दिल्ली की जनता डेंगू और चिकनगुनिया बुखार से कराह रही है और दिल्ली पर राज करने वाले नेता अपनी राजनीति में व्यस्त हैं। पिछले दो दशक से दिल्ली और एनसीआर में पहले डेंगू का आतंक था, कुछ सालों से चिकनगुनिया ने आफत मचा रखी है। सरकारी तंत्र के सक्रिय होने से लोग कम बीमार होते थे और बीमारी का आतंक कम होता था। यह पहला मौका है कि लोग अपने बूते बीमारी के लड़ने की जुगत में जुटे हुए हैं। भले ही डेंगू से मरने वालों का सरकारी आंकड़ा आठ है लेकिन वास्तविक संख्या काफी ज्यादा है। संयोग से इस बार डेंगू से ज्यादा आतंक चिकनगुनिया का है, जिसमें बीमार अस्थाई रूप से भले ही अपाहिज बन जाते हैं लेकिन जान जाने का खतरा नहीं होने का दावा किया जा रहा है। ये दोनों ही बुखार मच्छर के काटने से होते हैं और मच्छर साफ-सफाई न होने से बड़ी तेजी से पनप रहे हैं। राजनीति तो होती रहे, लेकिन उसकी कीमत लोग जान देकर चुका रहे हैं यह सबसे बड़ी विडंबना है।
बरसात शुरू होने से पहले मुद्दा नालों की सफाई बनना चाहिए था। तब तो दिल्ली सरकार के अधिकार का मुद्दा बन रहा और अब एक मंत्री के सेक्स सीडी कांड ने सारे मुद्दों को दरकिनार करा दिया है। आम आदमी पार्टी (आप) दिल्ली सरकार अपनी उपलब्धियों का बखान हर रोज मीडिया में विज्ञापन देकर करती है लेकिन महामारी बन चुकी इस डेंगू और चिकनगुनिया के बचाव के लिए अभियान चलाने को तैयार नहीं है। इससे भी बूरा हाल भाजपा शासित दिल्ली की तीनों नगर निगमों का है। भले चाहे जो दावे किए जाएं लेकिन साफ-सफाई तो निगमों का मूल काम है। नालों का सफाई भी दिल्ली सरकार के लोक निमार्ण विभाग (पीडब्लूडी) के साथ-साथ निगमों के ही जिम्मे है। समय रहते तो आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा और समय बीतने के बाद दूसरी राजनीति होने लगी है। आप ने तो जैसे तय ही कर लिया है कि वह दिल्ली के सही मुद्दों पर कोई काम करेगी ही नहीं केवल हवाई किले बनाएगी और हर मामले में केंद्र सरकार और उप राज्यपाल पर काम न करने देने का आरोप लगाएगी। सेक्स सीडी कांड ने आप को बेकफुट पर खड़ा कर दिया है अन्यथा पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल और उनके लोगों के पांव तो जमीन पर दिखते ही नहीं हैं।
1997 में पहली बार दिल्ली ने डेंगू को जाना और झेला। तब दिल्ली में भाजपा की सरकार थी। डा. हर्षवर्धन दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री थे। पूरी सरकार सक्रिय हो गई। हर रोज दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री की अगुवाई में दिल्ली के स्वास्थ्य से जुड़े विभागों की बैठक होने लगी। हर अस्पताल में अलग वार्ड बनाया गया।
दिल्ली सरकार के साथ-साथ नगर निगम, केंद्र सरकार, एनडीएमसी, छावनी बोर्ड के स्वास्थ्य विभाग की हर रोज समीक्षा होने लगी। बीमार लोग हुए लेकिन लोगों को लगा कि सरकार उनके साथ खड़ी है। तब के मुख्यमंत्री साहिब सिंह ही नहीं बाद में कांग्रेस सरकार की 15 साल तक मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित ने हर संभव प्रयास करके बीमारी को फैलने और कम नुकसान होने का प्रयास किया। कांग्रेस सरकार में लंबे समय स्वास्थ्य मंत्री रहे डा. अशोक कुमार वालिया ने सबसे ज्यादा समय तक इन बीमारियों का मुकाबला किया। उनका कहना था कि कभी भी यह लगा ही नहीं कि इस मुद्दे पर कौन-कौन से विभाग दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है।
केंद्र सरकार से लेकर नगर निगम, मलेरिया विभाग आदि के अधिकारी कर्मचारी पूरी ताकत से एक साथ होकर काम करते थे। डा. वालिया ने बताया कि बरसात शुरू होने से पहले ही नालों की सफाई से लेकर यमुना नदी से हरे सिल्ट हटाने का काम किया जाता था। इस स्तर पर तैयारी की जाती थी कि यह आसानी से पता चल जाता था कि डेंगू का मच्छर (एडिस) किस घर में पैदा हो रहा है। बड़े पैमाने पर मच्छर पैदा होने पर अधिकारियों को और घरवालों को जिम्मेदार ठहराया जाता था। उनसे जुमार्ना वसूला जाता था। पूरी तैयारी से चारों तरफ से इस पर धावा बोला जाता था। विभिन्न सरकारी अस्पतालों में रेड अलर्ट तो जारी कर ही दिए जाते थे निजी अस्पतालों में भी विशेष बिस्तर तैयार कराया जाता था और उसकी सूचना लगातार लोगों को दी जाती थी। बड़े पैमाने पर फ्री या कम कीमत पर जांच करवाने की व्यवस्था करवाई जाती थी। उनका कहना था कि इस बार जिस तरह का जलभराव पूरी दिल्ली में हुआ उससे पहले से ही बड़े स्तर पर डेंगू और चिकनगुनिया (दोनों बुखार एडिस मच्छर के ही काटने से होते हैं) होने का अंदेशा था। किसी स्तर पर सरकार की कोई तैयारी नहीं दिखी। पूरी दिल्ली में हाहाकार मचा हुआ है। लोग सरकारी और निजी अस्पतालों में भरे पड़े हैं। कोई उनकी सुध लेने वाला नहीं है। लोग भगवान भरोसे हैं। लगता ही नहीं कि दिल्ली में कोई सरकार है।
सरकारी स्तर पर कोई ठोस पहल नहीं होने से लोग खुद अपने सामर्थ से उपचार करवा रहे हैं। इसी के चलते सरकारी रिकार्ड में मरीजों की संख्या ज्यादा नहीं बढ़ रही है। संयोग से इस बार डेंगू से ज्यादा चिकनगुनिया का आतंक है, जिसमें लोगों को बुखार के साथ जोड़ों और पैर में असहनीय दर्द हो रहा है। इसमें जान जाने का खतरा नहीं है लेकिन मच्छरों को न पैदा होने देने और पैदा होने पर उसे छिड़काव करके मारने के लिए ठोेस पहल नहीं हो रहा है। दिल्ली में ठोस कार्रवाई होने का असर एनसीआर के राज्यों पर होता है। दिल्ली में सरकार चलाने वालों को अपनी राजनीति से फुरसत नहीं है। इसके चलते दिल्ली बेहाल है। लोग देश की राजधानी में भी भाग्य भरोसे रहने को मजबूर हैं।
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