Friday, February 24, 2017

विकासपुरी: फायरमैन के परिवार ने बताया दर्द

नई दिल्ली
गहरी नींद में सो गया है मेरा भाई। यह कहना था हरि सिंह मीणा और हरिओम के साथी फायरमैन का। विकासपुरी में हुए सिलिंडर ब्लास्ट में 2 फायरमैन की मौत हो गई। दोनों ही डिपार्टमेंट ऑफ फायर सर्विसेस के लीडिंग फायरमैन थे। हरि सिंह मीणा मूलरूप से अलवर के रहनेवाले थे और हरिओम दिल्ली के ककरौला गांव के रहनेवाले थे। दोनों 20 साल से डिपार्टमेंट से जुड़े हुए थे और न जाने कितनी ही हादसों में जान की बाजी लगाकर कई लोगों को बचा चुके थे।

हरि सिंह मीणा। दो बेटों और एक बेटी का पिता आज इस दुनिया में नहीं रहा। जिन्होंने अपनी 20 साल की सर्विस के दौरान सैकड़ों लोगों की जान बचाई आज वह अपनी जान नहीं बचा पाए। ब्लास्ट में मीणा की मौके पर ही मौत हो गई थी। उनका शव पोस्टमॉर्टम के लिए डीडीयू लाया गया। अपने सगे भाई की हालत को देखकर राम गोपाल रो पड़े। जिस भाई के साथ न सिर्फ घर पर मिला, बल्कि डिपार्टमेंट में भी साथ रहे आज वह मुझे अकेले छोड़कर चले गए। राम गोपाल भी फायर डिपार्टमेंट (रोहिणी) में तैनात हैं। मीणा मूलरूप से अलवर, राजस्थान के रहनेवाले थे। यहां श्याम विहार कॉलोनी, नजफगढ़ में अपने मकान में रहते थे।

राम गोपाल ने बताया कि यह जॉब ऐसी है कि हमें अपनी जान से खेलना पड़ता है। जिस दिन नहीं अच्छा नहीं खेलते, उस दिन आउट हो जाते हैं। इस खेल में दोबारा चांस किसी-किसी को ही मिलता है। उन्होंने बताया कि मीणा का नेचर काफी अच्छा था। अपने एक्सपीरियंस से उन्होंने कई अधिकारियों का दिल जीता था। राम गोपाल ने बताया कि हादसे के वक्त भी वह आगे ही खड़े थे। अपने भाई की मौत के पीछे उ‌न्होंने सुविधाओं की कमी को जिम्मेदार ठहराया है। राम ने बताया कि सिर्फ बूट और हेलमेट पहनकर हम लोग आग बुझाने निकलते हैं। उन्होंने कहा कि इस स्थिति को शायद ही कोई समझ पाए। खाकी ड्रेस, ऊपर हेलमेट, नीचे गम बूट्स और कुछ नहीं। ऐसे जान की परवाह किए बिना ही आग बुझानी पड़ती है।

परिवार में 3 भाइयों में से सबसे छोटे थे हरिओम। वह 20 बरसों से डिपार्टमेंट के साथ जुड़े हुए थे। हमेशा जान की बाजी लगाने वाले आज शहीद हो गए। दिल्ली के ककरौला के रहनेवाले हरिओम शादीशुदा थे। उनका एक बेटा (17) और एक बेटी (21) है। दोनों स्कूल में पढ़ते हैं। हरिओम के भाई बलजीत सिंह उनका शव लेने हॉस्पिटल पहुंचे थे। बलजीत भी फायर डिपार्टमेंट में सब ऑफिसर हैं। हॉस्पिटल के मॉर्च्युरी के बाहर आंखों में आंसू लिए बलजीत पहले बात भी नहीं कर पाए। संभलने पर उन्होंने कहा कि ऐसे ही हादसों में कई फायरमैन मारे जा चुके हैं, लेकिन हमारी सेफ्टी के बारे में कोई नहीं सोचता। हरिओम भी 24 घंटे की ड्यूटी पूरी कर घर जाने की तैयारी कर रहे थे। सुबह 10:30 बजे ड्यूटी ओवर होनी थी, लेकिन तड़के 5:30 बजे कॉल आई और यह हादसा हो गया। बलजीत के अनुसार, उनके साथियों ने बताया कि स्पॉट पर पहुंचते ही दोनों ने टीम को लीड किया। जैसे ही शटर खोला, धमाका हुआ और दोनों कई फुट दूर जाकर गिरे।

उन्होंने बताया कि हरिओम की सांसें चल रहीं थीं। जाते-जाते भी उन्होंने साहस नहीं छोड़ा लेकिन हॉस्पिटल पहुंचते-पहुंचते उनकी हिम्मत हार गई। बलजीत ने बताया कि हरिओम छोटे था इसलिए उनके प्रति सबका लगाव सबसे ज्यादा था। छुट्टी वाले दिन हम लोग साथ बैठते थे और कई ऐसे ही हादसों के बारे में चर्चा करते थे। लेकिन किसे पता था कि एक दिन वह भी ऐसे ही हादसे के शिकार हो जाएंगे। बलजीत ने बताया कि ओम कई बार मौत के मुंह से निकलकर आए थे। उन्होंने कहा कि हमारी जॉब को हर कोई हल्के में लेता है। लेकिन जितना रिस्क इसमें है शायद ही किसी और नौकरी में हो।

सुविधाओं की कमी से नाराजगी
हॉस्पिटल पहुंचे दोनों फायरमैन के साथियों ने कई सवाल खड़े किए। एक ने कहा कि हमारे डायरेक्टर कहते हैं कि ये लोग अपनी ड्यूटी के दौरान सिर्फ सोते ही तो हैं। क्या जरूरत है सुविधाओं की। उन्होंने कहा कि कई बार डिपार्टमेंट और दिल्ली सरकार के अधिकारियों से मिलकर जरूरी चीजों की लिस्ट दी जा चुकी है, लेकिन किसी ने भी आजतक हमारी नहीं सुनी। हम लोगों को हर पल सिर्फ इग्नोर किया जाता है। कहीं आग लगती है, बिल्डिंग गिरती है या कोई अन्य हादसा होता है...हम लोग लीड करते हैं। रिस्क अलाउंस के नाम पर महीने के सिर्फ "1000-1200 मिलते हैं।

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