अभिषेक रावत, नई दिल्ली
दिल्ली पुलिस दावा करती है कि सड़क हादसे में घायल की मदद करने वाले को परेशान नहीं किया जाएगा, फिर चाहे वह आरोपी ही क्यों न हो। पुलिस की इस कथनी और करनी में फर्क एक चौंकाने वाले मामले से सामने आया है। दिल्ली के एक नामी अस्पताल के डॉक्टर ने आरोप लगाया कि उनकी कार से टकरा कर घायल हुए बाइक सवार की मदद करने के बावजूद पुलिस ने उन्हें रात भर कस्टडी में रखा, जबकि मामला जमानती था। आरोप है कि पुलिस कर्मी ने उगाही के लिए उन्हें जमानत नहीं दी। सुबह पुलिस कर्मी खुद उन्हें लेकर घर पहुंचा और 10 हजार रुपये रिश्वत लेकर पिंड छोड़ा।
इस शिकायत पर डीसीपी विजिलेंस आरके झा ने डीसीपी साउथ को हेडकांस्टेबल संजीव के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। शिकायतकर्ता डॉक्टर का नाम राजबीर सिंह चौहान है, जो वसंतकुंज में रहते हैं और रॉकलैंड अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट हैं। घटना 20 जून की है।
डॉ. चौहान के मुताबिक, वह अपनी फोर्ड फिएस्टा कार में अस्पताल से घर जा रहे थे। रात लगभग 8 बजे जब वह घिटोरनी चौक पर पहुंचे तो गलत दिशा से आ रही मोटर साइकिल उनकी कार से टकरा गई। बाइक पर सवार दो युवक गिर गए, उनमें से एक के पैर में फ्रैक्चर हो गया। वह घायल युवक को कार में बैठाकर फोर्टिस अस्पताल ले गए, जहां उसका प्राथमिक उपचार किया गया। उस समय अस्पताल में प्लास्टिक सर्जन मौजूद नहीं था, इसलिए घायल को सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया।
डॉक्टर चौहान ने एंबुलेंस का इंतजाम किया और मरीज को सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया। फोर्टिस अस्पताल का बिल डॉ चौहान ने ही चुकाया। इस दौरान अस्पताल से मामले की जानकारी पुलिस को दी गई थी। फतेहपुर बेरी थाने से पुलिस कर्मी वहां पहुंचे और डॉक्टर राजबीर चौहान को थाने ले गए। उनके खिलाफ लापरवाही से गाड़ी चलाने व दुर्घटना को अंजाम देने की धारा के तहत मामला दर्ज किया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। यह मामला जमानती था, इसलिए डॉक्टर चौहान ने अपने जीजा और भांजे को थाने बुला लिया ताकि उनकी जमानत हो जाए। डॉक्टर चौहान का आरोप है कि जांच अधिकारी हेड कॉन्स्टेबल संजीव ने उन्हें जमानत नहीं दी।
उन्होंने बार बार गुजारिश की कि उनकी कार को जब्त कर लिया जाए और उन्हें घर जाने दिया जाए, वह समाज में अच्छी प्रतिष्ठता रखते हैं। डॉ. चौहान का आरोप है कि हेड कॉन्स्टेबल संजीव ने उन्हें जमानत नहीं दी और रात भर थाने में बैठाए रखा। इस दौरान उन्हें धमकाया भी। इसके बाद 21 जून की सुबह उनकी जमानत तो ले ली, लेकिन सुबह 9 बजे तक थाने में बैठाए रखा। फिर उनके साथ उनके घर गया और उनसे 10 हजार रुपये रिश्वत के तौर पर वसूले।
पुलिस के इस रवैये से तंग आकर डॉ. राजबीर सिंह चौहान ने विजिलेंस ब्रांच में शिकायत की। ब्रांच के सूत्रों के मुताबिक, मामले की जांच करने पर हेड कॉन्स्टेबल संजीव पर लगाए गए आरोप सही पाए गए कि उसने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए डॉक्टर को जबरन बेल नहीं दी, जबकि उनका आचरण अच्छा था। उन्होंने एक अच्छे नागरिक होने का परिचय देते हुए घायल की मदद की और उसे कार से अस्पताल भी पहुंचाया। इतना ही नहीं, आईओ ने रोजनामचे पर बेल देने की डीडी एंट्री करने के बाद भी डॉ चौहान को कई घंटों तक थाने में रोके रखा।
दिल्ली पुलिस दावा करती है कि सड़क हादसे में घायल की मदद करने वाले को परेशान नहीं किया जाएगा, फिर चाहे वह आरोपी ही क्यों न हो। पुलिस की इस कथनी और करनी में फर्क एक चौंकाने वाले मामले से सामने आया है। दिल्ली के एक नामी अस्पताल के डॉक्टर ने आरोप लगाया कि उनकी कार से टकरा कर घायल हुए बाइक सवार की मदद करने के बावजूद पुलिस ने उन्हें रात भर कस्टडी में रखा, जबकि मामला जमानती था। आरोप है कि पुलिस कर्मी ने उगाही के लिए उन्हें जमानत नहीं दी। सुबह पुलिस कर्मी खुद उन्हें लेकर घर पहुंचा और 10 हजार रुपये रिश्वत लेकर पिंड छोड़ा।
इस शिकायत पर डीसीपी विजिलेंस आरके झा ने डीसीपी साउथ को हेडकांस्टेबल संजीव के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की है। शिकायतकर्ता डॉक्टर का नाम राजबीर सिंह चौहान है, जो वसंतकुंज में रहते हैं और रॉकलैंड अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट हैं। घटना 20 जून की है।
डॉ. चौहान के मुताबिक, वह अपनी फोर्ड फिएस्टा कार में अस्पताल से घर जा रहे थे। रात लगभग 8 बजे जब वह घिटोरनी चौक पर पहुंचे तो गलत दिशा से आ रही मोटर साइकिल उनकी कार से टकरा गई। बाइक पर सवार दो युवक गिर गए, उनमें से एक के पैर में फ्रैक्चर हो गया। वह घायल युवक को कार में बैठाकर फोर्टिस अस्पताल ले गए, जहां उसका प्राथमिक उपचार किया गया। उस समय अस्पताल में प्लास्टिक सर्जन मौजूद नहीं था, इसलिए घायल को सफदरजंग अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया।
डॉक्टर चौहान ने एंबुलेंस का इंतजाम किया और मरीज को सफदरजंग अस्पताल पहुंचाया गया। फोर्टिस अस्पताल का बिल डॉ चौहान ने ही चुकाया। इस दौरान अस्पताल से मामले की जानकारी पुलिस को दी गई थी। फतेहपुर बेरी थाने से पुलिस कर्मी वहां पहुंचे और डॉक्टर राजबीर चौहान को थाने ले गए। उनके खिलाफ लापरवाही से गाड़ी चलाने व दुर्घटना को अंजाम देने की धारा के तहत मामला दर्ज किया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। यह मामला जमानती था, इसलिए डॉक्टर चौहान ने अपने जीजा और भांजे को थाने बुला लिया ताकि उनकी जमानत हो जाए। डॉक्टर चौहान का आरोप है कि जांच अधिकारी हेड कॉन्स्टेबल संजीव ने उन्हें जमानत नहीं दी।
उन्होंने बार बार गुजारिश की कि उनकी कार को जब्त कर लिया जाए और उन्हें घर जाने दिया जाए, वह समाज में अच्छी प्रतिष्ठता रखते हैं। डॉ. चौहान का आरोप है कि हेड कॉन्स्टेबल संजीव ने उन्हें जमानत नहीं दी और रात भर थाने में बैठाए रखा। इस दौरान उन्हें धमकाया भी। इसके बाद 21 जून की सुबह उनकी जमानत तो ले ली, लेकिन सुबह 9 बजे तक थाने में बैठाए रखा। फिर उनके साथ उनके घर गया और उनसे 10 हजार रुपये रिश्वत के तौर पर वसूले।
पुलिस के इस रवैये से तंग आकर डॉ. राजबीर सिंह चौहान ने विजिलेंस ब्रांच में शिकायत की। ब्रांच के सूत्रों के मुताबिक, मामले की जांच करने पर हेड कॉन्स्टेबल संजीव पर लगाए गए आरोप सही पाए गए कि उसने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए डॉक्टर को जबरन बेल नहीं दी, जबकि उनका आचरण अच्छा था। उन्होंने एक अच्छे नागरिक होने का परिचय देते हुए घायल की मदद की और उसे कार से अस्पताल भी पहुंचाया। इतना ही नहीं, आईओ ने रोजनामचे पर बेल देने की डीडी एंट्री करने के बाद भी डॉ चौहान को कई घंटों तक थाने में रोके रखा।
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