Thursday, September 29, 2016

शहाबुद्दीन की बेल पर आज SC का फैसला

नई दिल्ली
कुख्यात अपराधी और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता शहाबुद्दीन को जेल भिजवाने की कोशिश में लगी बिहार सरकार सभी विकल्पों को आजमा रही है। गुरुवार को नीतीश सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा कि शहाबुद्दीन को जमानत पर बाहर रहने देना राज्य की जनता को आतंक के हवाले छोड़ देने जैसा है। अदालत शुक्रवार को अपना फैसला सुनाएगी। मालूम हो कि तेजाब कांड में मारे गए तीनों युवकों के पिता भी शहाबुद्दीन को जमानत दिए जाने के फैसले का विरोध कर रहे हैं। पीड़ित परिवार की ओर इस मामले की पैरवी प्रशांत भूषण कर रहे हैं।

अदालत ने कहा कि उसे शहाबुद्दीन की आजादी के अधिकार और प्रदेश सरकार द्वारा जाहिर की गई शंकाओं में संतुलन बनाना होगा। उधर शहाबुद्दीन की ओर से पेश हुए वकील शेखर नाफाडे ने प्रदेश सरकार पर इस केस से जुड़े ट्रायल को लटकाने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा संज्ञान लिए जाने के 17 महीने बाद भी शहाबुद्दीन को चार्जशीट की कॉपी नहीं दी गई है। इस मामले की सुनवाई के दौरान यह पहला मौका था जब नाफाडे ने यह मुद्दा अदालत में उठाया। इससे पहले पटना हाई कोर्ट में उन्होंने यह बात नहीं कही थी। उनकी इस दलील के बाद प्रदेश सरकार बैकफुट पर जाती हुई दिखी।

दोनों जजों की खंडपीठ ने बचाव पक्ष की ओर से लगाए गए इस आरोप को गंभीर माना। अदालत ने बिहार सरकार को इसपर अपना पक्ष रखने को कहा, लेकिन अभियोग पक्ष के वकील दिनेश द्विवेदी ने कहा कि वह केस से जुड़े रेकॉर्ड्स को देखने के बाद ही कुछ कह पाएंगे। बचाव पक्ष के आरोपों पर टिप्पणी करते हुए खंडपीठ ने कहा, 'यह एक बेहद गंभीर मामला है। डेढ़ साल बीत जाने पर भी चार्जशीट नहीं दी गई है। यह किस तरह का अभियोग पक्ष है? पिछले डेढ़ साल से ट्रायल कोर्ट लगातार कहता रहा कि पुलिस रेकॉर्ड्स मुहैया कराए जाएं।'

नाफाडे ने अदालत से यह भी कहा कि वह अदालत द्वारा रखी गई किसी भी शर्त को मानने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार और पीड़ित परिवार की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए शहाबुद्दीन बिहार से बाहर भी रहने को तैयार हैं। पीड़ित परिवार के वकील प्रशांत भूषण ने बचाव पक्ष द्वारा चार्जशीट की कॉपी नहीं दिए जाने की दलील का विरोध किया। उन्होंने कहा, 'इस मुद्दे को बहाना बनाया जा रहा है। यह बात पहली बार सुप्रीम कोर्ट में ही कही गई है, वह भी बिना किसी हलफनामे के। बचाव पक्ष की ओर से निचली अदालतों या फिर हाई कोर्ट में कभी भी इस बात का जिक्र नहीं किया गया।'

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