नई दिल्ली
हाल के दिनों में एक के बाद एक कई विवादों में घिर चुकी दिल्ली सरकार के भविष्य को लेकर जहां अटकलें शुरू हो गई हैं, वहीं इसके कामकाज पर भी बुरा असर पड़ रहा है। ज्यादातर शीर्ष नेताओं के विवादों और उनसे निपटने में व्यस्त होने के बीच नौकरशाही के हौसले पस्त हैं और आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कई नीतिगत फैसले नहीं लिए जा पा रहे हैं।
एसीबी और सीबीआई की ओर से पहले ही करीब एक दर्जन मामले दर्ज होने के बाद पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा के आरोपों की जांच भी शुरू हो गई है। मंगलवार को एसीबी ने पीडब्ल्यूडी में कथित घोटाले की जांच के लिए केस दर्ज कर लिया। जानकारों का कहना है कि जिन कंपनियों और लोगों पर अंगुली उठाई गई है, वे सड़क निर्माण, वॉटर पाइप लाइन और इंफ्रास्ट्रक्चर के दूसरे कामों से भी जुड़े हैं, ऐसे में इन सब कामों की प्रगति पर असर पड़ेगा।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास कोई विभाग नहीं है, लेकिन उन पर लगे गंभीर आरोपों से सकते में आई पार्टी और सरकार फिलहाल उसी में उलझकर रह गई है। मंगलवार को बुलाए गए विधानसभा सत्र में कई काम होने थे और इसी में एसजीएसटी बिल भी पास होना था, लेकिन अब कहा जा रहा है कि सरकार इनके लिए कुछ दिनों बाद अलग से सत्र बुलाएगी। फिलहाल केंद्र से सीधे टकराव के मूड में दिख रही सरकार अब किसी भी काम में सहयोग का संकेत नहीं देना चाहती। एमसीडी चुनाव में हार के बाद ऐसी खबरें आई थीं कि केजरीवाल सरकार ने लैंड पूलिंग पॉलिसी के लिए राजस्व विभाग की मंजूरी को हरी झंडी दिखा दी है, लेकिन अब इसके आसार नहीं दिख रहे। इसके अलावा एक्साइज पॉलिसी की फाइल भी कैबिनेट की मंजूरी का कई हफ्तों से इंतजार कर रही है।
जानकारों का कहना है कि लगभग सभी विभाग फिर राजभवन के दबाव में हैं और हर पॉलिसी पर उन्हें रिपोर्ट कर रहे हैं। इस बारे में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने पिछले हफ्ते एक सर्कुलर भी जारी किया था, जिसका कोई असर नहीं हुआ है। एलजी ने हेल्थ, इंफ्रा, एजुकेशन सहित लगभग हर विभाग से जुड़ी बैठकें बुलानी शुरू कर दी हैं, जिससे नौकरशाही पर दोहरा दबाव बन गया है।
अगले हफ्ते नए नगर निगमों के गठन की प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन आगे दिल्ली सरकार और निगमों के बीच खींचतान पहले से बदतर होने के संकेत मिल रहे हैं। बीजेपी ने निगमों को केंद्र से सीधे वित्तीय सहयोग की मांग शुरू कर दी है और इस मामले में कोई भी पहल दिल्ली सरकार के लिए बड़ा झटका होगी।
हाल के दिनों में एक के बाद एक कई विवादों में घिर चुकी दिल्ली सरकार के भविष्य को लेकर जहां अटकलें शुरू हो गई हैं, वहीं इसके कामकाज पर भी बुरा असर पड़ रहा है। ज्यादातर शीर्ष नेताओं के विवादों और उनसे निपटने में व्यस्त होने के बीच नौकरशाही के हौसले पस्त हैं और आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि कई नीतिगत फैसले नहीं लिए जा पा रहे हैं।
एसीबी और सीबीआई की ओर से पहले ही करीब एक दर्जन मामले दर्ज होने के बाद पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा के आरोपों की जांच भी शुरू हो गई है। मंगलवार को एसीबी ने पीडब्ल्यूडी में कथित घोटाले की जांच के लिए केस दर्ज कर लिया। जानकारों का कहना है कि जिन कंपनियों और लोगों पर अंगुली उठाई गई है, वे सड़क निर्माण, वॉटर पाइप लाइन और इंफ्रास्ट्रक्चर के दूसरे कामों से भी जुड़े हैं, ऐसे में इन सब कामों की प्रगति पर असर पड़ेगा।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास कोई विभाग नहीं है, लेकिन उन पर लगे गंभीर आरोपों से सकते में आई पार्टी और सरकार फिलहाल उसी में उलझकर रह गई है। मंगलवार को बुलाए गए विधानसभा सत्र में कई काम होने थे और इसी में एसजीएसटी बिल भी पास होना था, लेकिन अब कहा जा रहा है कि सरकार इनके लिए कुछ दिनों बाद अलग से सत्र बुलाएगी। फिलहाल केंद्र से सीधे टकराव के मूड में दिख रही सरकार अब किसी भी काम में सहयोग का संकेत नहीं देना चाहती। एमसीडी चुनाव में हार के बाद ऐसी खबरें आई थीं कि केजरीवाल सरकार ने लैंड पूलिंग पॉलिसी के लिए राजस्व विभाग की मंजूरी को हरी झंडी दिखा दी है, लेकिन अब इसके आसार नहीं दिख रहे। इसके अलावा एक्साइज पॉलिसी की फाइल भी कैबिनेट की मंजूरी का कई हफ्तों से इंतजार कर रही है।
जानकारों का कहना है कि लगभग सभी विभाग फिर राजभवन के दबाव में हैं और हर पॉलिसी पर उन्हें रिपोर्ट कर रहे हैं। इस बारे में डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने पिछले हफ्ते एक सर्कुलर भी जारी किया था, जिसका कोई असर नहीं हुआ है। एलजी ने हेल्थ, इंफ्रा, एजुकेशन सहित लगभग हर विभाग से जुड़ी बैठकें बुलानी शुरू कर दी हैं, जिससे नौकरशाही पर दोहरा दबाव बन गया है।
अगले हफ्ते नए नगर निगमों के गठन की प्रक्रिया शुरू होगी, लेकिन आगे दिल्ली सरकार और निगमों के बीच खींचतान पहले से बदतर होने के संकेत मिल रहे हैं। बीजेपी ने निगमों को केंद्र से सीधे वित्तीय सहयोग की मांग शुरू कर दी है और इस मामले में कोई भी पहल दिल्ली सरकार के लिए बड़ा झटका होगी।
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