बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी विरोधी दल भाजपा को आरक्षण के मुद्दे पर घेरने की रणनीति बना रहे हैं। एक तरफ भाजपा के नेता सपा को कमजोर करने के लिए पिछड़ों और दलितों के आरक्षण को विभिन्न श्रेणियों में बांटने की बात कह कर अति पिछड़ी और अति दलित जातियों में अपनी पैठ बढ़ाने की जुगत भिड़ा रहे हैं तो दूसरी तरफ सपा और बसपा के नेता पलटवार कर भाजपा को इस मुद्दे पर बिहार की तरह बैक फुट पर धकेलने के चक्कर में हैं। इस बीच आरक्षण के सवाल पर 30 जून को सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाओं पर सुनवाई की संभावना के मद्देनजर मुद्दा और गरमा गया है।
भाजपा की मुश्किल जाट भी बढ़ा रहे हैं। हरियाणा में मनोहर लाल सरकार ने सूबे के जाटों के लिए आरक्षण का जो प्रावधान पिछले दिनों किया, उस पर फिलहाल चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। इससे जाट आरक्षण का आंदोलन फिर तूल पकड़ रहा है। भाजपा के जाट नेताओं को पिछले साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भरोसा दिया था कि उनकी सरकार देशभर के जाटों को पिछड़े तबके के आरक्षण का लाभ देने के लिए कोई रास्ता निकालेगी। सुप्रीम कोर्ट से जाटों के लिए मनमोहन सरकार द्वारा 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद दिए गए आरक्षण को रद्द कर दिए जाने के बाद ये नेता प्रधानमंत्री से मिले थे। उन्हें याद दिलाया था कि चुनाव में उनकी बंपर जीत के पीछे जाटों का समर्थन भी बड़ी वजह था।
जहां तक पिछड़ों और दलितों के आरक्षण को दो-दो श्रेणियों पिछड़े व अति पिछड़े और दलित व अति दलित में बांटने के गृह मंत्री राजनाथ सिंह के बयान का सवाल है, भाजपा ऐसा मुलायम और मायावती को कमजोर बनाने की गरज से करने की हामी रही है। उसे लगता है कि पिछड़े तबके के 27 फीसद आरक्षण कोटे का असली फायदा यादव उठा रहे हैं जिनकी आबादी यूपी में करीब 10 फीसद है। इसी तरह दलितों के आरक्षण कोटे का फायदा मुख्य रूप से जाटव जाति के लोग उठा रहे हैं। वाल्मीकि, मेहतर, डोम व खटीक आदि जातियों को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण कोटे का लाभ नहीं मिल पाता है। राजनाथ सिंह ने 2001 में हुकुम सिंह के नेतृत्व में सामाजिक न्याय समिति बनाकर दलितों और पिछड़ों के आरक्षण को बांट दिया था।
राजनाथ सिंह की अति दलितों और अति पिछड़ों के हित में की गई इस कवायद को उन्हीं की सरकार के एक मंत्री अशोक यादव ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी थी। नतीजतन राजनाथ सिंह ने उन्हें मंत्री पद से बर्खास्त कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले तो इस फैसले पर रोक लगाई और फिर सभी पक्षों को सुनने के बाद सरकारी अधिसूचना को रद्द कर दिया। अशोक यादव अपनी इस जीत के बाद पिछड़ों के नायक बन गए। नतीजतन 2007 के विधानसभा चुनाव में वे शिकोहाबाद से निर्दलीय जीत गए। इस बार फिर वे आरक्षण के मुद्दे पर भाजपा विरोधी दलों को लामबंद करने में जुट गए हैं।
अशोक यादव आजकल मायावती की भाषा बोल रहे हैं। मायावती ने सपा और भाजपा की साठगांठ का आरोप लगाया है। यादव का कहना है कि आरक्षण से छेड़छाड़ की भाजपाई कोशिश का मुलायम ने कभी विरोध नहीं किया। मायावती खुलेआम ऐसी कोशिश के लिए न केवल भाजपा का मुखर विरोध कर रही हैं बल्कि आरएसएस पर आरक्षण खत्म करने की मंशा रखने का भी आरोप लगा रही हैं। अशोक यादव ने नीतीश कुमार और लालू यादव को भी यूपी में आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं होने देने की अपनी लड़ाई में साथ आने का न्योता दिया है। उनका कहना है कि पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग मौजूद है। पर राजनीतिक फायदे के लिए कभी कांग्रेस तो कभी भाजपा आनन-फानन में समितियां बना कर पिछड़ों के आरक्षण के साथ छेड़छाड़ की अवैधानिक कोशिश करती रही हैं। इसी वजह से अदालत में उन्हें फटकार भी खानी पड़ी है। यादव ने भाजपा को चुनौती दी है कि अगर वह पिछड़ों के आरक्षण से छेड़छाड़ की बात भी करेगी तो यूपी में भी पिछड़े उसे बिहार की तरह सबक सिखा देंगे।
Read more: अनिल बंसल की रिपोर्ट : यूपी में अब बिछेगी आरक्षण की सियासी बिसात