Wednesday, June 29, 2016

तीन बार तलाक के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मुसलिम पर्सनल लॉ को संवैधानिक ढांचे की कसौटी पर परखा जाए

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि मुसलिम समुदाय में तीन बार तलाक बोल कर वैवाहिक संबंध तोड़ना एक बहुत महत्त्वपूर्ण विषय है जो लोगों के एक बड़े तबके को प्रभावित करता है। इसे संवैधानिक ढांचे की कसौटी पर कसे जाने की जरूरत है। अदालत ने ‘पर्सनल लॉ’ के मुद्दे की जांच करने पर सहमति जताते हुए यह कहा। शीर्ष अदालत के जजों ने कहा- हम सीधे ही किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे क्योंकि दोनों ओर बहुत मजबूत विचार हैं। यह इस बात पर गौर करेगी कि मुद्दे का निबटारा करते वक्त पिछले फैसलों में क्या कोई गलती हुई है और इस बारे में फैसला करेगी कि क्या इसे और बड़ी या पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा जा सकता है। प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की सदस्यता वाली एक पीठ ने कहा-हम सीधे ही किसी निष्कर्ष पर नहीं जा रहे हैं। यह देखना होगा कि क्या संविधान पीठ द्वारा कानून पर कोई विचार किए जाने की जरूरत है।

उन्होंने इसमें शामिल पक्षों से ‘तीन बार तलाक बोले जाने’ (ट्रिपल तलाक) पर फैसलों की न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश पर एक बहस के लिए तैयार होने को कहा। पीठ ने कहा कि पर्सनल लॉ को संवैधानिक ढांचे की कसौटी पर परखना होगा। इसने इस बात पर जोर दिया कि लोगों के एक बड़े तबके को प्रभावित करने वाला यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और दोनों ओर से बहुत ही मजबूत विचार हैं। बहरहाल पीठ ने मामले की अगली सुनवाई छह सितंबर के लिए मुल्तवी करते हुए कहा कि फैसले के लिए कानूनी पहलुओं पर विचार करना होगा।

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने बंबई हाई कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया। इसमें कहा गया था कि पसर्नल लॉ व्यवस्था को मूल अधिकारों से नहीं जोड़ा जा सकता। पीठ ने कहा-सभी लोग अपने विचार जाहिर कर सकते हैं और बहस में हिस्सा ले सकते हैं। हम जान पाएंगे कि सभी पक्षों का क्या रुख है। बुधवार की सुनवाई में तीन बार तलाक बोले जाने के विषय पर कुल चार याचिकाओं के जरिए सवाल उठाए गए। जिस पर पीठ ने उनमें से सभी को पक्षकार बनने की इजाजत दे दी और इस मुद्दे पर छह हफ्ते में केंद्र का रुख पूछा गया है।

फराह फैज नाम की एक महिला वकील ने आॅल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) और अन्य पर टीवी परिचर्चाओं सहित सार्वजनिक मंचों पर अपने विचार प्रसारित करने पर रोक लगाने की मांग की थी। इस पर सभी पक्षों के अपने विचार प्रकट कर सकने संबंधी टिप्पणी आई है। पीठ ने कहा-हम टीवी कार्यक्रमों से प्रभावित नहीं होंगे। आप भी टीवी कार्यक्रमों में भाग ले सकते हैं। हम आपकी अर्जी को लंबित रखेंगे। यदि किसी स्तर पर हम पाएंगे कि वे हाथ से बाहर निकल रहे हैं तो हम हस्तक्षेप करेंगे।

वहीं बोर्ड की ओर से पेश वकील ने तीन बार तलाक बोले जाने के रिवाज का बचाव किया और कहा कि अदालतों ने यह कहा है कि पसर्नल लॉ के विषयों को संवैधानिक रूप से नहीं जांचा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने बहुविवाह प्रथा, तीन बार तलाक बोल कर वैवाहिक संबंध तोड़ना (तलाक ए बिद्दत) और ‘निकाह हलाला’ की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका पर इससे पहले केंद्र का जवाब मांगा था।

अदालत ने 28 मार्च को केंद्र से अपने समक्ष उस समिति की रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था जिसका गठन मुसलमान सहित विभिन्न धार्मिक अल्पसंख्यकों में मौजूद शादी, तलाक और देखभाल से जुड़े पर्सनल लॉ के पहलुओं पर गौर करने के लिए किया गया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ ने इस सवाल पर स्वत: संज्ञान लिया था कि क्या मुसलिम महिलाएं तलाक या अपने पति की अन्य शादियों के मामले में लैंगिक भेदभाव का सामना करती हैं। साथ ही प्रधान न्यायाधीश से मुद्दे की जांच के लिए एक पीठ गठित करने अनुरोध किया था। इसके बाद मुसलिम समुदाय के ‘ट्रिपल तलाक’ के सदियों पुराने रिवाज को चुनौती देने वाली कई अन्य याचिकाएं दायर की गई।


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