंने बताया कि जिस दौरान बर्ड फ्लू की आशंका से वन्य जीवों की मौत के मामले सामने आए थे, उस दौरान वह चिड़ियाघर की डायरेक्टर नहीं थीं। जब एकाएक मौत के मामले सामने आए, उस दौरान बर्ड फ्लू की आशंका थी। उसी के चलते पोस्टमॉर्टम नहीं कराया गया। सभी बॉडीज को रख कर भोपाल लैब में भेजा गया। वहां से H5N8 की रिपोर्ट नेगेटिव आई, इसलिए उस समय उनकी मौत की वजह पता नहीं चल पाई। हालांकि चिड़ियाघर प्रशासन ने एक सीनियर डॉक्टर को मौत की वजह की जांच का निर्देश दिया हुआ है। जहां तक चिड़ियाघर की व्यवस्था पर सवाल हैं, तो बता दें कि डॉक्टर्स का पूरा इंतजाम है। ऐंटी वायरस का छिड़काव लगातार किया जा रहा है। साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जाता है। चिड़ियाघर की लोकेशन में भी समस्या नहीं है क्योंकि, चिड़ियाघर में न रोड साइड का शोर पहुंचता है, न ऐसा कोई प्रदूषण, जिससे जानवरों की सेहत प्रभावित हो।
चिड़ियाघर में पिछले साल 45 पशु-पक्षियों की एकाएक और लगातार मौत की वजह हमेशा के लिए रहस्य बन चुकी है। शंका थी कि उनकी मौत बर्ड फ्लू के संक्रमण से हुई, इसलिए उनका पोस्टमॉर्टम नहीं किया गया। बॉडी खोलते ही संक्रमण फैल सकता था, इसलिए उन सभी बॉडीज को अच्छी तरह लपेटकर भोपाल स्थित लैब में भिजवा दिया गया। यहां से उनकी रिपोर्ट नेगेटिव आई, यानी उन्हें बर्ड फ्लू नहीं था। इस चक्कर में उनकी मौत की असल वजह हमेशा के लिए दब गई।
इस खुलासे के बाद चिड़ियाघर के 'मॉनिटरिंग और वेटरनिटी सिस्टम' (स्वास्थ्य की निगरानी और इलाज) पर सवाल खड़े हो रहे हैं। एक सवाल के जवाब में लोकसभा में जो रिपोर्ट पेश की गई है, वह डरावनी है। रिपोर्ट के अनुसार, चिड़ियाघर में पिछले एक साल (2016-17) में 325 पशु-पक्षियों की रेकॉर्ड मौतें हुई हैं। इस रिपोर्ट में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा है कि जिन पशु-पक्षियों के बर्ड फ्लू के वायरस H5N8 (एवियन इंफ्लुएंजा) से संक्रमित होने का संदेह था, उनका पोस्टमॉर्टम नहीं हो सका, इसलिए मौत की सही वजह सामने नहीं आ सकी। जिन पशु-पक्षियों के बर्ड फ्लू के वायरस से संक्रमित होने का संदेह जताया गया, उनकी संख्या लगभग 45 है। रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद सवाल उठ रहा है कि आखिर एकाएक उनकी मौत किसी संक्रमण से हुई। ऐसा तो नहीं, बर्ड फ्लू के शोर में मौत की असल वजह को दबाया गया, जो अब कभी सामने नहीं आ सकती।
इसके अलावा, जो बाकी 280 मौतें हुई हैं, उनकी वजह भी कम चौंकाने वाली नहीं। वन्य जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि दिल्ली का चिड़ियाघर पशु-पक्षियों के लिए 'बंदी वधगृह' बन चुका है। जहां वन्य जीव देखरेख में लापरवाही के चलते विभिन्न तरह के संक्रमण या ट्रॉमा (आघात) का शिकार हो रहे हैं। ऐसे पशु-पक्षियों की तादाद बहुत है, जिनकी मौत की वजह ट्रॉमा बताई गई है। जानकारों के मुताबिक, जब पशु-पक्षियों को कहीं शिफ्ट किया जाता है तो अक्सर कई पशु पक्षी माहौल को पचा नहीं पाते और तनावग्रस्त हो जाते हैं। इसके अलावा निमोनिया, तपैदिक(टी.बी.) और आंत्रशोध से भी बहुत मौतें हुई हैं। पशु प्रेमियों का कहना है कि जब राजधानी के चिड़ियाघर का ऐसा हाल है तो बाकी राज्यों के चिड़ियाघरों की दशा का अंदाजा लगाना आसान है।
मौतों पर सेलिब्रेशन!
हाल में चिड़ियाघर प्रशासन ने जानवरों का जन्मदिन मनाने की शुरुआत की। इस क्रम में वाइट टाइगर विजय का जन्मदिन 'धूमधाम' के साथ मनाया गया। चिड़ियाघर प्रशासन का मानना है कि इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने से पशुओं के लिए लोगों में जागरूकता बढ़ेगी, लेकिन दूसरी ओर जिस तरह चिड़ियाघर में पशु-पक्षियों की मौत का आंकड़ा सामने आया है, उससे चिड़ियाघर प्रशासन सवालों के घेरे में है। कहा जा रहा है कि इस तरह के कार्यक्रम सिर्फ 'आई-वॉश' हैं, ताकि चिड़ियाघर की बदहाली से ध्यान हटाया जा सके। आरोप हैं कि बेजुबान पशु-पक्षियों की मौतों को जन्मदिन जैसे कार्यक्रम करके नजरंदाज किया जा रहा है। यही वजह है कि बीते एक साल में चिड़ियाघर में सबसे अधिक मृत्यु दर रिकॉर्ड हुई।
'चिड़ियाघर की लोकेशन सही नहीं'
पशु वैज्ञानिकों के अनुसार, मौजूदा चिड़ियाघर की लोकेशन पशु-पक्षियों के अनुकूल नहीं है। वह एक तरह के शहरी परिवेश में हैं, जहां मथुरा रोड के ट्रैफिक के शोर के साथ डस्ट-पलूशन भी है। जानवरों के बाड़े में पानी सड़ने की वजह से जलजनित बीमारियां फैलती हैं। इन वजहों से जानवरों में इन्फेक्शन फैलता है। वह तनावग्रस्त रहने की वजह से ट्रॉमा के शिकार होते हैं।
मौत की वजहों की जांच का निर्देश
हमने चिड़ियाघर की डायरेक्टर रेनू सिंह का पक्ष सुना। उन्होंने बताया कि जिस दौरान बर्ड फ्लू की आशंका से वन्य जीवों की मौत के मामले सामने आए थे, उस दौरान वह चिड़ियाघर की डायरेक्टर नहीं थीं। जब एकाएक मौत के मामले सामने आए, उस दौरान बर्ड फ्लू की आशंका थी। उसी के चलते पोस्टमॉर्टम नहीं कराया गया। सभी बॉडीज को रख कर भोपाल लैब में भेजा गया। वहां से H5N8 की रिपोर्ट नेगेटिव आई, इसलिए उस समय उनकी मौत की वजह पता नहीं चल पाई। हालांकि चिड़ियाघर प्रशासन ने एक सीनियर डॉक्टर को मौत की वजह की जांच का निर्देश दिया हुआ है। जहां तक चिड़ियाघर की व्यवस्था पर सवाल हैं, तो बता दें कि डॉक्टर्स का पूरा इंतजाम है। ऐंटी वायरस का छिड़काव लगातार किया जा रहा है। साफ-सफाई का पूरा ख्याल रखा जाता है। चिड़ियाघर की लोकेशन में भी समस्या नहीं है क्योंकि, चिड़ियाघर में न रोड साइड का शोर पहुंचता है, न ऐसा कोई प्रदूषण, जिससे जानवरों की सेहत प्रभावित हो।
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