Monday, February 20, 2017

संगीत सभाः छाप छोड़ गई तबले की थाप

अंकित ओझा, नई दिल्ली
ना धिन धिन ना के जादूगर कहे जाने वाले बनारस घराने के सिद्ध तबला वादक पंडित अनोखे लाल मिश्र की याद में शनिवार को हैबिटेट सेंटर में राष्ट्रीय संगीत उत्सव का आयोजन किया गया। नादऑरा संगीत संस्था द्वारा आयोजित कार्यक्रम में देश के नामी कलाकारों ने प्रस्तुतियां दीं। गुणी श्रोताओं के बीच कालाकारों की अद्भुत प्रस्तुति से समां बंध गई। शास्त्रीय संगीत की परंपरा को बचाने के लिए योगदान देने वाले कलाकारों और कला प्रेमियों के लिए आयोजित संगीत कार्यक्रम में श्रोताओं के रूप में भी कई कलाकार उपस्थित रहे।

गुरु शिष्या परंपरा के अंतरगत शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने के लिए संगीत की शिक्षा ले रहे युवा कलाकारों ने गुरु तर्पण की प्रस्तुति से कार्यक्रम की शुरुआत की। इसके बाद इंदोर घराने के गायक पंडित नरेश मल्होत्रा ने बसंत राग समेत कई रागों में गायन किया। पंडित मल्होत्रा के साथ हार्मोनियम पर उस्ताद जाकिर धौलपुरी और तानपुरे पर चंद्रपाल जी ने संगत की।

तबले के प्रतिष्ठित कलाकार की याद में आयोजित इस कार्यक्रम में पंडित विनोद पाठक जी का एकल तबला वादन हुआ। साथ में उनके सुपुत्र विविश पाठक ने भी कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। एक विलक्षण पेंटर के साथ प्रसिद्ध तबला वादक पंडित विनोद पाठक ने तीन ताल के टुकड़ों के साथ रेला, खंड, और कई स्वरचित बंदिशों से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। सारंगी पर पंडित घनश्याम सिसोदिया ने लहरा दिया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर प्रसिद्ध सितार वादिका प्रफेसर सुनीरा कासलीवाल उपस्थित रहीं। साथ ही बनारस घराने के लोकप्रिय तबला वादक पंडित राम कुमार मिश्र और अजराड़ा घराने के तबला वादक मंजू खां साहब ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई।

नादऑरा संस्था की तरफ से पंडित नरेश मल्होत्रा को नाद श्री और पंडित विनोद पाठक को नाद शिरोमणि के सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. कुमार ऋषितोष ने बताया, 'पिछले 11 वर्षों से नादऑरा के अंतरगत संगीत के कार्यक्रमों का लगातार आयोजन किया जाता है। इनमें कई नए कलाकारों को मौका मिलता है, वहीं देश के प्रतिष्ठित कलाकारों को सुनने का भी मौका मिलता है। संस्था का उद्देश्य शास्त्रीय संगीत को जन-जन तक पहुंचाना और नए कलाकारों को प्रोत्साहित करना है।'

बनारस घराने के तबला वादक पंडित छोटे लाल मिश्र के शिष्य डॉ. ऋषितोष तबले की गुरु शिष्य परंपरा को कायम रखते हुए युवाओं को शिक्षित करते हैं। उन्होंने बताया, 'भारतीय संस्कृति पर वर्तमान में कई तरह से वार किया जा रहा है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपनी समृद्ध संस्कृति की रक्षा करें और संगीत की परंपरा को न केवल जीवित रखें, बल्कि नई उचाइयों पर भी पहुंचाएं।'

मोबाइल ऐप डाउनलोड करें और रहें हर खबर से अपडेट।


Read more: संगीत सभाः छाप छोड़ गई तबले की थाप