दिल्ली की एक अदालत ने सात साल की बच्ची के यौन उत्पीड़न के मामले में युवक को पांच साल कैद की सजा सुनाई है। अदालत ने कहा कि युवक ने जिस तरह का अपराध किया है वह किसी भी तरह से रहम का हकदार नहीं है। अदालत ने महसूस किया कि किसी भी सभ्य समाज की बुनियाद बच्चों का कल्याण और उनकी भलाई की अवधारणा है और इससे पूरे समुदाय की भलाई और स्वास्थ्य की स्थिति पर सीधा असर पड़ता है। अदालत ने उत्तरी दिल्ली के 20 साल के युवक को भादंसं के तहत अपहरण और यौन अपराध से बच्चों की सुरक्षा (पोस्को) के तहत यौन उत्पीड़न का अपराधी मानते हुए जेल की सजा सुनाई।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश गौतम मनन ने कहा कि यह आसानी से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पीड़िता को एक सुनसान जगह पर ले जाकर कर अभियुक्त ने उसका यौन उत्पीड़न किया और इस तरह से आरोपी को अपराध के लिए दोषी है। उन्होंने कहा कि युवक के जरिए किए गए अपराध की प्रकृति किसी भी तरह से रहम का हकदार नहीं है। अदालत ने पीड़िता को दो लाख रुपए का मुआवजा देने का भी आदेश दिया। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, यह घटना नंवबर 2014 में उस समय हुई थी जब बच्ची अपने घर के बाहर खेल रही थी और उसके दूर के रिश्तेदार युवक साइकिल पर और उसे साथ चलने को कहा। इसमें बताया गया है कि बच्ची अपने चार साल के रिश्ते के भाई के साथ युवक की साइकिल पर बैठ गई। युवक उसे एक सुनसान जगह पर ले गया जहां पर उसने उसका यौन उत्पीड़न किया।
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