हरियाणा के झज्झर की 19 साल की वर्षा चकारा इंजीनियर बनना चाहती थी। वह चाहती थी कि उसकी वजह से बस चालक उसके पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो। यह सपना इसलिए भी अहम था क्योंकि जिस इलाके से वर्षा है, वहां लड़कियों को पढ़ाने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता। पिता खुली सोच के थे और वर्षा की पढ़ाई को लेकर गंभीर भी, लेकिन इस सपने ने 10 मई 2015 को करमपुरा से बहादुरगढ़ रूट पर दम तोड़ दिया। वर्षा के पिता डीटीसी बस चालक की गलती सिर्फ इतनी थी कि क्रॉसिंग पर ब्रेक लगाने के दौरान एक युवक की बाइक को ठोकर मार दी।
42 साल के अशोक कुमार पर 22 साल के युवक ने हैलमेट से लगातार सैकड़ों वार किए। वह तब तक वार करता रहा, जब तक वो गिर नहीं गए। इसके बाद भी वो नहीं रुका। आवेग में ड्राइवर की सीट के नीचे रखी फायर एक्सटेंशन निकाल लाया और अशोक कुमार पर टूट पड़ा। इस युवक का हर वार वर्षा के इंजीनियर बनने के सपनों पर पड़ रहा था। घटना में पिता के चेहरे और पसलियों की हड्डियां ही नहीं टूटीं, उसके सपनों और परिवार की उम्मीदों ने भी सड़क पर दम तोड़ दिया। लोग तमाशबीन बने रहे, यात्री देखते रहे। आश्चर्यजनक यह था कि वह युवक अपनी मां के साथ जा रहा था। उसकी मां ने भी युवक को रोकने की कोशिश नहीं की।
अशोक कुमार की अस्पताल में मौत हो गई। वर्षा ने बताया कि अब वह बीकॉम की पढ़ाई कर रही है और इंजीनियर बनने का अब सपना टूट चुका है। वर्षा बताती हैं कि पिता की मौत के समय आप के विधायकों ने वादे तो खूब किए, लेकिन निभाया नहीं। सुखबीर दलाल और राखी बिड़लान ने पढ़ाई और शादी के लिए मदद की बात की थी लेकिन जरूरत पर कोई मदद नहीं की। पत्रकारों के सामने उन्होंने तस्वीरें खिंचवार्इं, लेकिन अब वो फोन भी नहीं उठाते। जो नंबर उन्होंने दिया था उस पर उनका पीए फोन उठा कर मना कर देता है। सरकारी मदद की आस में भाई ने बीटेक में दाखिला दिलाकर कुछ दिनों की फीस भी किसी तरह जमा कर दी। लेकिन पढ़ाई की फीस ज्यादा थी। पैसों के अभाव में पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। वर्षा ने कहा, ‘अगर पापा होते तो ऐसा नहीं होता’। वर्षा की दादी बोलीं, ‘वे भी दोषी हैं जो यह सब देख कर तमाशबीन बने रहे’।
अशोक कुमार के बेटे अजय कहते हैं कि पिता की मौत के बाद यूनियन के प्रयास से काफी मदद मिली। पिता की जगह नौकरी, मां को पेंशन, 10 लाख रुपए का मुआवजा और मां की इलाज का खर्च भी मिला। लेकिन काश ये पैसे मेरे पिता की कमी पूरी कर पाते। 22 साल के अजय के चेहरे पर उस जिम्मेदारी का भाव झलक रहा था जिसे वो निभाना चाहता है। अब उस पर मां राकेश चकारा, दादी किताबो, बहन वर्षा की जिम्मेदारी है। अजय कहते हैं, ‘जब पापा थे तो किसी बात की चिंता नहीं थी, मैं बच्चा था, लेकिन उनके गुजने के बाद अचानक मुझे बड़ा होना पड़ा’। उन्होंने बताया कि यूनियन के दबाव में सरकार की ओर से जो चीजें मिलनी थी, मिल गर्इं लेकिन अपराधी को सजा नहीं मिली। यहां तक की घटना के डेढ़ साल बाद तक कोर्ट में चार्जशीट भी ठीक से दाखिल नहीं हुई। सुनवाई की तारीख भी लगनी शुरू नहीं हुई।
अजय कहते हैं, ‘पुलिस का रवैया देख कर निराशा होती है’। मां राकेश चकारा बीच में ही टोकते हुए कहतीं हैं ‘मुआवजा देकर मरे को जिंदा नहीं किया जा सकता है, लेकिन सख्त सजा देकर भविष्य में ऐसी घटना अंजाम देने वालों के मन में डर पैदा कर उसे रोका जरूर जा सकता है। कानून दोषियों को बचाता है, न्याय कब मिलेगा पता नहीं।’ वर्षा कहतीं हैं कि आरोपी को दो महीने बाद जमानत दे दी गई थी। जमानत मिलने की सूचना ने उन्हें बिल्कुल डरा दिया था। वह युवक पास के ही गांव का है।
सिर्फ वादे ही किए
’अशोक कुमार की अस्पताल में मौत हो गई। वर्षा ने बताया कि अब वह बीकॉम की पढ़ाई कर रही है और इंजीनियर बनने का अब सपना टूट चुका है। वर्षा बताती हैं कि पिता की मौत के समय आप के विधायकों ने वादे तो खूब किए, लेकिन निभाया नहीं।
’सुखबीर दलाल और राखी बिड़लान ने पढ़ाई और शादी के लिए मदद की बात की थी लेकिन जरूरत पर कोई मदद नहीं की। पत्रकारों के सामने उन्होंने तस्वीरें खिंचवार्इं, लेकिन अब वो फोन भी नहीं उठाते।
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