Thursday, August 4, 2016

अब कैसे बढ़ेगी आप विधायकों की 400% सैलरी?

नई दिल्ली
दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार और केंद्र के बीच एक और टकराव की स्थिति बन रही है। गृह मंत्रालय ने उस विधेयक पर स्पष्टीकरण मांगा है जिसमें दिल्ली के विधायकों और मंत्रियों की बेसिक सैलरी 400 फीसदी बढ़ाने के साथ ही भत्तों में भी भारी बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव है।

बताते चलें कि गुरुवार को ही दिल्ली हाई कोर्ट ने आम आदमी पार्टी (आप) सरकार को झटका देते हुए एक फैसले में कहा कि राजधानी में उप राज्यपाल ही प्रशासनिक प्रमुख हैं, मुख्यमंत्री नहीं। हालांकि आम आदमी पार्टी ने हाइकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।

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गृह मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि द मेंबर ऑफ लेजिस्लेटिव असेंबली ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली (सैलरीज, अलाउंसेज, पेंशन) अमेंडमेंट बिल, 2015 को उप राज्यपाल के कार्यालय के जरिए वापस दिल्ली सरकार के पास भेजा गया है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने ईटी से कहा, 'हमने कुछ प्रश्न उठाए हैं। अन्य केंद्रीय विभागों के साथ हमारी चर्चा के दौरान बिल में दिए गए आंकड़ों तक पहुंचने के लिए कैलकुलेशन को लेकर स्पष्टीकरण मांगा गया था। यह स्पष्ट नहीं है कि विधायक और स्पीकरकी सैलरी कैलकुलेट करने के लिए कौन सा तरीका इस्तेमाल किया गया है।'

बिल के अनुसार, विधायकों की बेसिक सैलरी मौजूदा 12,000 रुपये से बढ़ाकर 50,000 रुपये और उनका कुल मंथली पैकेज मौजूदा 88,000 रुपये से बढ़ाकर 2.1 लाख रुपये किया जाएगा। इससे वे देश में सबसे अधिक सैलरी पाने वाले विधायक बन जाएंगे। होम मिनिस्ट्री ने बताया है कि दिल्ली सरकार के 10 अन्य बिलों पर विचार-विमर्श किया जा रहा है।

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इस साल मई में केंद्र ने दिल्ली विधानसभा की ओर से पारित किए गए 14 बिल लौटा दिए थे। केंद्र का कहना था कि इनके लिए सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। दिल्ली हाई कोर्ट के गुरुवार के फैसले पर गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि उनका पक्ष सही साबित हुआ है।

एक अधिकारी का कहना था, 'उप राज्यपाल की एग्जिक्यूटिव पावर राज्यपाल से काफी अलग है। कोई अन्य अथॉरिटी, फंक्शनरी या व्यक्ति किसी भी कानून के तहत उन एग्जिक्यूटिव पावर को रखने का दावा नहीं कर सकता जो केवल उप राज्यपाल के पास हैं।'

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होम मिनिस्ट्री ने पिछले वर्ष अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल एक शपथपत्र में दिल्ली सरकार की दलीलों का विरोध करते हुए कहा था, 'कानून में यह दलील नहीं टिक सकती कि उप राज्यपाल को अंधेरे में रखा जा सकता है, या उनके नाम पर उठाए जाने वाले एग्जिक्यूटिव कदम के लिए उनकी सहमति/स्वीकृति की आवश्यकता नहीं है, चाहे एक नोटिफिकेशन जारी करना हो या कोई अन्य एग्जिक्यूटिव कार्य।'

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