नई दिल्ली
राजधानी के LNJP अस्पताल की इमर्जेंसी में भर्ती तीन साल के फरहान की जिंदगी की डोर अंबू बैग (ऑक्सीजन पंप) से जुड़ी है। शिफ्ट में दिन-रात परिवार का कोई न कोई सदस्य पंप दबाता रहता है ताकि मासूम की सांस चलती रहे। यह क्रम एक हफ्ते से जारी है। परिवारवाले मासूम को लेकर 24 जनवरी को आए थे। सात तारीखें निकल गईं, लेकिन हॉस्पिटल ने वेंटिलेटर नहीं दिया। बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में यह मामला उठाया गया तो अदालत ने मासूम को तुरंत वेंटिलेटर मुहैया कराने के निर्देश दिल्ली सरकार को दिए।
फरहान तीन साल का है, सांस अंबू बैग के भरोसे है। जब तक पंप चल रहा है तब तक उसकी सांस चल रही है। दो-दो, तीन-तीन घंटे बारी-बारी से पूरा परिवार बच्चे को पंप दबा-दबा कर ऑक्सीजन दे रहा है। पापा, बड़े पापा, चाचा तो कभी दादा-दादी पंप से फरहान को ऑक्सीजन दे रहे हैं।
पिछले गुरुवार की रात से फरहान की सांस अंबू बैग से चल रही है। बच्चे की हालत लगातार खराब हो रही है, परिजन आहत और बेबस हैं। पिता अशफाक कहते हैं, हम तो सिर्फ एक वेंटिलेटर मांग रहे हैं। छह दिन से डॉक्टरों से हाथ जोड़कर बोल रहे हैं कि मेरे बेटे की जान बचा लो, उसे वेंटिलेटर दे दो। मुझसे बाद में आने वाले मरीज को वेंटिलेटर दे दिया गया, लेकिन मेरे बच्चे को नहीं मिला।
छह दिन से अशफाक के लिए अस्पताल ही घर है। पूरा परिवार दिन-रात यहीं है। बच्चे के दादा-दादी से लेकर चाचा और रिश्तेदार खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं। फरहान की दादी कहती हैं, ‘मेरा पोता ठीक होने की बजाए और बीमार हो रहा है। डॉक्टर कुछ नहीं कर रहे हैं। पहले दिन उसके मुंह में पाइप लगा था, वह दोनों हाथ उठाकर मेरे गोद में आने की जिद कर रहा था। बेड पर होने के बाद भी हरकत कर रहा था, अब तो आंख भी नहीं खुल रही है। पता नहीं डॉक्टर उसका क्या इलाज कर रहे हैं, मेरा बच्चा ठीक होना चाहिए।’ पिता अशफाक बेटे की हालत पर इतने गमगीन थे कि आंसू झलक आए और रोते हुए कहा कि बस एक वेंटिलेटर दे दे, तसल्ली हो जाएगी।
अशफाक ने कहा कि सीनियर डॉक्टर तो मरीज को देखने आते ही नहीं हैं, सारे जूनियर डॉक्टर इलाज करते हैं। छह दिनों से उनका बच्चा ऐडमिट है। बुधवार को पहली बार सीनियर डॉक्टर आईं। उनका रवैया बेहद ही खराब था। वह बात सुन ही नहीं रही थीं। अगर बच्चे का इलाज सीनियर डॉक्टर करें तो हो सकता है कि वह ठीक हो जाए। जूनियर डॉक्टर बच्चे की बीमारी को लेकर ठीक-ठीक नहीं बता पा रहे हैं। जूनियर डॉक्टर बताते हैं कि नर्व से संबंधित रेयर बीमारी है, जिसका इलाज नहीं है। अभी डॉक्टर ने एमआरआई भी नहीं कराई है। पुरानी एमआरआई है उसी के आधार पर इलाज किया जा रहा है।
खजूरी इलाके में रहने वाले अशफाक ने फरहान को सबसे पहले चाचा नेहरू अस्पताल में दिखाया था। डॉक्टर ने बच्चे की एमआरआई कराई थी, क्योंकि बच्चा ठीक से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था। अस्पताल के डॉक्टर ने उसे बड़े अस्पताल में इलाज कराने को कहा। अशफाक बेटे को लेकर 24 दिसंबर को एम्स पहुंचे। एम्स ने जांच के लिए 24 जनवरी का डेट दिया। लंबी डेट की वजह से वे लोग पहले कलावती सरन अस्पताल पहुंचे, वहां पर न्यूरो के डॉक्टर उपलब्ध नहीं होने की वजह से वो एलएनजेपी ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे। एलएनजेपी के डॉक्टर ने उसे तीन तरह की दवा दी। इसी बीच 24 जनवरी को अचानक बच्चे की तबीयत खराब हो गई। वे उसे लेकर एलएनजेपी की इमर्जेंसी में पहुंचे। डॉक्टर ने ऐडमिट कर इलाज शुरू कर दिया, लेकिन वेंटिलेटर नहीं दिया।
एक सोशल वर्कर रिजवान ने इस मामले को वकील अशोक अग्रवाल तक पहुंचाया। अशोक अग्रवाल ने इस मामले को कोर्ट के सामने रखा और कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस बच्चे को तुंरत वेंटिलेटर मुहैया कराने का आदेश दिया है। बावजूद इसके बुधवार शाम तक उसे वेंटिलेटर नहीं मिला था। अशोक ने बताया कि अगर वेंटिलेटर नहीं मिला तो उसकी जान जा सकती है, क्योंकि उसे मैन्युअली ऑक्सीजन दिया जा रहा है। इस मामले में एक फरवरी को सुनवाई होनी है।
राजधानी के LNJP अस्पताल की इमर्जेंसी में भर्ती तीन साल के फरहान की जिंदगी की डोर अंबू बैग (ऑक्सीजन पंप) से जुड़ी है। शिफ्ट में दिन-रात परिवार का कोई न कोई सदस्य पंप दबाता रहता है ताकि मासूम की सांस चलती रहे। यह क्रम एक हफ्ते से जारी है। परिवारवाले मासूम को लेकर 24 जनवरी को आए थे। सात तारीखें निकल गईं, लेकिन हॉस्पिटल ने वेंटिलेटर नहीं दिया। बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट में यह मामला उठाया गया तो अदालत ने मासूम को तुरंत वेंटिलेटर मुहैया कराने के निर्देश दिल्ली सरकार को दिए।
फरहान तीन साल का है, सांस अंबू बैग के भरोसे है। जब तक पंप चल रहा है तब तक उसकी सांस चल रही है। दो-दो, तीन-तीन घंटे बारी-बारी से पूरा परिवार बच्चे को पंप दबा-दबा कर ऑक्सीजन दे रहा है। पापा, बड़े पापा, चाचा तो कभी दादा-दादी पंप से फरहान को ऑक्सीजन दे रहे हैं।
पिछले गुरुवार की रात से फरहान की सांस अंबू बैग से चल रही है। बच्चे की हालत लगातार खराब हो रही है, परिजन आहत और बेबस हैं। पिता अशफाक कहते हैं, हम तो सिर्फ एक वेंटिलेटर मांग रहे हैं। छह दिन से डॉक्टरों से हाथ जोड़कर बोल रहे हैं कि मेरे बेटे की जान बचा लो, उसे वेंटिलेटर दे दो। मुझसे बाद में आने वाले मरीज को वेंटिलेटर दे दिया गया, लेकिन मेरे बच्चे को नहीं मिला।
छह दिन से अशफाक के लिए अस्पताल ही घर है। पूरा परिवार दिन-रात यहीं है। बच्चे के दादा-दादी से लेकर चाचा और रिश्तेदार खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं। फरहान की दादी कहती हैं, ‘मेरा पोता ठीक होने की बजाए और बीमार हो रहा है। डॉक्टर कुछ नहीं कर रहे हैं। पहले दिन उसके मुंह में पाइप लगा था, वह दोनों हाथ उठाकर मेरे गोद में आने की जिद कर रहा था। बेड पर होने के बाद भी हरकत कर रहा था, अब तो आंख भी नहीं खुल रही है। पता नहीं डॉक्टर उसका क्या इलाज कर रहे हैं, मेरा बच्चा ठीक होना चाहिए।’ पिता अशफाक बेटे की हालत पर इतने गमगीन थे कि आंसू झलक आए और रोते हुए कहा कि बस एक वेंटिलेटर दे दे, तसल्ली हो जाएगी।
अशफाक ने कहा कि सीनियर डॉक्टर तो मरीज को देखने आते ही नहीं हैं, सारे जूनियर डॉक्टर इलाज करते हैं। छह दिनों से उनका बच्चा ऐडमिट है। बुधवार को पहली बार सीनियर डॉक्टर आईं। उनका रवैया बेहद ही खराब था। वह बात सुन ही नहीं रही थीं। अगर बच्चे का इलाज सीनियर डॉक्टर करें तो हो सकता है कि वह ठीक हो जाए। जूनियर डॉक्टर बच्चे की बीमारी को लेकर ठीक-ठीक नहीं बता पा रहे हैं। जूनियर डॉक्टर बताते हैं कि नर्व से संबंधित रेयर बीमारी है, जिसका इलाज नहीं है। अभी डॉक्टर ने एमआरआई भी नहीं कराई है। पुरानी एमआरआई है उसी के आधार पर इलाज किया जा रहा है।
खजूरी इलाके में रहने वाले अशफाक ने फरहान को सबसे पहले चाचा नेहरू अस्पताल में दिखाया था। डॉक्टर ने बच्चे की एमआरआई कराई थी, क्योंकि बच्चा ठीक से अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पा रहा था। अस्पताल के डॉक्टर ने उसे बड़े अस्पताल में इलाज कराने को कहा। अशफाक बेटे को लेकर 24 दिसंबर को एम्स पहुंचे। एम्स ने जांच के लिए 24 जनवरी का डेट दिया। लंबी डेट की वजह से वे लोग पहले कलावती सरन अस्पताल पहुंचे, वहां पर न्यूरो के डॉक्टर उपलब्ध नहीं होने की वजह से वो एलएनजेपी ओपीडी में इलाज के लिए पहुंचे। एलएनजेपी के डॉक्टर ने उसे तीन तरह की दवा दी। इसी बीच 24 जनवरी को अचानक बच्चे की तबीयत खराब हो गई। वे उसे लेकर एलएनजेपी की इमर्जेंसी में पहुंचे। डॉक्टर ने ऐडमिट कर इलाज शुरू कर दिया, लेकिन वेंटिलेटर नहीं दिया।
एक सोशल वर्कर रिजवान ने इस मामले को वकील अशोक अग्रवाल तक पहुंचाया। अशोक अग्रवाल ने इस मामले को कोर्ट के सामने रखा और कोर्ट ने दिल्ली सरकार को इस बच्चे को तुंरत वेंटिलेटर मुहैया कराने का आदेश दिया है। बावजूद इसके बुधवार शाम तक उसे वेंटिलेटर नहीं मिला था। अशोक ने बताया कि अगर वेंटिलेटर नहीं मिला तो उसकी जान जा सकती है, क्योंकि उसे मैन्युअली ऑक्सीजन दिया जा रहा है। इस मामले में एक फरवरी को सुनवाई होनी है।
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