Tuesday, August 2, 2016

जनसत्ता स्पेशलः डिफेंसिव खेल से बात नहीं बनेगी

ममता खरब
मौजूदा भारतीय महिला हॉकी टीम की चयन समिति की सदस्य होने के नाते इस बार ओलंपिक में हर खिलाड़ी के प्रदर्शन पर मेरी पैनी नजर है। खुशी है कि सभी खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं। अपने शानदार खेल के दम पर ही इस टीम ने दुनिया के सबसे बड़े आयोजन के लिए क्वालीफाई किया है। इस आयोजन में अच्छा प्रदर्शन करना काफी मायने रखता है क्योंकि सभी टीमें विश्व की चोटी की टीमों में से हैं। इस स्तर पर दुनिया की आला दर्जे की टीम के तौर पर खुद को साबित करने वाली टीम को ही ऐसे आयोजनों में जगह मिलती है। मुझे यकीन है कि हमारी टीम अपने हर मैच को गंभीरता से लेगी और मैच में अपना सर्वस्व झोंक देगी।

मेरे खयाल से हमारी टीम अपने पूल में जापान और अमेरिका को हराने का माद्दा रखती है। हमने ओलंपिक क्वालीफाइंग टूर्नामेंट सहित कई मौकों पर जापान को हराया है। इसके बावजूद मैं इस टीम को कमजोर नहीं आंकती। उनसे आक्रामक हॉकी से ही हम जीत सकते हैं। रक्षात्मक (डिफेंसिव) होकर खेलने से बात नहीं बनेगी। यह बात सभी मैचों पर लागू होती है। अमेरिकी टीम भी अब पहले जैसी नहीं रह गई है। अपने पूल की अन्य टीम ब्रिटेन के खिलाफ हमें अटैकिंग हॉकी के साथ-साथ गलतियों से भी बचना होगा। हॉकी में गलतियों से ही गोल होता है। ब्रिटेन की टीम आम तौर पर ऐसे मौके नहीं चूकती। बाकी पूल में आॅस्ट्रेलिया और अर्जेंटीना काफी मजबूत टीमें हैं। आॅस्ट्रेलिया रैंकिंग में भी अच्छी टीम है और मैदान में भी अपने दमखम के लिए जानी जाती है। यह टीम कभी विश्व हॉकी की सिरमौर हुआ करती थी।

आज हॉलैंड की टीम उससे काफी ऊपर निकल गई है। यह टीम एक निश्चित योजना के साथ खेलती है और गलतियां बहुत कम करती है। बाकी अर्जेंटीनी टीम आॅस्ट्रेलिया की ही तरह मजबूत है। इनके पास काफी अच्छा अटैक है। मैदान पर इनकी रणनीति काफी संतुलित होती है। उसके मिडफील्डर अग्रिम पंक्ति को मदद करने के साथ-साथ उसके साथ मिलकर अटैक करते हैं।

इस सबके बावजूद मैं कहूंगी कि हमारी फॉरवर्ड लाइन भी किसी से कम नहीं है। पूनम रानी, वंदना और रानी रामपाल ताबड़तोड़ आक्रमण करने में माहिर हैं। प्रीति दुबे और अनुराधा भी आगे खेलने में सक्षम हैं। रानी रामपाल को अटैकिंग मिडफील्डर भी खिलाया जा सकता है। नवजोत कौर और रेणुका यादव मिडफील्ड में रानी के साथ काफी उपयोगी साबित हो सकती हैं। अगर हमारे फॉरवर्ड आक्रमण करने के साथ-साथ पेनाल्टी कॉर्नर बनाने में कामयाब होते हैं तो यह टीम का प्लस पाइंट होगा। डिफेंस में खुद कप्तान सुशीला चानू और गोलकीपिंग में सविता रानी भी अब अच्छा खासा अनुभव पा चुकी हैं। हमें ओलंपिक में 36 साल बाद मौका मिला है, इसलिए डिफेंस का मजबूत होना बहुत जरूरी है। हमारे कोच भी इसी बात पर जोर देते आए हैं। टीम के जूनियर खिलाड़ियों ने भी अब सीनियर खिलाड़ियों के साथ तालमेल बनाना सीख लिया है। बाकी पेनाल्टी कॉर्नर पर गोल करने में थोड़ा सुधार जरूर हुआ है, लेकिन ओलंपिक जैसे बड़े आयोजन को देखते हुए इसमें सुधार की अभी काफी गुंजाइश है। अब तक हमारे कोचों ने विभिन्न टीमों की ताकत का जायजा ले लिया होगा। उनके खिलाफ टीम को कैसी रणनीति बनानी है, यह काफी मायने रखता है।

इन खेलों में अकसर देखा गया है कि जो टीम मैच वाले दिन अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करती है और कम से कम गलतियां करती है, जीत उसी की होती है। ऐसी स्थिति में कई बार पहले की सारी तैयारी धरी की धरी रह जाती है। हमारे कोच नील हागुड तीन फॉरवर्ड के साथ इतने ही मिडफील्डर खिलाने में विश्वास रखते हैं। ऐसी स्थिति में मिडफील्ड का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। मुझे भरोसा है कि हमारी मिडफील्डर अटैक के समय आगे जाएंगी और जरूरत पड़ने पर पीछे हटकर टीम के किसी भी संभावित हमले को विफल करेंगी। सारा खेल फिटनेस और दमखम का खेल है। हमारी खिलाड़ी इन दोनों मोर्चों पर किसी से कम नहीं हैं।
(जैसा कि उन्होंने मनोज जोशी को बताया)

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