वीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली
बवाना में बीजेपी को अब तक की सबसे बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। 1998 से लेकर अब तक कभी भी बीजेपी का वोट शेयर 30 पर्सेंट से कम नहीं रहा। बवाना उपचुनाव में बीजेपी के परंपरागत वोटर्स टूट गए और बीजेपी का वोट पर्सेंट गिरकर 27.2 फीसदी रह गया। यह आलम तब है, जब करीब 4 महीने पहले ही बीजेपी ने एमसीडी चुनाव जीता है और 32.47% वोट हासिल किए हैं। कुछ महीनों के अंदर ही बीजेपी का वोट प्रतिशत उसके हाथों से निकल गया। विश्लेषकों का मानना है कि जल्द ही बीजेपी ने अपनी रणनीति और कार्यशैली में बदलाव नहीं किया तो दिल्ली में उसकी स्थिति और खराब हो सकती है।
इन वजहों से हुई हार
1. संगठन में लड़ाई और लोगों में गुस्सा
बीजेपी ने बवाना उपचुनाव में आम आदमी पार्टी छोड़कर आए वेद प्रकाश को अपना कैंडिडेट बनाया था। 2015 में वे आप के टिकट पर जीते थे। उन्हें इस सीट से 57.91 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी में वे इसी शर्त पर शामिल हुए थे कि उन्हें इस सीट से टिकट मिलेगा। लेकिन बीजेपी संगठन का यह कदम बीजेपी कार्यकर्ताओं और लोगों को रास नहीं आया। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कैंडिडेट गुग्गन सिंह जीते थे। उनको यहां इस चुनाव में बिल्कुल भी तरजीह नहीं दी गई। पार्टी की बेरुखी से नाराज होकर चुनाव से ठीक पहले वह AAP में शामिल हो गए। क्षेत्र के लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि करीब ढाई साल पहले जिस कैंडिडेट को आप के टिकट पर जिताया था, वह उन्हें अधर में छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।
2. एरिया के सांसद की अनदेखी
इस बात को लेकर भी बीजेपी के अंदर ही नाराजगी थी कि बवाना विधानसभा क्षेत्र नॉर्थ संसदीय क्षेत्र के तहत आता है और यहां के सांसद उदित राज हैं। लेकिन इस चुनाव का इनचार्ज वेस्ट दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा को बनाया गया है जो जाट नेता हैं। कार्यकर्ता इस बात से भी नाराज थे कि वह चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में बेहद कम नजर आए।
3. जाट नेताओं का आना
बवाना विधानसभा सीट रिजर्व सीट है। इस बात को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि यहां चुनाव प्रचार करने अधिकतर हरियाणा सरकार के मंत्री और केंद्र के मंत्री आए लेकिन एससी नेताओं की अधिकतर अनदेखी ही हुई। इस कदम से भी नुकसान ही नजर आया।
4. पोस्टर मामले को तूल देना
संगठन के अंदर ऐसी भी चर्चा चल रही है कि बीजेपी ने मुस्लिम पोस्टर वाले मामले को इतनी तूल दी कि इसके चलते मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण आम आदमी पार्टी के पक्ष में हो गया।
5. संगठन मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष में तनातनी
बीजेपी के कुछ नेता यह भी मानते हैं कि पिछले काफी समय से संगठन महामंत्री और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के बीच जमकर तनातनी चल रही है। इससे संगठन को काफी नुकसान पहुंच रहा है। ऐसा भी बताया जाता है कि इस चुनाव की पूरी कमान संगठन महामंत्री के हाथ में थी, जिसे लेकर भी मनमुटाव चल रहा था। इसका असर चुनाव पर पड़ा। संगठन के अंदर कई धड़े बने होने से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा है।
अब तक के चुनाव और बीजेपी का वोट शेयर
चुनाव बीजेपी का वोट शेयर (प्रतिशत में)
1993 47.82
1998 34.02
2003 35.22
2008 36.34
2013 33
2015 32.3
राजौरी गार्डन- 2017 51.99
बवाना- 2017 27.2
बवाना में बीजेपी को अब तक की सबसे बड़ी हार का मुंह देखना पड़ा है। 1998 से लेकर अब तक कभी भी बीजेपी का वोट शेयर 30 पर्सेंट से कम नहीं रहा। बवाना उपचुनाव में बीजेपी के परंपरागत वोटर्स टूट गए और बीजेपी का वोट पर्सेंट गिरकर 27.2 फीसदी रह गया। यह आलम तब है, जब करीब 4 महीने पहले ही बीजेपी ने एमसीडी चुनाव जीता है और 32.47% वोट हासिल किए हैं। कुछ महीनों के अंदर ही बीजेपी का वोट प्रतिशत उसके हाथों से निकल गया। विश्लेषकों का मानना है कि जल्द ही बीजेपी ने अपनी रणनीति और कार्यशैली में बदलाव नहीं किया तो दिल्ली में उसकी स्थिति और खराब हो सकती है।
इन वजहों से हुई हार
1. संगठन में लड़ाई और लोगों में गुस्सा
बीजेपी ने बवाना उपचुनाव में आम आदमी पार्टी छोड़कर आए वेद प्रकाश को अपना कैंडिडेट बनाया था। 2015 में वे आप के टिकट पर जीते थे। उन्हें इस सीट से 57.91 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी में वे इसी शर्त पर शामिल हुए थे कि उन्हें इस सीट से टिकट मिलेगा। लेकिन बीजेपी संगठन का यह कदम बीजेपी कार्यकर्ताओं और लोगों को रास नहीं आया। 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कैंडिडेट गुग्गन सिंह जीते थे। उनको यहां इस चुनाव में बिल्कुल भी तरजीह नहीं दी गई। पार्टी की बेरुखी से नाराज होकर चुनाव से ठीक पहले वह AAP में शामिल हो गए। क्षेत्र के लोगों में इस बात को लेकर गुस्सा था कि करीब ढाई साल पहले जिस कैंडिडेट को आप के टिकट पर जिताया था, वह उन्हें अधर में छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए।
2. एरिया के सांसद की अनदेखी
इस बात को लेकर भी बीजेपी के अंदर ही नाराजगी थी कि बवाना विधानसभा क्षेत्र नॉर्थ संसदीय क्षेत्र के तहत आता है और यहां के सांसद उदित राज हैं। लेकिन इस चुनाव का इनचार्ज वेस्ट दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा को बनाया गया है जो जाट नेता हैं। कार्यकर्ता इस बात से भी नाराज थे कि वह चुनाव के दौरान इस क्षेत्र में बेहद कम नजर आए।
3. जाट नेताओं का आना
बवाना विधानसभा सीट रिजर्व सीट है। इस बात को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं कि यहां चुनाव प्रचार करने अधिकतर हरियाणा सरकार के मंत्री और केंद्र के मंत्री आए लेकिन एससी नेताओं की अधिकतर अनदेखी ही हुई। इस कदम से भी नुकसान ही नजर आया।
4. पोस्टर मामले को तूल देना
संगठन के अंदर ऐसी भी चर्चा चल रही है कि बीजेपी ने मुस्लिम पोस्टर वाले मामले को इतनी तूल दी कि इसके चलते मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण आम आदमी पार्टी के पक्ष में हो गया।
5. संगठन मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष में तनातनी
बीजेपी के कुछ नेता यह भी मानते हैं कि पिछले काफी समय से संगठन महामंत्री और प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष के बीच जमकर तनातनी चल रही है। इससे संगठन को काफी नुकसान पहुंच रहा है। ऐसा भी बताया जाता है कि इस चुनाव की पूरी कमान संगठन महामंत्री के हाथ में थी, जिसे लेकर भी मनमुटाव चल रहा था। इसका असर चुनाव पर पड़ा। संगठन के अंदर कई धड़े बने होने से भी पार्टी को नुकसान पहुंचा है।
अब तक के चुनाव और बीजेपी का वोट शेयर
चुनाव बीजेपी का वोट शेयर (प्रतिशत में)
1993 47.82
1998 34.02
2003 35.22
2008 36.34
2013 33
2015 32.3
राजौरी गार्डन- 2017 51.99
बवाना- 2017 27.2
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