जसजीव गांधियोक, नई दिल्ली
दिल्ली में पिछले 10 साल के भीतर बसने वालों को लंबे समय तक फेफड़ों में रुकावट की बीमारियों (COPD) का खतरा ज्यादा है। ताउम्र दिल्ली में रहे लोगों के मुकाबले हाल में आए लोगों को COPD का रिस्क 1.9 गुना ज्यादा है। एक नई रिसर्च के मुताबिक, हाल ही में स्मोकिंग छोड़ने वालों का COPD का रिस्क (3.9 गुना) स्मोकिंग कर रहे लोगों से ज्यादा (करीब 2.7 गुना) है। यह रिसर्च देश के चार नामी संस्थानों की तरफ से की गई है। इसके मुताबिक, जो लोग रोज 10 मिनट से ज्यादा की यात्रा करते हैं उन्हें इससे कम समय यात्रा करने वालों के मुकाबले COPD होने का खतरा 12.2 गुना ज्यादा है। अगर यात्रा का समय 30 मिनट से ज्यादा हो खतरा 28 गुना बढ़ जाता है।
इन इंस्टिट्यूट्स ने की है रिसर्च
स्टडी के लिए 8,000 से ज्यादा घरों का सैंपल लिया गया। 28,000 लोगों से सवाल-जवाब हुए। कई फैक्टर्स जैसे बाहर कितना वक्त बिताते हैं, वर्कप्लेस पर प्रदूषण का स्तर क्या है, स्मोकर हैं या नहीं, दिल्ली शिफ्ट हुए हैं या यहीं पैदा हुए हैं, को ध्यान में रखते हुए रिसर्च की गई। UCMS में प्रोफेसर-डायरेक्टर और स्टडी के लीड रिसर्चर अरुण शर्मा के मुताबिक, शहर के अलग-अलग हिस्सों में COPD मामलों के क्लस्टर्स मिले हैं। शर्मा के मुताबिक, "हाउजिंग सोसायटीज और कॉलोनियों के कुछ हिस्सों में आपको एक इलाके में क्लस्टर्स मिलेंगे और दूसरे हिस्से में लगभग न के बराबर केस। जहांगीरपुरी के एक हिस्से में काफी ज्यादा COPD केसेज थे मगर दूसरे हिस्से में काफी कम। यह दिखाता है कि लोकल लेवल पर इम्पैक्ट अहम है और हर जगह सोर्स के चलते भी केसेज कम-ज्यादा हो सकते हैं।"
30 साल से दिल्ली में तो खतरा बराबर
रिसर्चर के मुताबिक, दिल्ली में 30 साल से ज्यादा वक्त से रह रहे लोगों को ऐसी बीमारियों का खतरा ज्यादा है, चाहे वह यहीं पैदा हुए हों या बाद में आए हों। स्टडी में यह भी पता चला कि अधिकतर जगहों पर कम से कम 10 साल से एलपीजी का इस्तेमाल हो रहा था। हालांकि इसके बावजूद उनमें COPD के मामले थे। आउटडोर में काम करने वालों को इनडोर वालों के मुकाबले COPD का रिस्क करीब 2.3 गुना ज्यादा था। जिन COPD मरीजों को चुना गया, उनमें से 64% नॉन-स्मोकर्स थे, 18% पहले स्मोकिंग करते थे और केवल 17.5% ही अभी स्मोक कर रहे थे। करीब 89% के परिवार में कोई और स्मोकर नहीं था, जो इस बात का इशारा था कि स्मोकिंग इन COPD केसेज में बड़ी वजह नहीं थी।
NEEI के डायरेक्टर डॉ राकेश कुमार ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण के स्त्रोत और बैकग्राउंड एमिशंस यूरोपियों देशों से काफी अलग हैं। यहां लोकल फैक्टर्स और वजहों का पता लगाना जरूरी है।
दिल्ली में पिछले 10 साल के भीतर बसने वालों को लंबे समय तक फेफड़ों में रुकावट की बीमारियों (COPD) का खतरा ज्यादा है। ताउम्र दिल्ली में रहे लोगों के मुकाबले हाल में आए लोगों को COPD का रिस्क 1.9 गुना ज्यादा है। एक नई रिसर्च के मुताबिक, हाल ही में स्मोकिंग छोड़ने वालों का COPD का रिस्क (3.9 गुना) स्मोकिंग कर रहे लोगों से ज्यादा (करीब 2.7 गुना) है। यह रिसर्च देश के चार नामी संस्थानों की तरफ से की गई है। इसके मुताबिक, जो लोग रोज 10 मिनट से ज्यादा की यात्रा करते हैं उन्हें इससे कम समय यात्रा करने वालों के मुकाबले COPD होने का खतरा 12.2 गुना ज्यादा है। अगर यात्रा का समय 30 मिनट से ज्यादा हो खतरा 28 गुना बढ़ जाता है।
इन इंस्टिट्यूट्स ने की है रिसर्च
- यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज (UCMS)
- डिपार्टमेंट ऑफ हेल्थ रिसर्च (DHR)
- नैशनल एन्वायर्नमेंट इंजिनियरिंग रिसर्च इंस्टिट्यूट (NEERI)
- डिपार्टमेंट ऑफ एन्वायर्नमेंटल साइंसेज, दिल्ली यूनिवर्सिटी
स्टडी के लिए 8,000 से ज्यादा घरों का सैंपल लिया गया। 28,000 लोगों से सवाल-जवाब हुए। कई फैक्टर्स जैसे बाहर कितना वक्त बिताते हैं, वर्कप्लेस पर प्रदूषण का स्तर क्या है, स्मोकर हैं या नहीं, दिल्ली शिफ्ट हुए हैं या यहीं पैदा हुए हैं, को ध्यान में रखते हुए रिसर्च की गई। UCMS में प्रोफेसर-डायरेक्टर और स्टडी के लीड रिसर्चर अरुण शर्मा के मुताबिक, शहर के अलग-अलग हिस्सों में COPD मामलों के क्लस्टर्स मिले हैं। शर्मा के मुताबिक, "हाउजिंग सोसायटीज और कॉलोनियों के कुछ हिस्सों में आपको एक इलाके में क्लस्टर्स मिलेंगे और दूसरे हिस्से में लगभग न के बराबर केस। जहांगीरपुरी के एक हिस्से में काफी ज्यादा COPD केसेज थे मगर दूसरे हिस्से में काफी कम। यह दिखाता है कि लोकल लेवल पर इम्पैक्ट अहम है और हर जगह सोर्स के चलते भी केसेज कम-ज्यादा हो सकते हैं।"
30 साल से दिल्ली में तो खतरा बराबर
रिसर्चर के मुताबिक, दिल्ली में 30 साल से ज्यादा वक्त से रह रहे लोगों को ऐसी बीमारियों का खतरा ज्यादा है, चाहे वह यहीं पैदा हुए हों या बाद में आए हों। स्टडी में यह भी पता चला कि अधिकतर जगहों पर कम से कम 10 साल से एलपीजी का इस्तेमाल हो रहा था। हालांकि इसके बावजूद उनमें COPD के मामले थे। आउटडोर में काम करने वालों को इनडोर वालों के मुकाबले COPD का रिस्क करीब 2.3 गुना ज्यादा था। जिन COPD मरीजों को चुना गया, उनमें से 64% नॉन-स्मोकर्स थे, 18% पहले स्मोकिंग करते थे और केवल 17.5% ही अभी स्मोक कर रहे थे। करीब 89% के परिवार में कोई और स्मोकर नहीं था, जो इस बात का इशारा था कि स्मोकिंग इन COPD केसेज में बड़ी वजह नहीं थी।
NEEI के डायरेक्टर डॉ राकेश कुमार ने कहा कि दिल्ली में प्रदूषण के स्त्रोत और बैकग्राउंड एमिशंस यूरोपियों देशों से काफी अलग हैं। यहां लोकल फैक्टर्स और वजहों का पता लगाना जरूरी है।
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