दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सबसे खास अधिकारी राजेंद्र कुमार की गिरफ्तारी के साथ सीबीआइ यह भी साबित करने में लगी है कि उनका भ्रष्टाचार इस सरकार में भी जारी था। इसी कारण केजरीवाल और उनके लोगों की भाषा बदलने लगी है। अब तक यही कहा जा रहा था कि सालों पुराने मामले पर अभी कार्रवाई केवल केजरीवाल को परेशान करने के लिए की जा रही है। 1989 बैच के आइएएस अधिकारी राजेंद्र कुमार पर सीबीआइ के आरोप कितने दमदार हैं यह तो आगे अदालतों के फैसले से पता चलेगा, लेकिन यह तो तय सा हो गया कि राजेंद्र कुमार आसानी से सत्ता की मुख्य धारा में नहीं लौट पाएंगे। वे कांग्रेस सरकार में शीला दीक्षित के भी करीबी थे, इस सरकार में उनकी भूमिका एक अधिकारी से बढ़कर थी। वे अघोषित सुपर मुख्य सचिव बना दिए गए थे।
दिल्ली की केजरीवाल सरकार उनसे जिस तरह से ईमानदार अफसरों को प्रताड़ित करवा रही थी, उससे पूरी नौकरशाही ही केजरीवाल-सिसोदिया से ज्यादा राजेंद्र कुमार की विरोधी बन गई थी। वैसे दिल्ली के विधान के बारे में आम आदमी पार्टी(आप) के नेता भी जानते हैं लेकिन राजेन्द्र कुमार को तो किसी अन्य आला अफसर की तरह जानकारी होगी।
विधान के तहत दिल्ली केंद्रशासित प्रदेश है और इस नाते उसका शासक राष्ट्रपति होता है। वह अपना शासन उप राज्यपाल के माध्यम से उसी तरह चलाता है जैसे देश के अन्य छह केंद्र शासित प्रदेशों में। उपराज्यपाल ही केंद्र सरकार की ओर से अफसरों की सालाना गोपनीय रिपोर्ट लिखता है। उपराज्यपाल से मिल कर ही पहले भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने और 15 साल शीला दीक्षित ने दिल्ली की सरकार चलाई।
यह मान भी लिया जाए कि राजेंद्र कुमार की सलाह के बावजूद केजरीवाल वहीं करते थे जो वे करना चाहते थे तो वे दिल्ली के अन्य अफसरों की तरह कहीं न कहीं तो अपना एतराज जताते। केजरीवाल ने केके शर्मा को दिल्ली का मुख्य सचिव बनवाया। शर्मा ने केजरीवाल सरकार के मना करने पर भी फाइल उपराज्यपाल के दफ्तर भेजी। उससे नाराज होकर केजरीवाल ने फाइलें मुख्य सचिव के बिना सीधे भेजनी शुरू कर दी। उपराज्यपाल के आदेश की अवहेलना न करने के कारण ही केजरीवाल सरकार ने दो अधिकारियों के वेतन रोके, उन्हें निलंबित किया जिसे गृह मंत्रालय ने न माना। आज उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया आरोप लगा रहे हैं कि बिना मुख्य सचिव की जानकारी में उप राज्यपाल फैसले कर रहे हैं और परंपरा तोड़कर अधिकारियों की नियुक्ति और तबादलों के लिए बनी गृह मंत्रालय की कमेटी में मुख्य सचिव के खुद जाने की पेशकश करते समय या राजेंद्र कुमार से मुख्य सचिव जैसे आदेश करवाने के समय उन्हें इसकी याद नहीं आई।
आप की पिछली सरकार तो अल्पमत की थी और तय था कि उसे थोड़े दिन में ही जाना है। तब तो इस तरह के आरोपों का कोई मतलब होता था। एस बार तो प्रचंड बहुमत से सरकार बनी। महज सात दिन के लिए मुख्य सचिव का प्रभार देने या कोई पत्र नियमानुसार राजनिवास भेजने जैसे मुद्दे ने तो ही वरिष्ठ अधिकारी शकुंतला गैमलिन या बेहद ईमानदार अधिकारी अरर्निदों मजूमदार को सरेआम बेइज्जत करने से सरकार का क्या मकसद हल हुआ। इसी का परिणाम हुआ कि जिस परिमल राय को खास मान कर केजरीवाल अहम जिम्मेदारी दे रहे थे, उन्होंने तभी काम शुरू किया जब राजनिवास से उसकी मंजूरी मिली। दिल्ली में पहले भी तय संख्या से ज्यादा अधिकारी रहते हैं और अभी भी हैं। कायदे से दिल्ली में विवाद तो इस बात का होता है कि जिन पदों पर आइएएस हैं उन्हें आइएएस पद और जिन पर दानिक्स हैं उसे उनके लिए तय करने से उसका एक निश्चित हिस्सा नीचे के कैडर के अधिकारियों को मिलने लगेगा।
राजेंद्र कुमार से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की निकटता काफी है। संभव है उनके खिलाफ कारवाई का एक कारण यह भी हो। लेकिन जो आरोप उनपर लगे हैं, वे बेहद गंभीर हैं। शिक्षा निदेशक रहते हुए अपने लोगों के साथ मिलकर एंडेवर सिस्टम प्राइवेट लिमिटेड नाम से कंपनी बनाकर उसे पहले शिक्षा विभाग के काम दिलवाना और फिर जिन-जिन विभागों में वे गए वहां का आइटी का काम बिना विधिवत टेंडर के उन्हें दिलवाया गया। मामला केवल 2002 से 2007 के बीच का नहीं है। सीबीआइ की ओर से कहा गया है कि आप के शासन में भी उस कंपनी को उसी तरह से काम दिए गए।
15 दिसंबर को मुख्यमंत्री दफ्तर पर सीबीआइ के छापे के बाद उन्होंने अदालतों से राहत पाने की कोशिश की। लेकिन अदालतों ने भी सिरे से सीबीआइ के आरोपों को बिना पड़ताल किए खारिज नहीं किया। उनके कंप्यूटर,आईपैड या निजी फाइलें नहीं लौटाए। अब तो उसी आधार पर ही चार जुलाई को उन्हें गिरफ्तार किया और पांच दिन की रिमांड ले ली।
सेवा नियमों के तहत 24 घंटे से ज्यादा की गिरफ्तारी में अधिकारी निलंबित हो जाता है। अगर पाक-साफ साबित होंगे तो केंद्रीय गृह मंत्रालय उन्हें वापस पद पर ला सकता है। जो हालात बन गए हैं उसमें यह आसानी से होता नहीं दिख रहा है। इतना ही नहीं उनके साथ जिन चार लोगों की गिरफ्तारी हुई है, उसमें मुख्यमंत्री दफ्तर के उप सचिव तरुण शर्मा भी हैं। इनके अलावा कई और अधिकारी घोषित तौर पर केजरीवाल समर्थक माने जा रहे हैं। इस सरकार के जाते ही वे भी राजेंद्र कुमार जैसे दरकिनार कर दिए जाएंगे। जो सिर झुका कर काम कर रहे हैं वे भी उस दिन बदला लेने लगेंगे जिस दिन वे ताकतवर बनेंगे। आप सरकार ने अफसरों के बीच जो विभाजन रेखा खड़ी की है उसके बड़े शिकार त ो कुमार बने हैं, कई और आगे बनने वाले हैं।
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