Thursday, February 23, 2017

साथी का इंतजार, तनहाई में जीने को मजबूर चिड़ियाघर के जानवर

मुकेश बौड़ाई, नई दिल्ली
चिड़ियाघर में इन दिनों वाइट टाइगर, बंगाल टाइगर और हिमालयन भालू जैसे बड़े जानवरों को जोड़े में देखकर काफी अच्छा लगता है। वाइट टाइगर के बाड़े में अकसर टाइगर के बच्चे खेलते हुए नजर आते हैं, जो लोगों को वहां कुछ देर रुकने के लिए मजबूर करते हैं। लेकिन दिल्ली के चिड़ियाघर में कई जानवर ऐसे भी हैं, जो सालों से तनहा जिंदगी काट रहे हैं। ये अब भी इस इंतजार में हैं कि कब उन्हें साथी मिल पाएगा, या फिर उन्हें अकेलेपन के गम में ही दुनिया छोड़कर जाना पड़ेगा। ऐसा यहां के कुछ जानवरों के साथ हो भी चुका है। जो अपने साथी के इंतजार में दिन काटते रहे और अंत में उन्हें मौत को गले लगाना पड़ा।

एक्सचेंज प्रोग्राम
दिल्ली जू प्रशासन के मुताबिक देश के किसी भी जू में इनब्रीडिंग को रोकने के लिए और यहां मौजूद जानवरों की कमी से निपटने के लिए नियम बनाया गया है। इसके तहत हर प्रजाति के लिए एक कॉर्डिनेटिंग जू बनाया जाता है जो बाकी जू को वह जानवर देता है जो उसके पास सबसे ज्यादा संख्या में होता है। यह एक्सचेंज प्रोग्राम म्युचुअल इंट्रेस्ट पर किया जाता है। लेकिन अगर कॉर्डिनेटिंग जू इसे देने से इनकार कर देता है, तो उसके लिए फिर एक लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता है। अगर बात बन जाती है तो इसके लिए अप्रूवल सेंट्रल जू अथॉरिटी को देना होता है।

प्रशासन नहीं है सख्त
किसी भी चिड़ियाघर में जानवरों को लाने या फिर दूसरे चिड़ियाघर में भेजने के लिए कुछ नियम बनाए गए हैं। इन नियमों के तहत जरूरत पड़ने पर कोई भी जू दूसरे से जानवर देने की मांग कर सकता है। अगर दूसरा चिड़ियाघर नहीं मानता है, तो उसे एक्सचेंज के तहत जानवर देने को कहा जाता है। लेकिन दिल्ली जू में पिछले कई महीनों से यह एक्सचेंज प्रोग्राम ठंडे बस्ते में पड़ा है। ऐसे कई केस पेंडिंग हैं, जिनके तहत किसी जानवर को यहां लाया जाना था। इसके लिए जू प्रशासन, सेंट्रल जू अथॉरिटी से सवाल करने की बात कहता है। लेकिन इसके लिए प्राथमिक कदम जू के डायरेक्टर को ही उठाना होता है। जू से जुड़े लोगों का कहना है कि फोन पर ही ऐनिमल एक्सजेंच प्रोग्राम की बात होती है, दूसरे जू के इनकार करने के बाद उससे कुछ भी लिखित तौर पर नहीं मांगा जाता। इससे मामला कई महीनों तक ठंडे बस्ते में चला जाता है। सही मायने में इसे प्रशासन का सुस्त रवैया ही बताया जा रहा है।

अयोध्या की राह अब भी मुश्किल
बता दें कि पिछले एक साल से यहां एक मेल राइनो अयोध्या को लाने की बात कही जा रही है। अभी फिलहाल यहां पर दो फीमेल राइनो हैं जिनके साथ जोड़े और ब्रीडिंग के लिए अयोध्या को लाया जाना था। लेकिन पटना जू के साथ तालमेल नहीं बन पाया। तभी से इस पर लीपापोती की कोशिश हो रही है। जू प्रशासन से पूछे जाने पर जवाब मिलता है कि कागजी कार्रवाई जारी है।

ब्रीडिंग पर गहरा असर
इस एक्सचेंज प्रोग्राम पर ब्रेक लगने से सबसे ज्यादा असर जानवरों की ब्रीडिंग पर पड़ रहा है। जूलॉजिकल जानकारों का कहना है कि पार्टनर नहीं मिल पाने की वजह से कई जानवर काफी चिड़चिड़े भी हो जाते हैं। इसकी वजह से आपसी लड़ाई में कई बार ये जानवर एक-दूसरे को बुरी तरह घायल कर देते हैं। अगर सही टाइम तक उनकी ब्रीडिंग नहीं हो पाती, तो इससे उनकी क्षमता प्रभावित होती है।

मौत के करीब ले जाती तनहाई
अकेलापन धीरे-धीरे नासूर बन जाता है। जानवर भी इससे अछूते नहीं हैं। ये बिना पार्टनर के कुछ दिन तो काट लेते हैं, लेकिन एक समय ऐसा आता है जब यह हार मान जाते हैं। ऐसा ही कुछ ऑस्ट्रिच के साथ भी देखने को मिला। मेल ऑस्ट्रिच के मरने के बाद यहां बची फीमेल के साथ जोड़ा बनाने के लिए दिल्ली जू प्रशासन ने त्रिवेंद्रम जू से ऑस्ट्रिच लाने की बात कही थी। लेकिन इसकी कार्रवाई भी महीनों तक कागजों पर ही चलती रही। इसके कुछ महीनों बाद ही फीमेल ऑस्ट्रिच ने भी दम तोड़ दिया। अब जू में ऑस्ट्रिच का बाड़ा फिलहाल सूना है। पिछले तीन महीनों से इसके जोड़े को लाने की सिर्फ बातें सुनाई दे रही हैं। ठीक इसी तरह एक चिम्पैंजी भी बहुत अकेला महसूस कर रहा है। इसका पार्टनर ढूंढना चिड़ियाघर के लिए शायद मुमकिन नहीं था। इस चिम्पैंजी की अब उम्र भी ज्यादा हो चुकी है। अब तो यह खाना भी पूरा नहीं खा पाता।

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