Tuesday, August 30, 2016

E-commerce कंपनियों ने मांगी GST से छूट, लेकिन राजी नहीं हुए वित्त मंत्री

देश में तेजी से विस्तार कर रही ई-कामर्स कंपनियों ने उन्हें वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे से बाहर रखने की मांग उठाई है। हालांकि, राज्यों के वित्त मंत्री उनकी इस मांग को मानने के लिए तैयार नहीं दिखते। संसद द्वारा जीएसटी संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद हुई राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की पहली बैठक में आॅनलाइन खुदरा विक्रेताओं ने कहा कि वे माल विक्रेताओं और ग्राहकों को सिर्फ ‘प्लेटफार्म’ उपलब्ध करा रही हैं इसमें जो बिक्री होती है उससे वह पैसा नहीं बना रही हैं।

बैठक में पेश प्रस्तुतीकरण के अनुसार फ्लिपकार्ट, आमेजन इंडिया तथा स्नैपडील जैसी कंपनियां माल विक्रेताओं के लिए सिर्फ सेवा प्रदाता हैं और ऐसे में उनकी सिर्फ सेवा से होने वाली आय पर जीएसटी लगना चाहिए। समिति के चेयरमैन एवं पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने जब उनसे उनके अरबों डालर के मूल्यांकन के बारे में पूछा तो ई-रिटेलरों ने कहा कि उनकी आमदनी का स्रोत विज्ञापन है, जिस पर वे सेवा कर देतीं हैं। उनकी दलील थी कि पोर्टलों के जरिये सामान बेचने वाली कंपनियों पर जीएसटी लगना चाहिए। नास्कॉम ने अपने प्रस्तुतीकरण में कहा कि यह क्षेत्र रोजगार के काफी अवसर पैदा कर रहा है और छोटे उद्योगों को अपने उत्पाद बेचने का मौका दे रहा है।

मित्रा ने हालांकि चर्चा में कहा कि अभी तक जो निष्कर्ष निकला है, वह यह कि ई-कामर्स क्षेत्र लाखों डालर बना रहा है, लेकिन वास्तव में कोई कर नहीं दे रहा है। मित्रा ने कहा कि आॅनलाइन उत्पाद खरीदने वाले ग्राहक वैट देते हैं। उत्पादक उत्पाद शुल्क अदा करते हैं, लेकिन ये कंपनियां कोई कर नहीं दे रही हैं क्योंकि इनके कारोबार को केवल कंपनियों के माल को ग्राहक तक पहुंचाना माना जाता है। उन्होंने कहा कि उनका कारोबार 6-8 अरब डालर तक का है। ‘‘ई-कामर्स से प्र्रतिस्पर्धा आती है, लेकिन वे कुछ मूल्य भी जोड़ती हैं। अन्यथा कैसे आपकी कंपनियां इतना अधिक मूल्यांकन पा रही हैं।

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