उच्चतम न्यायालय ने खुदकुशी करने वाले एमिटी लॉ स्कूल के छात्र सुशांत रोहिला द्वारा लिखे गए पत्र का स्वत: संज्ञान लेते हुए सोमवार (5 सितंबर) को कहा कि वह इसकी जांच करेगा कि क्या ऐसा कोई संदेह है कि यह घटना ‘प्रताड़ना’ की वजह से हुई। प्रधान न्यायाधीश टी एस ठाकुर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूण की पीठ ने वरिष्ठ वकील एवं न्यायविद एफ एस नरिमन को इस कथित खुदकुशी के मामले में सहयोग के लिए न्याय मित्र नियुक्त किया तथा उसने यह भी कहा कि वह कुछ दिशानिर्देश भी तय कर सकती है। पीठ ने कहा, ‘हम इसकी जांच करेंगे कि क्या ऐसे संदेह की कोई स्थिति है कि यह (आत्महत्या) प्रताड़ना की वजह से हुई।’ देश की सर्वोच्च अदालत ने एमिटी लॉ स्कूल को नोटिस जारी नहीं किया। यह संस्थान गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से संबंद्ध है।
जनहित याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए संस्थान की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा उपस्थित हुए। उच्चतम न्यायालय ने सुशांत के दोस्त राघव शर्मा की ओर से प्रधान न्यायाधीश को लिखे पत्र को जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार किया। इस पत्र में यह दावा किया गया कि 20 साल का सुशांत हाजिरी की कमी की वजह से परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दिए जाने की वजह लेकर मानसिक रूप से परेशान चल रहा था और फिर उसने यह कदम उठा लिया। वह अस्वस्थ होने की वजह से कुछ समय के लिए कॉलेज नहीं जा सका था। पत्र में सुशांत की खुदकुशी के लिए एमिटी के प्रबंधन को जिम्मेदार ठहराया गया है। सुशांत ने बीते 10 अगस्त को अपने आवास पर कथित तौर पर खुदकुशी कर ली थी।
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