राष्ट्रीय हरित अधिकरण ने श्री श्री रविशंकर के संगठन आर्ट ऑफ लिविंग द्वारा यमुना पर रिपोर्ट देने वाले विशेषज्ञ पैनल पर सार्वजनिक बयान को सोमवार (5 सितंबर) को ‘बहुत गैर-जिम्मेदाराना’ बताया। पैनल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि आर्ट ऑफ लिविंग की ओर से यमुना के किनारे आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम ने नदी के डूब क्षेत्र को ‘पूरी तरह नष्ट’ कर दिया है। विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर जवाब देने के लिए आर्ट ऑफ लिविंग के वकील द्वारा और तीन सप्ताह का समय मांगे जाने पर पीठ ने यह टिप्पणी की। न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली अधिकरण की पीठ ने कहा, ‘आपके मुव्वकिल (आर्ट ऑफ लिविंग) ने जो टिप्पणी की है वह बहुत गैर-जिम्मेदाराना है।
मीडिया में आई खबरों में स्पष्ट कहा गया है कि आपके मुव्वकिल ने क्या कहा। आपके मुव्वकिल ने जो किया वह बहुत गैर-जिम्मेदाराना है।’ मीडिया को एक बयान जारी कर आर्ट ऑफ लिविंग ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण को सौंपी गई विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट को ‘पक्षपाती’ बताते हुए कहा था कि उसमें ‘कोई विश्लेषण नहीं है, गहराई से कोई जांच नहीं की गई है, निष्कर्ष के समर्थन में कोई वैज्ञानिक जांच रिपोर्ट नहीं है। रिपोर्ट का निष्कर्ष बिना वैज्ञानिक आधार के महज समिति के सदस्यों का विचार है। रिपोर्ट वास्तविक जमीनी सच्चाई नहीं बताती है।’
वहीं दूसरी ओर याचिका दायर करने वाले और पर्यावरणविद् मनोज कुमार मिश्र के वकील ने कहा कि आर्ट ऑफ लिविंग पहले ही इसपर अपनी धारणा बना चुका है क्योंकि उसने विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट आने के एक दिन बाद ही मीडिया में बयान जारी कर दिया है। मिश्र ‘यमुना जिये अभियान’ से जुड़े हैं। याचिका दायर करने वाले के वकील ने कहा, ‘अगले ही दिन उन्होंने अपनी धारणा बना ली। यदि उन्हें समय चाहिए, तो उन्होंने मीडिया में अपने विचार क्यों दिए।’ पीठ ने इस संबंध में आर्ट-ऑफ-लिविंग से कहा कि वह 12 सितंबर तक अपना जवाब दे दे। मामले की अगली सुनवाई 28 सितंबर को होनी है।
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