हाउज दैट…ये मारा छक्का, अरे नो बॉल है….। यह हल्ला फिरोजशाह कोटला या इंदिरा गांधी स्टेडियम में नहीं बल्कि आसफ अली रोड की एक गली में मच रहा है। दिल्ली की कई गलियों में ऐसा नजारा आम है। र्इंटों को जोड़ कर विकेट बनाया तो क्या, बल्लेबाज की धुन धोनी से कम नहीं। और यहां कोई माही (एमएस धोनी) के नाम से पुकारा जाता है तो किसी को कोहली की उपाधि मिली हुई है।
राजधानी दिल्ली में क्रिकेट की दीवानगी का आलम कुछ ऐसा है कि खुद के लिए समय मिले न मिले पर इस खेल के लिए लोग थोड़ा वक्त निकाल ही लेते हैं। रविवार को छुट्टी के दिन शहर के ज्यादातर इलाकों में सड़क या मुहल्ले की गलियों में र्इंट या किसी भी सामान को रखकर विकेट बना लिया जाता है और शुरू हो जाता है गली क्रिकेट।
आसफ अली रोड निवासी पंकज कुमार स्नैपडील में काम करते हैं। वे बताते हैं कि शहर में खुले मैदानों की कमी है, लेकिन खेल उनका जुनून है। पूरा हफ्ता पैसे कमाने की मजबूरी में बीत जाता है। इसलिए वे रविवार को मुहल्ले में ही क्रिकेट खेल लेते हैं। उनकी टीम के कप्तान बिट्टू हैं और उनकी गाड़ियों के स्पेयर पार्ट की दुकान है। बिट्टू का कहना है कि दुकान के काम और कारोबार से वक्त नहीं मिल पाता और आम दिनों में सड़कें भी व्यस्त रहती हैं। ऐसे में रविवार को मार्केट बंद रहने का फायदा क्रिकेट खेल कर उठा लिया जाता है।
आलमबाग टीम के भूपिंदर सिंह मार्केटिंग का काम करते हैं, लेकिन खेलने के लिए वक्त जरूर निकालते हैं। दिल्ली में ऐसे मैदानों की काफी कमी है जहां क्रिकेट खेला जा सके। कुछ इलाकों के मैदानों पर खूबसूरत पार्क बने हैं, जहां खेलने की मनाही है। आसफ अली रोड दिल्ली 6 की टीम के साथ मैच खेलने आए रजत का कहना है कि वो इसी तरह सड़क पर विकेट बनाकर खेल शुरू कर देते हैं। कई बार गलियों में इस तरह क्रिकेट खेलने पर वाहनों के गुजरने से परेशानी भी होती है, लेकिन राहगीरों को कोई दिक्कत न हो इसलिए खेल रोक कर उन्हें जाने की जगह दे दी जाती है।
सीताराम बाजार टीम के कप्तान राहुल बताते हैं कि अब लोगों को भी पता है कि यहां संडे को मैच होता है। लिहाजा वे इस तरफ से गुजरने से परहेज करते हैं, लेकिन कई बार लोगों को जानकारी नहीं होने की वजह से वे अपना अस्थाई विकेट हटा लेते हैं। राहगीरों के गुजरने के बाद खेल फिर से शुरू हो जाता है। राहुल ने बताया कि अब वे इस तरह खेलने के अभ्यस्त हो चुके हैं। उन्हें तो बस मतलब है खेल से। इसी टीम के सदस्य सनी डीडीसीए की ओर से भी मैच खेल चुके हैं। उन्होंने बताया कि मोहल्ला या गली क्रिकेट का अपना मजा है। यहां खेल के नियम भी अलग होते हैं। मसलन किसी के घर में बॉल गई तो खिलाड़ी आउट, रन लेने के दौरान विकेट के सामने कोई गाड़ी या राहगीर आ गया तो भी आउट और कैच के वक्त अगर कोई बीच में आया तो हाथ से बॉल छूटने पर भी कैच मान्य होगा।
इसी तरह का गली क्रिकेट करोल बाग में भी खेला जाता है। यहां सोमवार को बाजार बंद होता है और काम करने वाले लोग ही बैट और बॉल लेकर तैयार हो जाते हैं। संदीप कोलय की यहां सोने-चांदी की दुकान है। उन्होंने बताया कि उनके कारीगर भी उनके साथ क्रिकेट का मजा लेते हैं। दूसरे शहरों से दिल्ली में काम करने आए लोग परिवार से दूर रहते हैं। छोटी-मोटी नौकरी करते हैं। इनके पास बहुत ज्यादा पैसे भी नहीं होते कि मन बहलाने के लिए पैसे खर्च कर सकें, लेकिन क्रिकेट का खेल सबसे सस्ता और सुविधाजनक है। कोई बैट लाता है तो कोई बॉल ले आता है। खाली सड़कों पर र्इंट रखकर विकेट बना ली जाती है और शुरू हो जाता है एक रोमांचक मैच। वहीं सड़कों पर खड़े वाहन खेल का मजा लेने वालों के लिए बैठने की जगह बन जाती है।
(सुमन केशव सिंह)
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